पटनाःबिहार में जातीय जनगणना कराने के बाद 9 नवंबर 2023 को तत्कालीन महागठबंधन सरकार ने बिहार की सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दलितो-पिछड़ों के लिए आरक्षणका दायरा 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी वाला बिल विधानमंडल से पास किया और इसे कानून की शक्ल देकर लागू भी कर दिया. महागठबंधन का ये फैसला तब सियासी स्ट्रोक माना जा रहा था लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के ताजा रुख के बाद यही फैसला बिहार की नीतीश सरकार के लिए गले की हड्डी बन गया है.
सरकार के फैसले को पटना हाई कोर्ट ने किया रद्दः 65 फीसदी आरक्षण वाला बिहार सरकार का ये फैसला अमल में आता इससे पहले ही एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पटना हाई कोर्ट ने 20 जून 2024 को इस फैसले को संविधान की धाराओं का उल्लंघन करनेवाला बताया और रद्द कर दिया.
2 जुलाई को SC गयी बिहार सरकारः पटना हाई कोर्ट के फैसले के बाद से ही इस मसले को लेकर सियासी तकरार बढ़ गयी और विपक्ष सरकार पर हमलावर हो गया. जिसके बाद सरकार ने 2 जुलाई को पटना हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सरकार को सुप्रीम कोर्ट से भी निराशा हाथ लगी और 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए सितंबर में सुनवाई का भरोसा जरूर दिया.
9वीं अनुसूची में भी पेचःसुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विपक्ष जहां सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है वहीं सरकार का दावा है कि सितंबर में जब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई करेगा तो फैसला बिहार सरकार के हक में ही आएगा. इसके अलावा बिहार सरकार ये भी कह रही है कि आरक्षण बढ़ानेवाले फैसले को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालने का प्रस्ताव भी केंद्र सरकार के पास भेजा जा चुका है, लेकिन कानूनी जानकारों का कहना है कि फिलहाल कोर्ट ने कानून निरस्त कर दिया है तो इसे केंद्र सरकार 9वीं अनुसूची में कैसे डाल सकता है ?
" पटना हाई कोर्ट ने बिहार सरकार के 65 फीसदी आरक्षण वाले कानून को फिलहाल निरस्त कर दिया है और सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट का फैसला बरकरार रखा है, ऐसे में तथ्य ये है कि आज की तारीख में 65 फीसदी आरक्षण वाला कानून है ही नहीं तो केंद्र सरकार किस कानून को 9वीं अनुसूची में डालेगी."-दीनू कुमार, वरिष्ठ अधिवक्ता और याचिकाकर्ता
'9वीं अनुसूची में डालने के बाद भी SC कर सकता है समीक्षा': आरक्षण के मसले पर पटना हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता दीनू कुमार का ये भी कहना है कि मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि 9वीं अनुसूची में डाल देने से सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा की शक्ति खत्म नहीं हो जाती है और जब तक मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है केंद्र सरकार कुछ नहीं कर सकती है.
तमिलनाडु में 79 फीसदी आरक्षण लागूःआरक्षण को लेकर कई सियासी दल तमिलनाडु का उदाहरण देते हैं जहां प्रदेश की सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 79 फीसदी आरक्षण का कानून लागू है. दरअसल 1992 में इंदिरा साहनी मामले में सुनवाई करते हुए SC ने आरक्षण की अधिकतम सीमा तय कर दी थी
तमिलनाडु का मसला भी SC के विचाराधीनः1994 में जयललिता ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत 69 फीसदी आरक्षण वाला बिल विधानसभा से पास करवाया और तत्कालीन केंद्र सरकार ने उस फैसले को 9वीं अनुसूची में भी डाल दिया. इस तरह EWS के 10 फीसदी आरक्षण को मिलाकर तमिलनाडु में 79 फीसदी आरक्षण लागू है, लेकिन अभी भी तमिलनाडु का मसला SC के विचाराधीन है.
केंद्र सरकार के सामने कठिन चुनौतीः बिहार में 65 फीसदी का आरक्षण वाला मामला केंद्र सरकार के लिए भी कम सांसत वाला मसला नहीं है. बिहार सरकार ने इसे 9वीं अनुसूची में डालने का प्रस्ताव भेज रखा है. ऐसे में केंद्र सरकार इस मसले पर बिहार सरकार का समर्थन करती है तो इसी तरह की मांग कई राज्यों से उठ सकती है और तब केंद्र सरकार के सामने बड़ी मुश्किल भरी घड़ी उपस्थित हो सकती है.