पटनाः निरक्षर होने के बावजूद अपनी कला से दुनियाभर में पहचान कायम करनेवाली दुलारी देवी की जिंदगी कड़े संघर्ष का दस्तावेज है. लेकिन अति पिछड़े समुदाय से आनेवाली दुलारी देवी ने अपने हौसले और मेहनत से जीवन की कठिन बाधाओं को पार कर न सिर्फ अपनी मंजिल पाई बल्कि दूसरों के लिए भी बड़ी प्रेरणा हैं.
दुःखों से भरा रहा बचपन: मधुबनी जिले के रांटी की रहने वाली 60 वर्षीय दुलारी देवी मल्लाह जाति से आती है. जिस परिवार में दुलारी ने जन्म लिया उस परिवार के पास दुलारी देवी को पढ़ाने के लिए न सोच थी और न पैसे. लिहाजा दुलारी देवी स्कूल नहीं जा पाईं और अनमोल अक्षर ज्ञान से वंचित रह गयीं. इतना ही नहीं कम उम्र में शादी और 6 महीने की संतान को खोने के बाद दुलारी करीब टूट सी गयी थी और मायके लौट आई. उसके बाद तो फिर ससुराल जाना नसीब नहीं हुआ.
दुलारी को मिला कर्पूरी देवी का सहाराः जीवन यापन के लिए दुलारी देवी ने अपने गांव में ही चर्चित मिथिला पेंटिंग की कलाकार कर्पूरी देवी और महासुंदरी देवी के घर झाड़ू-पोछा का काम शुरू किया.धीरे-धीरे दुलारी देवी की अभिरुचि मिथिला पेंटिंग में हो गई और वह मिथिला पेंटिंग बनाने की कोशिश करने लगी. कर्पूरी देवी ने दुलारी देवी को एक चौकी दी. अब दुलारी देवी काम निपटाने के बाद देर रात तक पेंटिंग करने लगीं. कड़ी मेहनत और लगन ने थोड़े ही दिनों में दुलारी देवी को एक दक्ष कलाकार बना दिया.
" मुझे कर्पूरी देवी ने रहने की जगह दी. मैं उनके साथ 25 साल तक रही. महासुंदरी देवी के यहां मैं मजदूरी का काम किया करती थी दोनों ने मुझे मिथिला पेंटिंग सिखाया . महा सुंदरी देवी के यहां काम करने के बदले तब मुझे 6 रुपये तनख्वाह मिलती थी."-पद्मश्री दुलारी देवी, कलाकार, मिथिला पेंटिंग
पहली पेंटिंग के लिए मिले थे 5 रुपयेः दुलारी देवी बताती हैं कि उन्होंने पहली पेंटिंग मछुआरे की बनाई थी. उसके सिर पर एक टोकरी में मछली और कंधे पर एक बैग था. इसके बाद उन्होंने कई पेंटिंग बनाई जो काफी चर्चित हुईं. पहली पेंटिंग के लिए दुलारी देवी को 5 रुपये मिले थे. इसके बाद तो दुलारी देवी ने कई पेंटिंग्स बनाई जो देश-दुनिया में चर्चित हुईं.