उत्तराखंड:नवंबर महीने का उत्तराखंड के इतिहास में बहुत बड़ा महत्व है. सन् 2000 में इसी महीने की 9 तारीख को उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया था. इससे पहले तक हिमालय का ये हिस्सा उत्तर प्रदेश में था. रोचक तथ्य यह है कि नवंबर का महीना भारतीय इतिहास में 9 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों के गठन के लिए भी जाना जाता है.
उपेक्षित था उत्तराखंड:सबसे पहले बात करते हैं उत्तराखंड की. 9 नवंबर सन् 2000 को उत्तराखंड राज्य की स्थापना हुई थी. स्थापना के समय इसे उत्तरांचल नाम दिया गया था. दरअसल जब उत्तराखंड, यूपी का हिस्सा था तो उस समय विकास की योजनाएं पहाड़ नहीं चढ़ पाती थीं. तत्कालीन उत्तर प्रदेश का ये हिस्सा मंत्रियों, विधायकों, नेताओं और अफसरों के लिए पिकनिक स्पॉट की तरह था. स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन, कृषि और रोजगार यहां के लिए दूर की कौड़ी थी.
1938 में उठी थी पहली बार अलग राज्य की मांग: ऐतिहासिक दस्तावेजों को खंगालें तो अलग राज्य की मांग आजादी से भी पहले से चली आ रही थी. हिमालय के इस पहाड़ी हिस्से को राज्य बनाने की मांग पहली बार 5 से 6 मई 1938 के बीच श्रीनगर में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक विशेष सत्र में उठाई गई थी. आजादी के बाद भी अलग राज्य बनाने की मांग जिंदा रही. हालांकि इसने उतना जोर नहीं पकड़ा. लेकिन 90 का दशक उत्तराखंड राज्य आंदोलन का निर्णायक समय था.
42 राज्य आंदोलनकारियों ने दी थी शहादत:1994 में तो अलग राज्य की मांग जन आंदोलन बन गया था. आंदोलन इतना विस्तृत हो गया था कि इसमें राज्य के हर वर्ग, जाति-धर्म के लोगों की सहभागिता थी. विभिन्न जगहों पर अलग राज्य के आंदोलन में पुलिसिया दमन में 42 लोगों ने शहादत दी थी. अगर इसे भारत के आजादी के आंदोलन के बाद का सबसे बड़ा आंदोलन कहा जाए, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. आखिरकार 9 नवंबर 2000 को अलग राज्य का सपना पूरा हो गया.
पुलिस ने किया था भयानक दमन:1994 में जब उत्तराखंड राज्य आंदोलन अपने चरम पर था तो उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे. पुलिस ने तब राज्य आंदोलनकारियों पर खूब अत्याचार किए थे. यूपी सरकार के वकील द्वारा उच्च न्यायालय में जमा रिपोर्टों के मुताबिक 18 अगस्त 1994 से लेकर 9 दिसंबर 1994 तक 8 पहाड़ी जिलों में 20 हजार से ज्यादा गिरफ्तारियां की गई थीं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि तब उत्तराखंड राज्य आंदोलन कितने चरम पर था और पुलिस का दमन कितना क्रूर था.
खटीमा में पुलिस ने किया नरसंहार:1994 में उत्तराखंड राज्य आंदोलन अपने चरम पर था. तत्कालीन यूपी के इस पूरे हिस्से में उत्तराखंड आंदोलन का जोर था. लोग 'आज दो अभी दो, उत्तराखंड राज्य दो' के नारे लगा रहे थे. 1 सितंबर को खटीमा की सड़कों पर आंदोलनकारियों का हुजूम उमड़ पड़ा. मुलायम सिंह यादव की पुलिस ने राज्य आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसा दीं. पुलिस की गोली से 7 राज्य आंदोलनकारी शहीद हो गए थे. अनेक आंदोलनकारी घायल हो गए थे.
मसूरी में 6 राज्य आंदोलनकारियों ने दी शहादत:खटीमा गोलीकांड के विरोध में 2 सितंबर 1994 को राज्य आंदोलनकारियों ने मसूरी में आंदोलन किया. यहां भी मुलायम सिंह यादव की पुलिस ने क्रूरता की सारी हदों को पार कर दिया. पुलिस ने राज्य आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसा दीं. ऐसा लगा जैसे पुलिस दुश्मनों पर गोली चला रही हो. मसूरी में 6 राज्य आंदोलनकारी पुलिस की गोली से शहीद हो गए. अनेक लोग घायल हो गए.