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चिराग को वापस मिला पिता का पार्टी कार्यालय, चाचा पारस के खाली करने के बाद नारियल तोड़कर किया प्रवेश - CHIRAG PASWAN

पशुपति पारस के द्वारा वन व्हीलर रोड कार्यालय खाली करने के बाद चिराग पासवान ने आज इसमें इंट्री ली. इस दौरान वो भावुक हो गये.

Chirag Paswan
चिराग पासवान. (ETV Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Nov 15, 2024, 10:50 PM IST

पटना:लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को बिहार में कार्यालय के लिए भवन मिल गया. राज्य सरकार ने वन व्हीलर रोड बंगला उनको आवंटित किया था. कार्तिक पूर्णिमा के दिन 15 नवंबर को चिराग पासवान ने नारियल तोड़कर भवन में प्रवेश किया. बता दें कि यह कार्यालय रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा को आवंटित की गयी थी. बाद में लोजपा में टूट होने के बाद से इस बंगले पर पारस गुट की रालोजपा का कब्जा था. बिहार सरकार ने रालोजपा से कार्यालय वापस लेते हुए चिराग पासवान को आवंटित कर दिया था.

भावुक हुए चिरागः लोजपा आर के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान, पिता रामविलास पासवान की मौत के बाद लगभग तीन साल बाद अपने पुराने पार्टी कार्यालय पहुंचे थे. कार्यालय का मुआयना किया. इस दौरान चिराग पासवान पत्रकारों से बात करते हुए भावुक हो गए. उन्होंने पिता से जुड़ी कई संस्मरण को याद किया. साथ ही पार्टी में टूट के लिए अपने चाचा पशुपति पारस को जिम्मेवार ठहराया. चिराग पासवान के साथ लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी, जमुई सांसद अरुण भारती, राष्ट्रीय महासचिव सत्यानंद शर्मा, युवा महासचिव अनिल कुमार पासवान के साथ बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता मौजूद थे.

चिराग पासवान. (ETV Bharat)

"इस कार्यालय से पिताजी तथा पूरे परिवार की यादें जुड़ी हैं. मुझे फिर यह मिला है. निश्चित तौर पर इस कार्यालय से हमारे चाचा की यादें भी जुड़ी हैं. लेकिन परिस्थितियां बदलती हैं, यह परिस्थितियां उन्हीं के द्वारा बनाई गई है कि आज हमलोग अलग-अलग हैं."- चिराग पासवान, केंद्रीय मंत्री

चिराग पासवान. (ETV Bharat)

क्या है बंगला का विवादः रामविलास पासवान ने 2000 में लोकजन शक्ति पार्टी का गठन किया था. 8 अक्टूबर 2020 के निधन के बाद लोजपा में टूट हो गयी. तब चिराग के पास कोई सांसद नहीं रहे. पारस केंद्र में मंत्री बने और इस बंगले पर उनकी पार्टी रालोजपा का कब्जा हो गया. लोकसभा चुनाव 2024 में चिराग पासवान एनडीए में शामिल हुए. उनके पांच सांसद बने और उन्हें यह बंगला आवंटित कर दिया गया. पशुपति पारस बिहार सरकार के इस निर्णय के खिलाफ कोर्ट भी गये. लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली. कोर्ट के आदेशानुसार पारस ने 14 नवंबर को बंगला खाली कर दिया.


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