जयपुर: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के पहले दिन शांति के लिए नोबेल पुरस्कार लेने वाले सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी ने अपनी ऑटोबायोग्राफी दियासलाई लॉन्च की. इस मौके पर उन्होंने कहा कि 15 साल की उम्र में उनकी तरफ से लिखी गई एक कविता ने उन्हें मोमबत्ती और अगरबत्ती बनने की जगह दियासलाई बनने की प्रेरणा दी. जिसके कारण वह अपने सामाजिक कार्यों के जरिए आज बाल श्रम के खिलाफ जागृति ला रहे हैं. इस कार्यक्रम के दौरान कैलाश सत्यार्थी ने अपने जीवन संघर्ष की जानकारी दी, साथ ही अपने जीवन के अनछुए पहलुओं को भी रूबरू किया.
कैलाश शर्मा से सत्यार्थी बनने का सफर : मध्य प्रदेश के निवासी कैलाश सत्यार्थी बचपन से ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रेरित रहे थे. एक ब्राह्मण परिवार में रहते हुए उन्होंने अपना नाम कैलाश शर्मा से सत्यार्थी के रूप में बदला. इसके पीछे 15 साल की उम्र में एक किस का उन्होंने जिक्र किया और बताया कि उनके गांव में ज्यादातर लोग गांधी के विचारों से प्रेरित थे. ऐसे में उन्होंने 2 अक्टूबर वाले दिन अछूत कहलाने वाली जातियों की महिलाओं को खाना बनाकर गांधी के विचारों से प्रेरित लोगों को खाना खिलाने के लिए कहा.
कैलाश सत्यार्थी ने क्या कहा, सुनिए... (ETV Bharat Jaipur) उनकी इस पहल का विरोध समाज के साथ-साथ परिवार में भी हुआ और परिजनों ने काफी विरोध जताया. यहां तक कि शुद्धिकरण के लिए 101 ब्राह्मण के पैर धोने के साथ-साथ उन्हें प्रयागराज संगम पर जाकर स्नान करने की भी सलाह दी गई. इस घटना से आहत होकर कैलाश सत्यार्थी ने सत्य के रास्ते पर चलते हुए अपने सरनेम को शर्मा से बदल दिया.
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राष्ट्रपति को सौंप दिया नोबेल पुरस्कार : साल 2014 में कैलाश सत्यार्थी को शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था. वह बताते हैं कि जब पुरस्कार की घोषणा के बाद उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. प्रणब मुखर्जी से मिलने का मौका मिला, तो उन्हें कहा गया कि रविंद्र नाथ टैगोर को मिला नोबेल पुरस्कार चोरी होने के बाद भारत वर्ष में किसी भी मूल भारतीय को नोबेल पुरस्कार नहीं मिला था.
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में कैलाश सत्यार्थी (ETV Bharat Jaipur) जिन भारतीयों के नाम पर नोबेल पुरस्कारों की घोषणा की गई, वे सभी विदेश से ताल्लुक रख रहे थे. लिहाजा, उन्होंने नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने के बाद इसे राष्ट्र की संपत्ति के रूप में राष्ट्रपति को सौंप दिया. कैलाश सत्यार्थी कहते हैं कि अगर भी इस पुरस्कार को अपने पास रखते, तो वह उनके परिवार की निजी संपत्ति हो जाता, लेकिन अब यह पुरस्कार राष्ट्र की संपत्ति है जो बाकी लोगों को भी प्रेरणा देगा कि वह बाल श्रम के खिलाफ काम करने के लिए आगे आएं और राष्ट्र का गौरव बनें.
जब बाथरूम के आईने से खींची खुद की तस्वीर : कैलाश सत्यार्थी ने अपनी ऑटोबायोग्राफी की लॉन्चिंग के मौके पर एक किस्से का जिक्र किया, जिसने माहौल को खुशनुमा बना दिया. दरअसल, कैलाश सत्यार्थी ने बताया कि कैसे वे हमेशा नोबेल पुरस्कार विजेता के साथ अपनी तस्वीर खिंचवाने की तमन्ना रखते थे. वह एकदफा दलाई लामा से भी मिले, लेकिन तब भी उन्हें इसका मौका नहीं मिल पाया. लिहाजा, जब नोबेल पुरस्कार की घोषणा हुई, तो एक पत्रकार के जरिए उन्हें इसकी जानकारी मिली.
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का पहला दिन (ETV Bharat Jaipur) इस दौरान उनके कई साथियों ने आकर उन्हें बधाई दी. इसके बाद कैलाश सत्यार्थी बाथरूम में गए और आईने के सामने खुद के मोबाइल से दनादन तस्वीरों को खींच लिया. इस तरह से उन्होंने बताया कि कैसे कैलाश सत्यार्थी ने नोबेल पुरस्कार विजेता के साथ खुद की तस्वीर खिंचवाने की ख्वाहिश को पूरा किया.