''मैं हसदेव हूं'', जीवन देने वाले को लड़नी पड़ रही जिंदगी की जंग. - Hasdeo river and Forest - HASDEO RIVER AND FOREST
हिंदू धर्म में नदी को मां का दर्जा दिया गया है. नदी के किनारे ही लोग पहले बसते थे. आज भी नदी से ही खाना, पीना और जिंदगी की रवानगी चलती है. विकास की दौड़ में आज हम जीवन देने वाली मां को भूलते जा रहे हैं. मां की ममता की धार को रोक रहे हैं. अपनी जरूरतों के लिए मां के आंचल को मैला कर रहे हैं. जिंदगी देने वाली मां आज खुद की जिंदगी बचाने की पुकार कर रही है.
जीवन देने वाले को लड़नी पड़ रही जिंदगी की जंग (ETV Bharat)
कोरबा: छत्तीसगढ़ की प्रमुख नदियों में से एक हसदेव नदी का हाल भी सालों से खराब होता जा रहा है. हसदेव नदी के पानी से जहां लाखों लोगों को अनाज और जीवन मिलता है, वहीं कोरबा की धरती से कोयले का भारी मात्रा में उत्पादन भी होता है. कोरबा से निकला कोयला देश के दूसरे राज्यों में भी भेजा जाता है. यहां के कोयले से कोरबा में दर्जन भर पावर प्लांट चलते हैं. इन पावर प्लांटों से 6 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जाता है. इस बिजली से प्रदेश और देश के कई राज्य जगमगाते हैं.
दी को मां का दर्जा दिया गया (ETV Bharat)
''मैं हसदेव हूं'':कोरबा की जीवन रेखा कही जाने वाली हसदेव नदी आज प्रदूषण के चलते अपनी शक्ति खो रही है. पावर प्लांटों से निकलने वाला हजारों टन राख नदी में जाकर मिल रहा है. हसदेव नदी के किनारे हसदेव का जंगल है. इस जंगल को मध्य भारत का फेफड़ा कहा जाता है. जंगल की कटाई और कोल ब्लॉकों और कॉमर्शियल माइनिंग के तहत हुई नीलामी के चलते नदी और जंगल दोनों पर खतरा मंडराने लगा है.
लड़नी पड़ रही जिंदगी की जंग (ETV Bharat)
हसदेव के कैचमेंट एरिया को पहुंचा नुकसान: हसदेव के जंगल में अगर पेड़ों की कटाई की गई तो हसदेव नदी और जंगल दोनों को भारी नुकसान होगा. नदी का कैचमेंट एरिया बर्बाद हुआ तो नदी के अस्तित्व पर भी खतरे का संकट मंडरा सकता है. बीते दिनों हसदेव नदी और कोल ब्लॉक आवंटन को लेकर जमकर सियासत भी हुई. हसदेव नदी और जंगल लोगों को बिजली, पानी, ऑक्सीजन दे रहा है. इसकी रक्षा करना आज सबकी जिम्मेदारी है.
जीवन देने वाले को लड़नी पड़ रही जिंदगी की जंग (ETV Bharat)
''एनजीटी के निर्देश पर वर्ष 2021 में हसदेव नदी पुनरुद्धार योजना की शुरुआत की जा चुकी है. इसके तहत हसदेव नदी के दर्री से लेकर उरगा तक के 20 किलोमीटर के भाग को प्रदूषित माना गया. कोरबा जिले में ज्यादातर पावर प्लांट संचालित हैं. फिलहाल यह सभी शून्य निस्तारण के नियमों का पालन कर रहे हैं. किसी भी पावर प्लांट से प्रदूषित जल नदी में नहीं छोड़ा जा रहा है. फिर भी हमने एनजीटी के गाइडलाइन के अनुसार हसदेव नदी के सुधार के लिए 2 कंटीन्यूअस इनफ्लूएंट क्वॉलिटी मॉनिटरिंग स्टेशन की स्थापना की है. हमने दो स्थानों पर इसे स्थापित कर दिया है. इससे 8 पैरामीटर्स पर नदी का प्रदूषण जांच जाएगा''. - मानिक चंदेल, जूनियर इंजीनियर और साइंटिस्ट, पर्यावरण संरक्षण मंडल, कोरबा
हसदेव के कैचमेंट एरिया को पहुंचा नुकसान (ETV Bharat)
सहायक नदियां भी प्रदूषण की चपेट में: कोरबा जिले में कई छोटी नदियां भी बहती हैं. इन नदियों की लंबाई 20 से 40 किलोमीटर लंबी है. तान, झींग, उतेंग, गज, अहिरान, चोरनई, गेज(सबसे लंबी), हंसिया और केवई हसदेव की सहायक नदियां हैं. अफसोस की बात है कि हसदेव के साथ इन सहायक नदियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है. लीलागर नदी पूरी तरह से सूखने के कगार पर है.
'' नदी के पानी में घुलनशील प्रदूषण, सतह पर कितनी गाद जमी है. पीएच मान, टेंपरेचर, सीवरेज का पानी तो नहीं मिलाया जा रहा. इन सभी की जांच स्टेशन से जारी रिपोर्ट के आधार पर हो जाएगी. सिवरेज के पानी से नदी का पानी ज्यादा प्रदूषित होता है. आम लोगों को भी चाहिए कि अपने घर के आस पास वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाएं. जिससे कि कम से कम दूषित जल घर के बाहर नेचुरल वॉटर रिसोर्सेस में जाए. इससे नदी के जल भराव क्षमता में भी इजाफा होगा". - मानिक चंदेल, जूनियर इंजीनियर और साइंटिस्ट, पर्यावरण संरक्षण मंडल, कोरबा
कोरिया ने निकलती है हसदेव नदी: हसदेव नदी का उद्गम स्थल कोरिया जिले के देवगढ़ पहाड़ी, सोनहत पठार से होता है. इसकी कुल लंबाई 176 किलोमीटर है. कोरिया से निकलने के बाद हसदेव नदी मनेंद्रगढ़, चिरमिरी, भरतपुर होते हुए लगभग 25 किलोमीटर बाद कोरबा पहुंचती है. कोरबा में हसदेव नदी का सर्वाधिक फैलाव है. जिसके बाद यह जांजगीर-चांपा के केर-सिलादेही गांव में महानदी में मिलती है.
हसदेव को महानदी का सहायक नदी माना जाता है:हसदेव को महानदी की प्रमुख सहायक नदी के तौर पर जाना जाता है. पानी और कोयले की अधिकता के चलते कोरबा में कोयले से बिजली उत्पादन का काम बड़े पैमाने पर होता है. दर्जन भर पावर प्लांट यहां संचालित हैं. प्लांटों से हजारों मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है. प्लांटों में हर रोज 80 हजार टन कोयले की खपत होती है.
कोयले से होता है यहां बिजली का उत्पादन: कोयले को जलाकर ही बिजली का उत्पादन होता है, इसका लगभग 40% भाग राख के तौर पर उत्सर्जित होता है. पावर प्लांट इस राख को राख डैम तक ले जाते हैं. कुछ राख ठोस मात्रा में होता है, जबकि कुछ तरल के तौर पर भी राखड़ डैम तक पहुंचता है. इसके उचित निपटान नहीं होने के कारण अलग-अलग नालों से होते हुए राख हसदेव नदी तक पहुंच जाता है.
नियमों की होती है अनदेखी: प्लांट से निकलने वाले राख के 100 प्रतिशत यूटिलाइजेशन का नियम तो बनाया गया है, लेकिन इसका पालन कम ही होता है. प्लांट से निकली राख नदी के पानी और जंगल दोनों को प्रदूषित कर रही है. सड़क मार्ग के जरिए भी राख परिवहन किए जाने की नई परंपरा शुरू हुई. राख को यहां वहां फेंका जाने की भी शिकायत है. छोटा फायदा कमाने के लिए ठेकेदारों ने नदी को बड़ा नुकसान पहुंचाया. इस मामले में भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई.
10% तक जलभराव की क्षमता घटी: हसदेव नदी पर बांगो बांध का निर्माण 1992 में पूरा हुआ. 26 साल में यहां जलभराव की क्षमता 10% घट गई है. कुछ साल पहले किए गए एक सर्वे में केंद्रीय जल आयोग ने यह साफ कर दिया था. कहा था कि औद्योगिक प्रदूषण के कारण नदी के जल भराव क्षमता में कमी आई है. औद्योगिक संस्थानों को पानी देने के लिए निर्धारित की गई मात्रा को घटाया भी गया था. पूर्व में नदी की सफाई के लिए दो करोड़ रुपए की कार्य योजना बनी थी.
''हसदेव नदी में सॉइल इरोशन हो रहा है. हमने कुछ समय पहले हसदेव नदी का अध्ययन किया था. छात्रों को हसदेव नदी पर प्रोजेक्ट कार्य भी करवाए जाते हैं. जिसमें यह फाइंडिंग्स आए थे कि हसदेव नदी प्रदूषण की चपेट में है. नदी में सिल्ट की मात्रा बढ़ रही है. इसका कैचमेंट एरिया पिछले कुछ सालों में बुरी तरह एस प्रभावित हुआ है. कैचमेंट एरिया को समृद्ध बनाने के लिए अधिक से अधिक पौधे लगाने होंगे. तभी नदी में अधिक पानी आएगा. हसदेव नदी के कैचमेंट एरिया को अधिक से अधिक समृद्ध बनाना बेहद जरूरी है''.- डॉ संदीप शुक्ला, बॉटनी प्रोफेसर, शासकीय ईवीपीजी अग्रणी महाविद्यालय
हसदेव नदी का इतिहास: प्राचीन काल में हसदेव नदी को महानद और हस्तीसोमा के नाम से जाना जाना जाता था. हसदेव का जिक्र मारकंडेय, वायु, पद्म और मत्स्य पुराण के साथ महाभारत में भी मिलता है. हसदेव नदी पर छत्तीसगढ़ का सबसे ऊंचा मिनीमाता बांगो बांध परियोजना है. परियोजना का निर्माण तीन चरणों में हुआ है. बांध की ऊंचाई 87 मीटर है. बांध का अंतिम निर्माण 2011 में पूरा हुआ.
पर्यटन डेस्टिनेशन है हसदेव: हसदेव नदी पर तीन मनोरम जलप्रपात का निर्माण होता है. अमृतधारा, गाबरघाट और अकुरीनाला. यह सभी जलप्रपात मनेन्द्रगढ़ और चिरमिरी में हैं. हसदेव नदी और जंगल को देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक हर साल यहां पहुंचते हैं. छत्तीसगढ़ के जितने भी पर्यटन स्थल है उसमें कोरबा का हसदेव अपनी खास जगह बनाता है.
हसदेव से पूरी होती है इनकी जरुरतें:बालको, NTPC, SECL और CSEB जैसे पावर प्लांट और उद्योगों को 539 MCM पानी हसदेव से दिया जाता है. हसदेव से ही 4 लाख 20 हजार 580 हेक्टेयर खेतों की सिंचाई होती है. जिसमें 2 लाख 47 हजार 402 खरीफ, 1 लाख 73 हजार 180 हेक्टेयर रबी की फसल शामिल है. हसदेव नदी से लाभ लेने वाले जिलों में कोरबा, जांजगीर-चांपा, सक्ती और रायगढ़ हैं. हसदेव के पानी से 919 गांव में खेतों की सिंचाई होती है. जांजगीर छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में धान उत्पादन के मामलों में पहले पायदान पर है और इसका श्रेय हसदेव को जाता है.