पटना : बिहार में पांचवे चरण में पांच लोकसभा सीटों पर मतदान होना है. इसी में से एक सीट है मधुबनी. मधुबनी की पहचान मिथिलांचल की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में होती रही है. हालांकि यहां की राजनीति भी काफी चर्चा में रहती है. इस बार के चुनैव में भी काफी दिलचस्प लड़ाई देखने को मिल सकती है.
24 की लड़ाई अशोक यादव Vs फातमी : 2024 लोकसभा चुनाव में मधुबनी की लड़ाई कई माइनों में अहम है. बीजेपी ने एक बार फिर से डॉ अशोक कुमार यादव को उम्मीदवार बनाया है. अशोक कुमार यादव 2019 का चुनाव बिहार में सबसे ज्यादा मतों से जीते थे. लेकिन 2024 में राजद ने उनके खिलाफ मिथिलांचल के बड़े अल्पसंख्यक चेहरे अली अशरफ फातमी को उम्मीदवार बनाया है. फातमी दरभंगा से चार बार सांसद रह चुके हैं.
AIMIM की एंट्री से गुणा-गणित शुरू : मधुबनी में अल्पसंख्यक वोटरों की संख्या अच्छी खासी है और यह निर्णायक भूमिका निभाती है. यही कारण है कि एआइएमआइएम ने इस बार मधुबनी से अपना प्रत्याशी खड़ा किया है. मधुबनी लोकसभा क्षेत्र में तीन विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जिसमें अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या अधिक है. विस्फी, केवटी और जाले इन तीनों विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है. यही कारण है कि एआइएमआइएम ने मो. वकार सिद्दीकी को अपना उम्मीदवार बनाया है. इसीलिए यह कहा जा रहा है कि मधुबनी लोकसभा में इस बार कांटे की लड़ाई है.
मधुबनी लोकसभा क्षेत्र :मधुबनी लोकसभा में 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. जिसमें चार मधुबनी जिले के और दो दरभंगा जिले के विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. मधुबनी जिला से हरलाखी, बेनीपट्टी, मधुबनी, बिस्फी हैं. केवटी और जाले विधानसभा सीट दरभंगा जिला का हिस्सा है. हरलाखी से जेडीयू के सुधांशु शेखर, मधुबनी से समीर कुमार महासेठ (राजद) विधायक हैं. बांकी चार सीट भाजपा के खाते में हैं. जाले से पूर्व मंत्री जीवेश कुमार, केवटी से मुरारी मोहन झा, बिस्फी से हरिभूषण ठाकुर बचौल और बेनीपट्टी से विनोद नारायण झा विधायक हैं.
क्या है जातिगत समीकरण ? : मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां ब्राम्हण मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है. यहां 15 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं. इसके बाद इस सीट पर यादव मतदाता की संख्या है. अति पिछड़ा समाज के मतदाताओं की संख्या करीब 6 लाख है. यहां 34% मतदाता अति पिछड़ा वर्ग के हैं, जिसमें 14 प्रतिशत यादव, 6 प्रतिशत कोयरी, 11 प्रतिशत दलित वोटर शामिल हैं.
'MY समीकरण नहीं चलता' : मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के बारे में कहा जाता है कि यहां आरजेडी का मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण नहीं चलता है. हुकुमदेव यादव के परिवार की पकड़ इस क्षेत्र के यादव मतदाताओं पर भी है. मिथिलांचल में यादवों में कृष्णनौठ यादव की संख्या ज्यादा है. हुकुमदेव नारायण यादव इसी वर्ग से आते हैं. इस कारण यादवों का यह समूह हुकुमदेव यादव के पक्ष में खड़ा रहता है. यही कारण है कि अच्छी संख्या में यादव मतदाता बीजेपी को वोट करते हैं. इसके अलावा यहां कुछ ऐसे इलाके हैं जहां जाति के नाम पर नहीं धर्म के नाम पर लोग वोट डालते हैं. जिसका राजनीतिक फायदा हुकुमदेव यादव और उनके पुत्र अशोक यादव को मिलता रहा है.
क्या कहते हैं विश्लेषक ? : वरिष्ठ पत्रकार डॉ अमरनाथ आनंद का कहना है कि मधुबनी जिले के सामने समस्याओं का अंबार है. उन्होंने कहा कि इसे यूं कहा जाए की "हरि अनंत हरिकथा अनंता" तो कोई गलत नहीं होगा. मधुबनी के किसानों की नकदी फसल ईख हुआ करती थी. लेकिन लोहट एवं रैयाम चीनी मिल बंद हो गया. पंडौल का औद्योगिक प्रांगण वीरान हो गया. पंडौल सूत मिल का सूत की मांग ढाका तक रहती थी. मिथिला की पहचान देने वाली मधुबनी पेंटिंग आज बिचौलियों की भेंट चढ़ रही है.
''मधुबनी के बारे में कहा जाता है कि यह बाढ़ की नैहर यानी मायका बन गई है. बाढ़ के कारण हर वर्ष अनेक आधारभूत संरचना क्षतिग्रस्त होती है. इस समस्या को लेकर सदन से लेकर सड़क तक आवाज उठाने वाला कोई नहीं मिला. चुनाव के समय में स्थानीय मुद्दे गौण पर जाते हैं. जातिगत मुद्दा हावी हो जाता है. 2024 लोकसभा चुनाव में भी सभी राजनीतिक दलों की नजर अति पिछड़ा वोट बैंक पर है.''-डॉ अमरनाथ आनंद, वरिष्ठ पत्रकार
मधुबनी की राजनीतिक विरासत :राजनीति के क्षेत्र में मधुबनी में अनेक बड़े नेता दिए हैं. कामरेड भोगेंद्र झा, जगन्नाथ मिश्रा, चतुरानंद मिश्रा, हुकुमदेव नारायण यादव, देवेंद्र प्रसाद यादव अनेक ऐसे चेहरे हुए जिन्होंने देश की राजनीति में अपनी पहचान बनाई. कामरेड भोगेंद्र झा पांच बार मधुबनी के सांसद रहे लेकिन कम्युनिस्ट के गढ़ में बीजेपी के हुकुमदेव नारायण यादव ने सेंध लगाई. मधुबनी से हुकुमदेव नारायण यादव 4 बार सांसद चुने गए. 2014 का चुनाव हुकुमदेव नारायण यादव ने जीता. लेकिन 2019 के चुनाव में उनके पुत्र डॉ अशोक कुमार यादव को भाजपा ने टिकट दिया और वह मधुबनी से सांसद चुने गए.