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अब दो दिन में काम करने लगेंगी टूटी-फूटी, कटी अंगुलियां, लखनऊ के डाॅक्टरों ने खोजी नई तकनीक - SGPGI Lucknow New Invention

संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजी पीजीआई) के डॉक्टरों ने ऐसी तकनीक खोजी है, जिससे टूटी हुई अंगुली केवल दो दिन में ही मूवमेंट करने लगेगी.

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लखनऊ संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में फ्रैक्चर का इलाज हुआ तेज (Photo Credit: ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 27, 2024, 4:09 PM IST

Updated : Aug 27, 2024, 5:01 PM IST

जानकारी देते प्रो. राजीव अग्रवाल (Video Credit: ETV Bharat)

लखनऊ:कलाई अंगुली या अंगुली का पोर टूटने पर उसमें तार (वायर) डालकर छह से आठ सप्ताह के लिए फिक्स किया जाता है. लेकिन, संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजी पीजीआई) ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे टूटी हुई अंगुली दो दिन में ही मूवमेंट करने लगेगी. लखनऊ पीजीआई में जो भी मरीज इस समय फ्रैक्चर के आ रहे हैं, उन्हें इसी तकनीक से ठीक किया जा रहा है. दो दिन के भीतर उंगली का सक्रिय होना अपने आप में बड़ी बात है और 15 दिन में हाथ बिल्कुल ठीक हो जाएगा.

संजय गांधी पीजीआई के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो. राजीव अग्रवाल ने बताया कि इसमें सर्जरी की जगह पता नहीं लगती है. इसमें बारीकी से चीरा लगाकर हड्डी को जोड़ दिया जाता है. ओपेन रीडक्शन इंटरनल फिक्सेशन (ओआरआईएफ) तकनीक जरिए यह संभव होता है. यह तकनीक अपनाने वाला प्रदेश का पहला संस्थान है. यह सूक्ष्म सर्जरी प्लास्टिक सर्जन ही कर सकते हैं. कलाई की नीचे की हड्डी जैसे अंगुली या अंगुलियों के फ्रैक्चर को नई तकनीक से जोड़कर दो दिन में ही गति (मूवमेंट) देना संभव हो गया है.

पहले वायर डालकर किया जाता था ट्रीटमेंट:प्रो. राजीव अग्रवाल ने कहा कि दुर्घटना या चोट लगने पर कई बार अंगुली या उनके पोर की हड्डी टूट जाती है. इससे अंगुली का मूवमेंट नहीं हो पाता है. ऐसे मामलों में पहले के वायर अंदर डालकर पूरी अंगुली को छह से आठ सप्ताह के लिए फिक्स किया जाता रहा है. इससे कलाई के नीचे की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं. उनमें कड़ापन आ जाता है. सूजन भी आ जाती है. कई बार इसके बाद भी पोर की हड्डी नहीं जुड़ती है.

टूटी हड्डी को किया जाता है फिक्स: इस तकनीक से जिस पोर में फ्रैक्चर है, उसमें हड्‌डी से त्वचा को हटाकर उसमें प्लेट लगाकर टूटी हड्डी को फिक्स कर दी जाती है. इससे के वायर डालने की जरूरत नहीं होती और दो दिन में ही उंगली चलने योग्य हो जाती है. यह बहुत सूक्ष्म सर्जरी है, जिसे प्लास्टिक सर्जन ही कर सकते हैं. बच्चों और बुजुगों के लिए यह तकनीक वरदान है, क्योंकि अंगुली में मूवमेंट न होने पर वे काम नहीं कर पाते हैं. एक माह पहले प्रारंभ हुई इस सुविधा से अब तक आधा दर्जन से अधिक मरीजों को फायदा हो चुका है.

नर्व स्टिमुलेटर से टूटी मांसपेशी खोजकर जोड़ना संभव: डॉ. राजीव ने बताया कि इस तकनीक के अलावा नर्व स्टिमुलेटर से टूटी मांसपेशी खोजकर जोड़ना भी आसान हो गया है. दुर्घटना में कई बार चेहरे पर चोट लग जाती है. इसमें कई बार चेहरे की फेशियल मांसपेशी क्षतिग्रस्त हो जाती है. यह मांसपेशी चेहरे के काम पानी पीना, कुल्ला करना, पलक का झपकना सहित भाव प्रकट करने में अहम भूमिका निभाती है. यह मांसपेशी 0.1 मिमी की होती है. इसे रिपेयर करने के लिए टूटी मांसपेशी को नर्व स्टिमुलेटर से खोजकर प्लास्टिक सर्जन ठीक करते हैं.

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Last Updated : Aug 27, 2024, 5:01 PM IST

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