भोपाल: मध्य प्रदेश के सभी सरकारी जिला अस्पताल उनसे जुड़े मेडिकल कॉलेज और 348 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को प्रदेश सरकार प्राइवेट हाथों में देने की तैयारी कर रही है. इन सभी स्वास्थ्य संस्थाओं का प्रबंधन, संचालन और मेंटेनेंस की जिम्मेदारी प्राइवेट हाथों में सौंपी जाएगी. इसको लेकर टेंडर प्रक्रिया शुरू हो गई है. स्वास्थ्य विभाग से जुडे तमाम संगठनों ने एक साथ मिलकर सरकार के इस कदम का विरोध जताया है. संगठनों ने आरोप लगाया है कि सरकार के इस फैसले से नुकसान सिर्फ आम मरीजों को होगा. सरकार द्वारा शुरू की गई टेंडर प्रक्रिया में प्रावधान किया जा रहा है कि इसमें 50 फीसदी मरीजों का ही मुफ्त में इलाज होगा.
संगठन ने बताई विरोध की वजह
यूनाइटेड ऑर्गेनाइजेशन फॉर एक्शन अगेंस्ट प्राइवेटाइजेशन ऑफ हेल्थ सर्विसेस के पदाधिकारी डॉ राकेश मालवीय के मुताबिक "सरकारी जिला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को निजी हाथों में सौंपे जाने की प्रक्रिया पहले भी कई राज्यों में हो चुकी है और उन राज्यों में यह प्रक्रिया पूरी तरह से फेल हो चुकी है. सरकार पूरी तरह से इलाज देने की गारंटी की जवाबदारी से पीछे क्यों हट रही है. सरकार के पास फंड, मैनपॉवर या इच्छाशक्ति की कमी है. सरकार क्या किसी औद्योगिक घराने को फायदा देने जा रही है. सरकार के इस पीपीपी मोड से गरीब मरीजों का कोई फायदा नहीं होने वाला इससे फायदा सिर्फ उद्योगपति को ही फायदा होगा."
विरोध में उतरे डॉक्टर्स
पदाधिकारी डॉ राकेश मालवीयका कहना है कि "सरकार द्वारा जारी की गई टेंडर प्रक्रिया में प्रावधान किया गया है कि 50 फीसदी मरीजों को मुफ्त में जबकि 50 फीसदी मरीजों को इलाज के लिए पैसे देने होंगे. जबकि आज सभी जिला सरकारी अस्पताल में सभी का मुफ्त में इलाज होता है. इतने बड़े निर्णय लेने के पहले सरकार द्वारा स्वास्थ्य विभाग से जुड़े किसी भी संगठनों से चर्चा नहीं की है. यह प्रक्रिया पूरी तरह से गलत हो रही है, इसे सरकार को तत्काल रोकना चाहिए. सरकार एक तरफा गलत निर्णय लेकर काम नहीं कर सकती. सरकार को चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े संगठनों से इसको लेकर चर्चा करनी होगी, इसके बाद ही आगे कदम बढ़ाना होगा."