मेरठ : वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक सरगर्मियां काफी तेज हैं. इन दिनों पश्चिमी यूपी सियासत में अपना वजूद बनाती जा रही है, जिसकी वजह हैं RLD चीफ जयंत चौधरी. आइए जानते हैं कि NDA या I.N.D.i.A गठबंधन अपने लिए जयंत चौधरी को क्यों जरूरी सझतते हैं और कौन किसकी मजबूरी बन गया है. दरअसल बीते निकाय चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल की राज्य स्तरीय मान्यता खतरे में पड़ गई थी. निकाय चुनाव के बाद से अब तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा और समाजवादी पार्टी से भी कम जनप्रतिनिधियों वाले दल राष्ट्रीय लोकदल की तरफ हर किसी की निगाहें हैं.
बीते कुछ दिनों से लगातार प्रयास लगाया जा रहे हैं कि आरएलडी मुखिया भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के सम्पर्क में हैं. कभी भी वह NDA गठबंधन का हिस्सा हो सकते हैं. इंडिया गठबंधन का साथ छोड़ सकते हैं. समाजवादी पार्टी से जयंत नाराज हैं और ऐसे में वह अपने लिए नया ठिकाना तलाश रहे हैं. माम वरिष्ठ नेताओं ने तो मौन धारण कर लिया है और गाहे बगाहे अगर वह कुछ बोल भी पा रहे हैं तो सिर्फ यही कि अभी तक आरएलडी इंडिया गठबंधन का ही सहयोगी है. हालांकि कुछ ऐसे भी नेता हैं जो मुखर होकर कह रहे हैं कि आरएलडी के इंडिया गठबंधन का साथ छोड़ने की जो खबरें हैं वह हवा हवाई हैं. इतना ही नहीं बीजेपी से सियासी दोस्ती कर NDA में शामिल होने की चर्चा पर राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह और उनके नेताओं की चुप्पी ने सस्पेंस बढ़ा दिया है.
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सादाब रिजवी कहते हैं कि अगर जयंत बीजेपी में गए तो वेस्ट यूपी में I.N.D.I.A. गठबंधन को नुकसान होगा. रालोद के साथ की जरूरत बीजेपी को भी है, क्योंकि चाहे 2019 हो या 2022 या फिर बीते साल हुए निकाय चुनाव पश्चिमी यूपी में बीजेपी 2014 में जिस शक्ति के साथ मजबूत हुई थी तब से अब तक उसका ग्राफ गिरा ही है. 2019 के लोकसभा और 2022 के विधानसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी कमजोर हुई. 2019 में सपा, बसपा और रालोद एक साथ थे. जिसका परिणाम यह हुआ था कि भारतीय जनता पार्टी जो 2014 में बेहद मज़बूत लोकसभा चुनाव में हुई थी. उसे सहारनपुर, अमरोहा, बिजनौर, नगीना, संभल, मुरादाबाद, रामपुर सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा था. हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा एकला चलो की रहा पर थी. वहीं भाजपा को काफी नुकसान वेस्ट यूपी में हुआ था.