पटना:मसाला के रूप में प्रयोग किए जाने वाले मंगरैला को आयुर्वेद में स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. साथ ही नगदी फसल होने के चलते किसानों को इसे बेचने में किसी तरह की परेशानी नहीं होती है. राजधानी पटना के मसौढ़ी प्रखंड के किसान इसकी खेती कर रहे हैं. मगरैला की खेती कम लागत में होती है, वहीं मुनाफा दोगुना होता है.
मसौढ़ी में मंगरैल की खेती:बता दें कि मसौढ़ी प्रखंड के शाहाबाद पंचायत के छाता गांव के तकरीबन 40-50 किसान मंगरैला की खेती से जुड़ गए हैं. अब मंगरेला की खेती से उन सभी की तकदीर संवर रही है. वहीं कृषि विभाग के अधिकारियों के द्वारा भी इस गांव को मसालों के रूप में चयनित किया गया है. समय-समय पर किसानों को मसालों की सही तरीके से खेती के लिए प्रशिक्षित भी किया जाता है.
बागवानी विकास मिशन से किसानों को फायदा: दरअसल कृषि रोड मैप में बागवानी विकास मिशन के तहत प्रखंड कृषि कार्यालय की ओर से किसानों को चयनित किया गया है, ताकि मसालों की सही तरीके से खेती कर उनकी आय दोगुनी हो सके. छाता गांव के किसानों का कहना है कि पारंपरिक कृषि तरीके को अपनाए जाने के कारण निरंतर कृषि क्षेत्र घाटे में जा रहा है. आज के दौर में खेती के आधुनिक तरीके अपनाकर ही कृषि उत्पादन में लाभ लिया जा सकता है.
"पारंपरिक खेती से हटकर मसाले की खेती करना काफी फायदेमंद है. अन्य किसानों को भी हम सभी प्रेरित कर रहे हैं. छाता पंचायत में तकरीबन 40 से 50 किसान मंगरैला की खेती कर रहे हैं. मंगरैला की फसल को नगदी फसल कहा जाता है, जिसमें कोई घाटा नहीं होता है. हम सभी लोग तकरीबन 30 सालों से खेती कर रहे हैं."-नरेश प्रसाद, किसान
मंगरैल की खेती का तरीका:किसानों ने बताया कि मंगरैला की खेती में गेहूं से चार गुना ज्यादा फायदा होता है. कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो चार एकड़ में गेहूं की खेती कर जितनी आमदनी बढ़ाई जा सकती है, उतनी एक एकड़ में मंगरैला की खेती से लाभ हो सकता है. बाजार में ₹400 से अधिक प्रति किलो की दर से बीज मिल जाता है. इसकी बोआई नवंबर माह में की जाती है, और फसल पकने में चार माह लगते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि इसकी खेती में कम खर्च आता है, इसके अलावा सिंचाई खपतवार नियंत्रण उर्वरक कीटनाशक के प्रयोग तक में काफी बचत होती है.