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ट्रेन में नहीं होती स्टीयरिंग, फिर भी कैसे बदलती है पटरी? जानें प्रक्रिया - Rail track change System

Rail track change System : ट्रेन आज परिवहन का खास माध्यम है. एक बार में कई यात्री इससे सफर करते हैं. सबसे कौतूहल ये है कि चंद सेंटीमीटर चौड़ी पटरी पर ये बहुत तेज और सुरक्षित तरीके से दौड़ती है. इसमें न तो हैंडल होता है न स्टीयरिंग,फिर भी रफ्तार में एक पटरी से दूसरी पटरी पर कैसे पहुंचती है? आज हम इसके बारे में हम आपको विस्तार से बताने जा रहे हैं.

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बिना स्टीयरिंग कैसे मुड़ती है ट्रेन (Etv Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 4, 2024, 10:49 PM IST

पटना : हम सभी यह बात तो भली-भांति जानते हैं कि सड़क पर चलने वाली कार, जीप, बस, ट्रक यहां तक की साइकिल में भी हैंडल होता है. इसके सहारे गाड़ी को मोड़ा या घुमाया जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि ट्रेन में स्टीयरिंग या हैंडल नहीं होता, फिर भी रेल एक पटरी से दूसरी पटरी कैसे पहुंच जाती है? देश के लाखों करोड़ों लोग प्रतिदिन ट्रेन से सफर करते हैं.

बिना स्टीयरिंग कैसे मुड़ती है ट्रेन: यह बात तो सबको पता है कि ट्रेन का पहिया लोहे का होता है और लोहे की पटरी होती है. पर बिना स्टीयरिंग, बिना हैंडल के ट्रेन ट्रैक कैसे चेंज करती है? रेल पटरी संचालन कर्ता आकाश कुमार ने बताया कि ट्रेन में स्टीयरिंग नहीं होता है. फिर भी ट्रेन ट्रैक कैसे चेंज करती है, यह एक दिलचस्प प्रक्रिया है. ट्रेन का ट्रैक चेंज करने के लिए स्विच या पॉइंट्स होते हैं. यह स्विच पटरियों के जंक्शन पर लगे होते हैं. जहां से ट्रेन एक पटरी से दूसरी पटरी पर मोड़ दी जाती है.

रेल के पहिए की खास बनावट (ETV Bharat)

सिग्नल सिस्टम: ट्रेन का चालक (लोको पायलट ) सिग्नल के माध्यम से मार्ग को बदलने के आदेश प्राप्त करता है. सिग्नलिंग सिस्टम के आधार पर स्विच पॉइंट को नियंत्रित किया जाता है. जब ट्रेन एक निश्चित बिंदु पर पहुंचती है तो सिग्नल के आधार पर स्विच पॉइंट्स को स्थानांतरित किया जाता है, जिससे ट्रेन एक पटरी से दूसरी पटरी पर मुड़ जाती है.

रेल की पटरी के पॉइंट्स : सिग्नल और स्विच पॉइंट्स को इंटरलॉकिंग सिस्टम द्वारा जोड़ा जाता है. जिससे सिग्नल और स्विच की स्थिति एक दूसरे के साथ तालमेल में होती है और यह सिस्टम सुनिश्चित करता है कि ट्रेन को सुरक्षित रूप से पटरी बदली जा सकती है.

ट्रैक बदलती ट्रेन: रेलवे सिग्नलिंग सिस्टम के जरिए ट्रेनों को निर्देश दिया जाता है कि किस दिशा में जाना है. सिग्नल मैनुअल या ऑटोमैटिक होता हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि स्विच सही पोजिशन में हो. स्विच को मूव करने के लिए इलेक्ट्रिक मोटर्स या मैनुअल लीवर सिस्टम का उपयोग किया जाता है. जब सिग्नल मिलता है, तब मोटर स्विच रेल को मूव करती है, जिससे ट्रैक की दिशा बदल जाती है.

रेल के पहिए की खास बनावट : रेल के पहिए की खास बनावट के चलते पॉइंट्स पर ट्रेन ट्रैक चेंज करती है. दोनों पहिए के किनारे ट्रैक के भीतर, नीचे तक लटके हुए होते हैं जो ट्रेन को पटरी से इधर उधर होने नहीं देते. यही पहिए पॉइंट्स के सहारे ट्रैक को चेंज करते हुए एक पटरी से दूसरी पटरी पर चढ़ जाता है.

मास्टर कंट्रोल रूम से संचालन: आगे बताया कि आधुनिक रेलवे नेटवर्क में कंप्यूटर कंट्रोल रूम होता है, जहां से ट्रेनों की मूवमेंट मॉनिटर की जाती है. ऑपरेटर सिग्नल्स और स्विच को कंट्रोल कर सकते हैं, ताकि ट्रेनें सही दिशा में जा सके. जब ट्रेन ट्रैक बदलती है, तो उसकी गति नियंत्रित रहती है. आमतौर पर स्विचिंग प्वाइंट्स पर स्पीड लिमिट्स होती हैं, ताकि ट्रेन सुरक्षित रूप से और स्मूथली ट्रैक चेंज कर सके. यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि स्विचिंग प्वाइंट्स पर ट्रेन की गति धीमी हो ताकि कोई झटका या खतरा न हो.

रेलवे ट्रैक की हैंडलिंग और ट्रेन का ट्रैक चेंज करने की प्रक्रिया सटीक इंजीनियरिंग और सिग्नलिंग सिस्टम पर आधारित है. स्विच और फ्रोग का सही तरीके से उपयोग, इलेक्ट्रिक मोटर्स और कंप्यूटर कंट्रोल रूम की सहायता से ट्रेनें सुरक्षित और प्रभावी रूप से ट्रैक बदल पाती हैं. इस पूरे सिस्टम का मुख्य उद्देश्य ट्रेनों की सुरक्षा और परिचालन को सुचारु रूप से बनाए रखना है.

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