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आरक्षण पर SC के फैसले से बिहार में राजनीतिक High, अब क्या करेंगे नीतीश कुमार ? पढ़ें हर सवाल का जवाब देती रिपोर्ट - POLITICS ON RESERVATION

SUPREME COURT DECISION ON RESERVATION: बिहार में दलितों-पिछड़ों के लिए 65 फीसदी आरक्षण वाला दांव अब सरकार को भारी पड़ने लगा है. सरकार के फैसले को पहले पटना हाई कोर्ट ने रद्द किया तो सरकार को सुप्रीम कोर्ट से भी निराशा हाथ लगी. अब विरोधियों को सरकार पर वार का नया सियासी हथियार मिल गया है, पढ़िये पूरी खबर,

सियासत का 'आरक्षण' राग
सियासत का 'आरक्षण' राग (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jul 31, 2024, 8:27 PM IST

Updated : Aug 1, 2024, 12:03 PM IST

65 फीसदी वाला फैसला बना गले की फांस (ETV BHARAT)

पटनाःबिहार में जातीय जनगणना कराने के बाद 9 नवंबर 2023 को तत्कालीन महागठबंधन सरकार ने बिहार की सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दलितो-पिछड़ों के लिए आरक्षणका दायरा 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी वाला बिल विधानमंडल से पास किया और इसे कानून की शक्ल देकर लागू भी कर दिया. महागठबंधन का ये फैसला तब सियासी स्ट्रोक माना जा रहा था लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के ताजा रुख के बाद यही फैसला बिहार की नीतीश सरकार के लिए गले की हड्डी बन गया है.

सरकार के फैसले को पटना हाई कोर्ट ने किया रद्दः 65 फीसदी आरक्षण वाला बिहार सरकार का ये फैसला अमल में आता इससे पहले ही एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पटना हाई कोर्ट ने 20 जून 2024 को इस फैसले को संविधान की धाराओं का उल्लंघन करनेवाला बताया और रद्द कर दिया.

आरक्षण है तो सियासत है ! (ETV BHARAT)

2 जुलाई को SC गयी बिहार सरकारः पटना हाई कोर्ट के फैसले के बाद से ही इस मसले को लेकर सियासी तकरार बढ़ गयी और विपक्ष सरकार पर हमलावर हो गया. जिसके बाद सरकार ने 2 जुलाई को पटना हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सरकार को सुप्रीम कोर्ट से भी निराशा हाथ लगी और 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए सितंबर में सुनवाई का भरोसा जरूर दिया.

नया आरक्षण कानून (ETV Bharat GFX)

9वीं अनुसूची में भी पेचःसुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विपक्ष जहां सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है वहीं सरकार का दावा है कि सितंबर में जब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई करेगा तो फैसला बिहार सरकार के हक में ही आएगा. इसके अलावा बिहार सरकार ये भी कह रही है कि आरक्षण बढ़ानेवाले फैसले को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालने का प्रस्ताव भी केंद्र सरकार के पास भेजा जा चुका है, लेकिन कानूनी जानकारों का कहना है कि फिलहाल कोर्ट ने कानून निरस्त कर दिया है तो इसे केंद्र सरकार 9वीं अनुसूची में कैसे डाल सकता है ?

क्या केंद्र बनेगा नीतीश का सहारा ? (ETV BHARAT)

" पटना हाई कोर्ट ने बिहार सरकार के 65 फीसदी आरक्षण वाले कानून को फिलहाल निरस्त कर दिया है और सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट का फैसला बरकरार रखा है, ऐसे में तथ्य ये है कि आज की तारीख में 65 फीसदी आरक्षण वाला कानून है ही नहीं तो केंद्र सरकार किस कानून को 9वीं अनुसूची में डालेगी."-दीनू कुमार, वरिष्ठ अधिवक्ता और याचिकाकर्ता

'9वीं अनुसूची में डालने के बाद भी SC कर सकता है समीक्षा': आरक्षण के मसले पर पटना हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता दीनू कुमार का ये भी कहना है कि मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि 9वीं अनुसूची में डाल देने से सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा की शक्ति खत्म नहीं हो जाती है और जब तक मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है केंद्र सरकार कुछ नहीं कर सकती है.

क्या है नवीं अनुसूचि (ETV Bharat GFX)

तमिलनाडु में 79 फीसदी आरक्षण लागूःआरक्षण को लेकर कई सियासी दल तमिलनाडु का उदाहरण देते हैं जहां प्रदेश की सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 79 फीसदी आरक्षण का कानून लागू है. दरअसल 1992 में इंदिरा साहनी मामले में सुनवाई करते हुए SC ने आरक्षण की अधिकतम सीमा तय कर दी थी

तमिलनाडु का मसला भी SC के विचाराधीनः1994 में जयललिता ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत 69 फीसदी आरक्षण वाला बिल विधानसभा से पास करवाया और तत्कालीन केंद्र सरकार ने उस फैसले को 9वीं अनुसूची में भी डाल दिया. इस तरह EWS के 10 फीसदी आरक्षण को मिलाकर तमिलनाडु में 79 फीसदी आरक्षण लागू है, लेकिन अभी भी तमिलनाडु का मसला SC के विचाराधीन है.

केंद्र सरकार के सामने कठिन चुनौतीः बिहार में 65 फीसदी का आरक्षण वाला मामला केंद्र सरकार के लिए भी कम सांसत वाला मसला नहीं है. बिहार सरकार ने इसे 9वीं अनुसूची में डालने का प्रस्ताव भेज रखा है. ऐसे में केंद्र सरकार इस मसले पर बिहार सरकार का समर्थन करती है तो इसी तरह की मांग कई राज्यों से उठ सकती है और तब केंद्र सरकार के सामने बड़ी मुश्किल भरी घड़ी उपस्थित हो सकती है.

इधर कुआं, उधर खाई ! (ETV BHARAT)

विपक्ष को मिला नया सियासी हथियारःइधर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जहां बिहार सरकार को झटका लगा है वहीं बिहार विधानसभा चुनाव से पहले विपक्ष को सियासत का नया हथियार मिल गया है. आरजेडी के मुख्य प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव का कहना है कि आरक्षण का मसाला गरीबों से जुड़ा हुआ है और उनके हक की लड़ाई हम लड़ते रहेंगे.

"बिहार सरकार ने न्यायालय में मजबूती से अपना पक्ष नहीं रखा जिसके चलते आज यह स्थिति उत्पन्न हुई है वैसे भी नीतीश कुमार का आरक्षण के मसले पर दोहरा चेहरा कई बार उजागर हुआ है. बीजेपी और जेडीयू दोनों ही आरक्षण विरोधी हैं.हम इस मुद्दे को जनता की अदालत में ले जाने का काम करेंगे."-शक्ति सिंह यादव, मुख्य प्रवक्ता, आरजेडी

'बेवजह हाय तौबा कर रहा है आरजेडी': वहीं सरकार इसको लेकर सफाई देती नजर आ रही है. जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा का कहना है कि हमारे नेता नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना करायी और उसके आधार पर आरक्षण की सीमा को बढ़ाने का फैसला लिया.

"नीतीश कुमार ने आरक्षण के मसले को 9वीं अनुसूची में डालने के लिए प्रस्ताव भी केंद्र को भेजा है. हम मजबूती से सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखेंगे और हमें उम्मीद है कि फैसला हमारे पक्ष में आएगा. आरजेडी के लोग इस मसले पर बिना मतलब के हाय तौबा मचा रहे हैं."-उमेश सिंह कुशवाहा, प्रदेश अध्यक्ष, जेडीयू

'हम आरक्षण के पक्ष में हैं': वहीं इस मामले पर बीजेपी के प्रदेश महामंत्री जगन्नाथ ठाकुर का कहना है कि हम आरक्षण के पक्ष में हैं. आरजेडी के लोग कभी भी आरक्षण के पक्ष में नहीं रहे. सुप्रीम कोर्ट में हम लोग मजबूती से अपना पक्ष रखेंगे और हमें उम्मीद है कि फैसला हमारे पक्ष में आएगा.

विधानसभा चुनाव में बन सकता है बड़ा मुद्दाः बिहार विधानसभा चुनाव में अब करीब 1 साल का समय बचा है और जिस हिसाब से आरक्षण को लेकर घमासान मचा हुआ है इसमें कोई शक नहीं कि 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरक्षण बहुत बड़ा मुद्दा बनकर उभर सकता है.

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Last Updated : Aug 1, 2024, 12:03 PM IST

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