सरकारी जमीन पर दबंगों ने किया कब्जा, मुक्तिधाम का रास्ता भी नहीं छोड़ा, गिरते-पड़ते ले जाते हैं अर्थी - dabangs captured government land
मुरैना जिले के कौंथर गांव में दबंगों ने सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया है. हालत ये है कि श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार करने जाने के लिए ग्रामीणों को कोई रास्ता नहीं बचा है. इससे परेशान होकर ग्रामीणों ने जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा है.
दबंगों ने किया कब्जा, मुक्तिधाम का रास्ता भी नहीं छोड़ा (ETV BHARAT)
मुरैना।जिले की पोरसा तहसील के अंतर्गत आने वाली बड़ी कौंथर पंचायत का बगियापुरा गांव का मुक्तिधाम 5 किलोमीटर दूर है. दबंगों ने गांव से मुक्तिधाम तक जाने वाले सरकारी रास्ते को खेतों के साथ जोत लिया है. बारिश के मौसम में इस रास्ते पर कीचड़ और दलदल के बीच से होकर लोगों को शवयात्रा लेकर मुक्तिधाम पहुंचना पड़ता है. इस समस्या को लेकर शुक्रवाार को बगियापुरा से आधा सैकड़ा से अधिक ग्रामीण महिलाएं-पुरुष कलेक्ट्रेट पहुंचे और एडीएम को ज्ञापन सौंपा.
मुरैना जिले के कौंथर गांव में सरकारी जमीन पर कब्जा (ETV BHARAT)
कीचड़भरी सड़क से गुजरने को मजबूर ग्रामीण
पोरसा ब्लॉक के कौथर कला पंचायत के बगीयापुरा गांव में सड़क नहीं है. ग्रामीण कीचड़ भरी सड़क से निकलने को मजबूर हैं. हालात ये हैं कि अगर गांव में किसी व्यक्ति की तबीयत बिगड़ जाए तो उसे 2 किलोमीटर तक पहले खटिया पर लिटाकर इस दलदलभरी सड़क से गुजरना पड़ता है. तब जाकर किसी वाहन के पहुंचने लायक सड़क नसीब होती है. ऐसे में गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीज हो तो उसकी तबीयत तो और भी बिगड़ने का खतरा बढ़ जाता है. हालांकि कई बार तो मरीज को लेकर ग्रामीण इस सड़क पर फिसल कर गिरकर घायल हो चुके हैं.
दबंगों ने सरकारी रास्ते पर किया कब्जा (ETV BHARAT)
मुरैना कलेक्ट्रेट पर धरने पर बैठी महिलाएं (ETV BHARAT)
मुरैना एडीएम को समस्याएं बताते ग्रामीण (ETV BHARAT)
अब बरसात का मौसम है. इन दिनों तो और भी सड़क की स्थति खराब हो जाती है. इस मामले मे ADM सीबी प्रसाद का कहना है "पोरसा से कुछ महिला पुरुष आये थे. सड़क की समस्या को लेकर मैंने संबधित अधिकारियों को निर्देश दिए हैं. जल्द ही इसका निराकरण कराया जायेगा." वहीं, ग्रामीण किरन बाई व इस्लाम खान का कहना है कि उनकी सुनवाई कोई नहीं कर रहा. हाल ही में 27 जून को गांव में रहने वाले 70 वर्षीय वृद्ध खुमान सिंह की मृत्यु हो गई थी. अंतिम संस्कार करने के लिए गांव से बाहर ले जाने के लिए परिजन और ग्रामीण उसकी अर्थी को लेकर निकले, लेकिन रास्ता ही नहीं था. कड़ी मशक्कत करते हुए ग्रामीण कीचड़ से बचते हुए गांव से बाहर पहचे, तब जाकर अंतिम संस्कार किया गया.