रायपुर: राजधानी रायपुर में जनजातीय गौरव दिवस पर भव्य आयोजन किया गया. इसमें कई राज्यों से आदिवासी समाज के लोग पहुंचे. छत्तीसगढ़ के दूरस्त अंचलों से भी आदिवासी समाज के लोग कार्यक्रम में शामिल हुए. इन सब में शहीद गुंडाधुर के भी वंशज कार्यक्रम में उपस्थित रहे. उनका नाम गोन्चू धुर है और वह नेतानार (मुर्दा चूहा) के रहने वाले हैं. गोन्चू धुर पहली बार इस तरह के कार्यक्रम में शामिल हुए. इस दौरान ईटीवी भारत ने गोन्चू धुर से बात की है. गोन्चू जी को हिंदी नहीं आती थी तो उनके सहयोगी डॉक्टर गंगाराम कश्यप ने उनके विचारों को ईटीवी भारत से साझा किया.
गोन्चू धुर को आर्थिक मदद की जरूरत: डॉक्टर गंगाराम कश्यप जो धुर्वा समाज के संभागीय महासचिव हैं. उन्होंने बताया कि उन्होंने शहीद गुंडाधुर और उनके समाज पर पीएचडी की है. छत्तीसगढ़ के अलावा गुंडाधुर के परिवार के लोग ओडिशा सहित अन्य राज्यों में भी रहते हैं. गंगाराम ने बताया कि इनके पूर्वज अंग्रेजों से लड़ाई लड़ते हुए शहीद हो गए. धुरवा जाति के लोग सहज और सरल स्वभाव के होते हैं. उनमें कोई लालच नहीं होता है. यह जंगल के कंदमूल खाकर रहते हैं. खेती बाड़ी करके ये लोग आज भी अपना जीवन यापन कर रहे हैं. गंगाराम ने बताया कि शहीद वीर गुंडाधुर के परिजनों को अब तक वह स्थान नहीं मिला है जिसके वह हकदार थे.
रायपुर में जनजातीय गौरव दिवस (ETV BHARAT)
इन्हें आर्थिक रूप से मदद करें या फिर कोई नौकरी दी जाए. समाज की ओर से 2010 में गुण्डाधुर की मूर्ति लगाई गई थी. नेतरनाथ में भी उनकी मूर्ति लगाई गई है. हम 10 फरवरी को हर वर्ष उनके याद में स्मृति दिवस मनाते हैं. पूजा पाठ करते हैं और उस दिन पूरे समाज के लोग एकत्र होते हैं: डॉक्टर गंगाराम कश्यप, गोन्चू धुर के सहयोगी
शहीद वीर गुंडाधुर के वंशज (ETV BHARAT)
शहीद वीर गुंडाधुर के बारे में जानिए: शहीद वीर गुंडाधुर बस्तर के नेतनार गांव के रहने वाले थे. उन्होंने बस्तर विद्रोह में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने10 फरवरी1910 को अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ भूमकाल आंदोलन की शुरुआत की थी. इस आंदोलन में उन्होंने आदिवासियों के जल, जंगल, और ज़मीन की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी थी. गुंडाधुर को बस्तर के कई आदिवासी एक नायक के रूप में मानते हैं. अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले वीर गुंडाधुर को राज्य सरकार ने शहीद की उपाधि दी है. राज्य सरकार खेल प्रतिभाओं को उनके नाम पर पुरस्कृत करती है. इसके साथ ही कई सरकारी भवनों के नाम भी शहीद गुंडाधुर के नाम पर रखे गए हैं. कई पुरस्कारों को भी शहीद वीर गुंडाधुर के नाम पर दिया जाता है.
पहली बार ऐसे समारोह में शामिल होने आए शहीद वीर गुंडाधुर के वंशज से ईटीवी भारत ने बात की. उन्होंने सरकार से मदद की गुहार लगाई है.