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वराह मंदिर के 'द्वारपाल' धर्मराज की पूजा करने से कट जाते हैं सारे पाप! मकर संक्रांति पर है ये विशेष महत्व - VARAHA TEMPLE

अजमेर के वराह मंदिर के बाहर धर्मराज की प्रतिमा पर मकर संक्रांति के दिन श्रद्धालु एक कटोरी राई अर्पित करते हैं. जानिए क्या है महत्व...

वराह मंदिर के बाहर धर्मराज की प्रतिमा
वराह मंदिर के बाहर धर्मराज की प्रतिमा (ETV Bharat Ajmer)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jan 14, 2025, 10:43 AM IST

Updated : Jan 14, 2025, 11:28 AM IST

अजमेर : मकर संक्रांति का विशेष धार्मिक महत्व है. इस दिन दान-पुण्य और तीर्थ में स्नान किया जाता है. तीर्थ नगरी पुष्कर के इमली मोहल्ले में 900 वर्ष पुराने वराह मंदिर में द्वारपाल के रूप में मौजूद धर्मराज की अनूठी प्रतिमा है, जिसकी पूजा विशेषकर मकर संक्रांति पर होती है. मकर संक्रांति पर श्रद्धालु अपने पाप काटने की कामना लेकर धर्मराज की पूजा अर्चना कर उन्हें एक कटोरी राई अर्पित करते हैं. साथ ही बुढ़ापे में काम आने वाली वस्तुएं भी उन्हें भेंट की जाती है. मकर संक्रांति के दिन धर्मराज की पूजा अर्चना करने आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार कर्म को प्रधान बताया गया है. यही कर्म व्यक्ति के जीवन को नहीं बल्कि उसकी मृत्यु के उपरांत उसकी गति को भी तय करते हैं. व्यक्ति की ओर से अपने कर्मों से अर्जित पाप और पुण्य का लेखा जोखा भी रखा जाता है, जिसका दायित्व धर्मराज के पास होता है. व्यक्ति के राई-राई के पाप और पुण्य का लेखा जोखा देखने के बाद उसकी आत्मा को स्वर्ग या नरक में स्थान मिलता है. तीर्थराज गुरु पुष्कर में जगत पिता ब्रह्मा के मंदिर के अलावा 500 से भी अधिक मंदिर हैं. इनमें 900 वर्ष से भी अति प्राचीन भगवान वराह का मंदिर भी शामिल है. इस मंदिर परिसर में द्वारपाल स्वयं धर्मराज हैं. यानी भगवान वराह के दर्शन से पहले धर्मराज के दर्शन किए जाते हैं. धर्मराज की प्रतिमा अपने आप में अनूठी है.

वराह मंदिर के बाहर धर्मराज की प्रतिमा (ETV Bharat Ajmer)

पढ़ें.मकर संक्रांति पर 144 साल बाद बना 'मकर अमृत' योग, जानिए कब करें दान पुण्य

एकमात्र धर्मराज की प्रतिमा! :मंदिर के पुजारी पंडित आशीष पाराशर बताते हैं कि मंदिर में भगवान विष्णु के तीसरे वराह अवतार की प्रतिमा स्वयंभू है. वराह अवतार में भगवान विष्णु ने पाताल से पृथ्वी को अपने दांतों में रख बाहर निकाला था. दसवीं शताब्दी में ब्राह्मण राजा रुद्रदेव ने पुष्कर में वराह मंदिर का निर्माण करवाया था. इनके बाद 11वीं शताब्दी में चौहान वंश के राजा अर्णोराज चौहान ने मंदिर को भव्यता प्रदान की थी. मंदिर की सुरक्षा के लिए महाराणा प्रताप के भाई शक्ति सिंह ने आक्रांताओं से बचाव के लिए मंदिर के चारों ओर सुरक्षा दीवार बनवाकर इसको किले का रूप दे दिया. उन्होंने बताया कि मंदिर ने कई आक्रांताओं की हमले झेले हैं. इनमें मुगल शासक औरंगजेब ने भी मंदिर को नष्ट करने का प्रयास किया था, लेकिन जोधपुर के राजा अजीत सिंह ने औरंगजेब की सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया. हालांकि, इस युद्ध के बीच औरंगजेब ने मंदिर परिसर के कई हिस्सों को तोड़ दिया था. इसके बाद मंदिर की मरम्मत की गई थी.

वराह मंदिर के बाहर धर्मराज की प्रतिमा (ETV Bharat Ajmer)

एक कटोरी राई अर्पित करने से कट जाते हैं पाप! :पंडित आशीष पाराशर बताते हैं कि प्राचीन वराह मंदिर धरती से करीब 20 फीट ऊंचा है. इसकी किले नुमा आकृति लोगों को आकर्षित करती है. भगवान वराह मंदिर में लोगों की गहरी आस्था है. एकादशी और पूर्णिमा पर भगवान वराह के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. कार्तिक माह में पुष्कर आने वाले श्रद्धालु वराह मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं. तब धर्मराज के दर्शन भी जरूर करते हैं. खासकर मकर संक्रांति पर धर्मराज के दर्शन और पूजन करने आने वाले श्रद्धालु व्रत और धर्मराज जी की कथा करवाने का संकल्प लेते हैं. जिन लोगों ने धर्मराज के व्रत किए हैं वह मकर संक्रांति पर उजमना करते हैं. कई लोग मकर संक्रांति पर बुढ़ापे में आवश्यक वस्तुओं को भी धर्मराज को भेंट करते हैं. इनमें छाता, बर्तन, पलंग, वस्त्र आदि वस्तुएं हैं. उन्होंने बताया कि हर पूर्णिमा पर लोग धर्मराज की प्रतिमा के समक्ष दीपक जलते हैं और एक कटोरी राई अर्पित करते हैं. मकर संक्रांति को भी श्रद्धालु धर्मराज की प्रतिमा को एक कटोरी राई अर्पित करेंगे. धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से उनके पाप कट जाएंगे.

लोग जरूरत की वस्तुएं भी करते हैं दान (ETV Bharat Ajmer)
Last Updated : Jan 14, 2025, 11:28 AM IST

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