भोपाल।मध्य प्रदेश में रिश्तों की राजनीति नई करवट ले रही है. इस सावन में उठा ये सवाल इसलिए लाजिमी है क्योंकि चेहरे बदल चुके हैं. लाड़ली बहना योजना में 250 रुपए के शगुन के बाद सीएम मोहन यादव का लाड़ली बहनों से राखी बंधवाना और फिर गीत गाना, ये औपचारिकता भर तो नहीं है. एमपी में बीजेपी के मजबूत वोट बैंक को सहेजे रखने की कोशिश से ज्यादा अपनी राजनीति की राह पर बढ़ रहे राजनेता का सियासत में एक नई पहचान बनाने का दांव भी है. सवाल ये है कि क्या मामा शिवराज के बाद एमपी में अब मोहन भैया का दौर शुरु होने जा रहा है?
एमपी में अब बहनों के नए भैया मोहन भैया
इसमें दो राय नहीं कि डॉ मोहन यादव की राजनीति का अंदाज अलग है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पृष्ठभूमि उनके फैसलो में दिखाई और सुनाई देती है, लेकिन सत्ता संभालने के बाद एक के बाद एक चुनाव के इम्तेहान में आए मोहन यादव क्या अब अपनी छवि को लेकर सजग हुए हैं. लाड़ली बहनों के खाते में सावन के महीने में 250 रुपए का शुभ शगुन पहली बार नहीं था. पिछली सरकार में विधानसभा चुनाव के पहले इसकी शुरुआत हो चुकी थी, लेकिन डॉ मोहन यादव ने इस शुभ शगुन को बहनों तक कमोबेश उसी तरीके से पहुंचाया, जिस इमोशनल कनेक्ट की दरकार थी.
चित्रकूट में जब मोहन यादव ने फूलों का तारों का सबका कहना है... एक हजार में मेरी बहना है गुनगुनाया, तो लगा कि एमपी में रिश्तों की राजनीति नई करवट ले रही है. वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भटनागर कहते हैं 'डॉ मोहन यादव के काम करने का तरीका बिल्कुल अलग है. शिवराज सिंह चौहान का अंदाज अलग था, लेकिन रिश्तों की राजनीति ये बताती है कि आप महिला वोटर को इग्नोर नहीं कर सकते. जिसके करिश्मे पर एमपी में बीजेपी ने जीत के रिकार्ड बनाए हैं. उसको साधना जरूरी है.
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