गोरखपुर:लोकसभा चुनाव को लेकर इस पूर्वांचल में भी समय सियासत गर्म है. कभी पूर्वांचल में बाहुबलियों का राजनीति में बोलबाला था, लेकिन इनके उत्तराधिकारी इनकी विरासत आगे बढ़ाने में कामयाब नहीं होते दिख रहे हैं. हरिशंकर तिवारी, ओम प्रकाश पासवान, रविन्द्र सिंह, रामगीना मिश्रा, मोहन सिंह, अमर मणि त्रिपाठी और जगदंबिका पाल के उत्तराधिकारी राजनीति में ज्यादा सफल नहीं हो पाए. कुछ एक को छोड़ दिया जाए तो बाकी संघर्ष की राजनीति में हैं. कुछ को पिता स्थापित करना चाह रहे हैं तो समीकरण ठीक नहीं बैठ रहा. भले ही अपने समय में पूर्वांचल की माटी से निकले कई दिग्गजों ने प्रदेश और देश की राजनीति में अलग मुकाम और धमक कायम किया हो. कुछ तो ऐसे दिग्गज हैं, जिनका अब कोई नाम लेता भी नहीं है.
ओमप्रकाश पासवान के उत्तराधिकारी हुए सफलःबता दें कि पासवान बिरादरी से आने वाले बांसगांव लोक सभा सीट से भाजपा सांसद कमलेश पासवान लगातार तीन बार से सांसद है. चौथी बार भी मैदान में है. उन्होंने अपने साथ अपने संसदीय क्षेत्र के बांसगांव विधानसभा सीट से छोटे भाई डॉक्टर विमलेश पासवान को बीजेपी के टिकट पर लगातार दो बार विधानसभा का सदस्य निर्वाचित करा चुके हैं. इनकी मां भी बांसगांव सीट से सांसद रही हैं. कमलेश के पिता ओमप्रकाश पासवान की छवि एक बाहुबली नेता की रही. जिनके ऊपर कई अपराधी मुकदमे दर्ज हैं. ओमप्रकाश पासवान कभी गोरखनाथ मंदिर और तत्कालीन सांसद गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ के बेहद करीबी माने जाते थे.
पंडित हरिशंकर के दोनों बेटे सियासी संघर्ष से जूझ रहेःवहीं, दूसरा राजनीतिक मजबूत घराना पंडित हरिशंकर तिवारी का था. जिन्होंने अपने जीते जी दोनों बेटों को राजनीतिक रूप से स्थापित तो किया लेकिन मौजूदा दौर में दोनों सियासी संघर्ष से जूझ रहे हैं. बड़े बेटे भीष्म शंकर उर्फ उर्फ कुशल तिवारी डुमरियागंज से समाजवादी पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी हैं. जबकि छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी के खिलाफ ईडी की बड़ी जांच चल रही है. वह भी विधायक और दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री रह चुके हैं. गोरखपुर लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी से वर्ष 2009 में चुनाव भी लड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
6 बार सांसद रहे राम नगीना मिश्र के बेटे नहीं जीत पाए चुनावः80 के दशक से लेकर मौजूदा समय के कद्दावर नेताओं की बात करें तो कांग्रेस से राजनीति की शुरुआत करने वाले पंडित राम नगीना मिश्र दो बार सलेमपुर संसदीय सीट से सांसद रहे. लेकिन वर्ष 1988 में लोकसभा में राम मंदिर का मुद्दा उठाने के कारण वह भाजपा के करीबी हो गए. इसके बाद पडरौना लोकसभा सीट से लगातार चार बार उन्होंने प्रतिनिधित्व किया. पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी से रिश्ते में समाधि होने के बावजूद राम नगीना मिश्रा अपने बेटे डॉक्टर परशुराम मिश्र को दो बार विधानसभा चुनाव में उतारे लेकिन जनता का समर्थन उन्हें प्राप्त नहीं हुआ.