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पीएम मोदी का प्रयागराज दौरा, जिन मंदिरों में जाएंगे प्रधानमंत्री, जानिए क्या हैं उनकी पौराणिक मान्यताएं - MAHA KUMBH MELA 2025

मान्यता है कि अक्षयवट के वृक्ष का कभी अंत नहीं हो सकता. लंका विजय के बाद भारद्वाज ऋषि के आश्रम आए थे राम.

पीएम मोदी का आज प्रयागराज दौरा
पीएम मोदी का आज प्रयागराज दौरा (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 13, 2024, 11:16 AM IST

प्रयागराज : संगम नगरी में 13 जनवरी से महाकुंभ 2025 की शुरुआत होनी है. इसके एक महीने पहले 13 दिसंबर यानी कि आज पीएम मोदी कुंभनगरी का दौरा करने पहुंचेंगे. शुक्रवार को पीएम मोदी त्रिवेणी तट पर गंगा पूजन करने के साथ ही संगम किनारे स्थित अक्षयवट, सरस्वती कूप और लेटे हनुमानजी के मंदिर में दर्शन पूजन करने भी जाएंगे. अक्षयवट कॉरिडोर और हनुमान मंदिर कॉरिडोर के अलावा भारद्वाज कॉरिडोर का लोकार्पण भी पीएम नरेंद्र मोदी करेंगे.

पीएम मोदी शहर से दूर श्रृंगवेरपुर धाम कॉरिडोर, निषादराज पार्क, निषादराज और प्रभु श्री राम की प्रतिमा का वर्चुअल मोड से लोकार्पण करेंगे. ये सभी स्थल सनातन धर्म पौराणिक महत्व वाली की प्राचीन धरोहर हैं. सनातन धर्म को मानने वाले लोगों के लिए अक्षयवट वृक्ष का महत्व किसी भी मंदिर या भगवान से कम नहीं है. ऐसी मान्यता है कि अक्षयवट के वृक्ष का कभी अंत नहीं हो सकता है. सनातन धर्म के मतानुसार, जब प्रलय आता है और संपूर्ण सृष्टि जलमग्न होने की वजह से नष्ट हो जाएगी, उस वक्त भी यह वृक्ष सुरक्षित रहेगा.

धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, जब सृष्टि का विनाश हुआ था, तब भी भगवान विष्णु इसी अक्षयवट वृक्ष के एक पत्ते पर बाल स्वरूप में विराजमान थे. हिंदुओं के अलावा जैन और बुद्ध धर्म को मानने वाले लोग इस वट वृक्ष को पवित्र मानकर इसकी पूजा करते हैं. यह भी मान्यता है कि रामायण काल के दौरान जब भगवान राम जंगल जा रहे थे, उन्होंने भी इस वटवृक्ष के नीचे विश्राम किया था. जाते समय माता सीता ने भी अक्षयवट को कभी क्षय न होने का आशीष दिया था.

प्रयागराज के पांच तीर्थनायकों के रूप में भी अक्षय वट की गिनती की जाती है. इसी कारण से अक्षयवट को तीर्थराज प्रयाग के पांच प्रधान स्थलों में से एक माना जाता है. इसी तरह से संगम से कुछ दूरी पर स्थित भारद्वाज ऋषि के आश्रम का भी धार्मिक और पौराणिक महत्व है. भारद्वाज ऋषि के बारे में रामायण में भी विस्तार से वर्णन मिलता है.

रामायण के अनुसार, भगवान राम अयोध्या से वनवास के लिये जाते समय और लंका विजय के बाद वापस अयोध्या लौटते समय भारद्वाज ऋषि के आश्रम गए थे. जहां पर उन्होंने भारद्वाज ऋषि से आशीर्वाद लिया था. आपको बता दें कि भारद्वाज ऋषि के इसी आश्रम को सृष्टि का पहला गुरुकुल कहा जाता है. उन्होंने यहां पर विमान शास्त्र की रचना भी की थी. उन्होंने पहला उड़ने वाला विमान बनाया था, जिसे हम पुष्पक विमान के नाम से जानते हैं. उसके बारे में भी रामायण में कई स्थानों पर वर्णन मिलता है.

सदियों से उपेक्षित पड़े रहने के बाद अब करोड़ो की लागत से भारद्वाज आश्रम कॉरिडोर का निर्माण करवाया गया है और अपने दौरे के दौरान पीएम मोदी इस भारद्वाज कॉरिडोर का भी लोकार्पण करेंगे.

लेटे हनुमान जी मंदिर, अक्षय वट और भारद्वाज ऋषि आश्रम. (Photo Credit; ETV Bharat)

सरवस्ती कूप का पौराणिक महत्व:संगम नगरी प्रयागराज में गंगा यमुना के साथ सरस्वती का संगम हुआ, इसी कारण इस स्थान को त्रिवेणी संगम कहा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, कलयुग की शुरुआत के साथ सरस्वती नदी विलुप्त होती चली गयी. जिसके बाद अब प्रयागराज में गंगा यमुना का संगम होता है और सरस्वती यहां पर ज्ञान के रूप में वास करती हैं.

ऐसी भी मान्यता है कि आज भी गंगा यमुना के मिलन स्थल पर सरस्वती गुप्त रूप से विराजमान हैं और गंगा यमुना के मिलन स्थल पर सरस्वती का जल अदृश्य रूप से आज भी विराजमान है. इसी सरस्वती नदी के जल का स्त्रोत किले स्थित सरस्वती कूप में देखने को मिलता है. यही कारण है कि प्रयागराज आने वाले तमाम श्रद्धालू भक्त किले के अंदर जाकर सरस्वती कूप में उस जलधारा का आज भी दर्शन करने जाते हैं.

सरस्वती कूप के उस जल में विशेष गुण और तत्व मौजूद हैं और इसी वजह सरस्वती कूप को सुरक्षा की दृष्टि से कांच से पैक कर दिया गया है, जिससे लोग सिर्फ उसका दर्शन कर सकें और कूप के अंदर कोई भी बाहरी वस्तु डालकर उसे गंदा न कर सकें. लेकिन तमाम अवसरों पर सेना की तरफ से सरस्वती कूप के कांच को भी खोला जाता है, जिससे लोग सीधे उस कूप के अंदर के जल का दर्शन कर सकें.

लेटे हनुमान मंदिर का भी है पुराना इतिहास:संगम किनारे त्रिवेणी संगम और अक्षयवट और सरस्वती कूप के पास ही हनुमान जी की विशाल प्रतिमा लेटी हुई अवस्था में मंदिर के गर्भगृह में मौजूद है. इसे प्रयागराज के लोग बड़े हनुमान जी के मंदिर के नाम से भी पुकारते हैं. जबकि तमाम लोग इसी मंदिर को लेटे हनुमान मंदिर के नाम से भी जानते हैं.

सैकड़ों साल पुराने इस मंदिर को लेकर भी तमाम तरह की कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन संगम स्नान के लिए आने वाले बहुत से लोग लेटे हनुमान मंदिर में दर्शन किये बिना अपने घर वापस नहीं जाते हैं. जबकि कुछ लोग तो संगम स्नान के बाद लेटे हनुमान के दर्शन के बिना संगम की यात्रा को ही पूरा नहीं मानते है.

ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी के इस मंदिर में सच्चे मन से मांगी गयी हर मुराद पूरी होती है और यही कारण है कि माघ और कुंभ मेले में लोग घंटो लाइन में लगकर इस मंदिर में लेटे हुए हनुमान जी का दर्शन पूजन जरूर करते हैं. शुक्रवार को एक दिनी दौरे पर प्रयागराज आ रहे पीएम मोदी इन मंदिरों को कॉरिडोर की सौगात देने के साथ ही वहां जाकर दर्शन पूजन भी करेंगे.

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