एमपी डेस्क.सबसे पहले समझना होगा कि ओपीएस यानी ओल्ड पेंशन स्कीम और एनपीएस यानी न्यू पेंशन स्कीम में क्या अंतर है. तो बता दें कि जैसा की नाम है, ओपीएस यानी ओल्ड पेंशन स्कीम कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना थी जिसमें कर्मचारी को बिना अंशदान रिटायरमेंट पर अपने वेतन के 50 प्रतिशत बराबर पेंशन के रूप में दिए जाते थे. 2005 के बाद से इस पेंशन योजना का लाभ नए कर्मचारियों के लिए बंद कर दिया गया और फिर एनपीएस यानी नेशनल पेंशन स्कीम अस्तित्व में आई.
एनपीएस से खुश नहीं हैं कर्मचारी
नेशनल पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट की राशि कर्मचारी के डिडक्शन पर निर्भर करती है. जनवरी 2024 तक कर्मचारी के मूल वेतन का 10 प्रतिशत हिस्सा एनपीएस डिडक्शन में आता था और उतनी राशि कर्मचारी के रिटायरफंड में जमा कर दी जाती थी. वहीं अब एनपीएस डिडक्शन बढ़ाकर 10 से 14 प्रतिशत कर दिया गया है. इसके बावजूद केंद्र ही नहीं मध्यप्रदेश के कर्मचारी नाराज हैं, क्योंकि 14 प्रतिशत डिडक्शन होने के बाद भी रिटायरमेंट के दौरान उतनी राशि नहीं मिल पाती जितनी ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत दी जाती है. सबसे बड़ी बात यह है कि एनपीएस की राशि शेयर मार्केट पर निर्भर रहती है, इससे पेंशन कितनी मिलेगी इसका अनुमान लगाना मुश्किल होता है.
एनपीएस से मिलने वाला फंड बेहद कम
नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के प्रदेश अध्यक्ष परमानंद डेहरिया ने ओल्ड पेंशन स्कीम और नेशनल पेंशन स्कीम को लेकर कहा, 'सरकारी योजनाओं में हितग्राही को जितनी राशि मुफ्त में मध्य प्रदेश सरकार दे रही है, नेशनल पेंशन स्कीम में उतनी राशि भी पेंशन के तौर पर कर्मचारी को नहीं मिल पा रही.'' नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के प्रदेश अध्यक्ष का ये बयान एमपी सरकार द्वारा फ्री में धनराशि बांटने वाली योजनाओं पर सीधा कटाक्ष भी है. परमानंद डेहरिया ने कहा कि एनपीएस से मिलने वाली राशि इतनी नहीं है कि लोग रिटायरमेंट के बाद ठीक से जीवन यापन कर सकें.