शिमला:एक गांव में नंबरदार की हैसियत क्या होती है, इससे लगभग सभी ग्रामीण परिचित हैं. ये नंबरदारों का रुआब ही है कि गांव में किसी भी तरह के असामाजिक तत्वों की शिकायत उनके पास की जाती रही है. हिमाचल में एक लोकगीत में नंबरदार के रसूख का इस बात से पता चलता है कि गांव की कुछ युवतियां उसके पास शिकायत लेकर जाती हैं कि शरारती लड़कों को समझा लो, वो आते-जाते राह में महिलाओं को देखकर सीटियां मारते हैं. ये मीठी छेड़छाड़ वाला लोकगीत है, लेकिन इसमें नंबरदार की हैसियत का पता चलता है. इतनी भूमिका बांधने का आशय ये है कि अब इन्हीं नंबरदारों को शिमला जिला के डीसी अनुपम कश्यप ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण सामाजिक कार्य सौंपा है.
हिमाचल के युवा नशे का शिकार हो रहे हैं. गांव-गांव में नशा पहुंच गया है. डीसी शिमला ने जिला के 405 नंबरदारों को एक बड़ी जिम्मेदारी देते हुए कहा है कि उन्हें हर 15 दिन में अपने अधिकार क्षेत्र वाले ग्रामीण इलाकों में नशे से जुड़ी हर सूचना संबंधित थाने को देनी होगी. डीसी अनुपम कश्यप ने ईटीवी को बताया कि जिला में 405 नंबरदार हैं. उन्हें हर माह 4200 रुपये मानदेय मिलता है. राजस्व नियमों में नंबरदारों की कुछ ड्यूटीज हैं. जिला प्रशासन ने ये तय किया है कि अब नंबरदार नशे के खिलाफ सरकार के अभियान में इस तरह से सहयोग करेंगे. इससे नंबरदारों में भी एक जिम्मेदारी का अहसास आएगा कि सरकार ने उन्हें अपने एक महत्वपूर्ण मिशन का हिस्सा बनाया है. डीसी ने बताया कि जैसे ही नंबरदार अपने इलाकों में नशे की गतिविधियों को लेकर सूचना पुलिस तक पहुंचाएंगे, पुलिस उस शिकायत पर तुरंत एक्शन लेगी. डीसी ने कहा कि वे खुद इस मुहिम की मॉनिटरिंग करेंगे.
ग्रामीण समाज की अहम कड़ी हैं नंबरदार