बलरामपुर:रामानुजगंज के आदिवासी जनजाति के लोग पूरी तरह से जंगल से मिलने वाले उत्पादों पर निर्भर है. जिनसे इनकी आजीविका चलती है. तेंदूपत्ता, महुआ फूल के बाद अब महुआ फल का मौसम है. जिससे बीनकर आदिवासी या तो इसे सीधे बाजार में बेचते हैं या फिर इसका तेल निकालकर मार्केट में बिक्री की जाती है.आदिवासी जनजाति बाहुल्य रामचंद्रपुर विकासखंड के गांवों में इन दिनों सड़कों के किनारे महुआ फल सुखाया हुआ नजर आ जाएगा.
आदिवासियों के जीवन का हिस्सा है महुआ और डोरी: सड़क पर डोरी सूखा रहे रामचंद्रपुर के रहने वाले वीरेन्द्र सिंह ने बताया "महुआ के पेड़ पर डोरी का फल लगता है. इस पहले सुखाया जाता है. गांव वाले सड़क पर ही महुआ का फल सुखाते हैं. फल अच्छी तरह से सूखने के बाद इसका छिलका निकाला जाता है. छिलके निकले ये फल बहुत कुछ पिस्ता जैसे नजर आते हैं. कुछ लोग इसे सीधा बाजार में बेच देते हैं. जबकि कुछ लोग इन फलों का तेल निकालकर मार्केट में बिक्री करते हैं. इससे होने वाली आमदनी से यहां के आदिवासी अपनी जरूरतें पूरी करते हैं.