लखनऊःजैसे-जैसे लोकसभा चुनाव अपने अंतिम दौर की तरफ बढ़ रहा है उसी के साथ यूपी में बची हुई सीटों पर भाजपा और इंडी गठबंधन के बीच मुकाबला दिलचस्प होता जा रहा है. यूपी में अब अंतिम तीन चरणों की वोटिंग होनी है. प्रदेश की राजनीति के अनुसार पूर्वांचल की 21 लोकसभा सीटों पर सबसे अधिक जातीय समीकरण का मुकाबला होना है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी और इंडी गठबंधन दोनों ही अपना वर्चस्व साधने में जुटे हैं. 2014 व 2017 के मुकाबले 2019 व 2022 में भाजपा की पूर्वांचल में विधानसभा और लोकसभा दोनों में सीटों की संख्या कम रही. ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल की सभी सीटों पर दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलेगा.
पूर्वांचल में सियासत का मिजाज हमेशा की उन हिस्सों से अलग रहा है, जहां स्वभाव सत्ता विरोधी रहा है. पूर्वांचल किसी भी दल का लंबे समय तक खास बनकर नहीं रहा है. पूर्वांचल की पूरी राजनीतिक पृष्ठभूमि जातीय समीकरण पर निर्भर है. यह समीकरण लगभग हर चुनाव में बनता बिगड़ता है. यहां के अधिकतर क्षेत्रों में अति पिछड़ा वर्ग बड़े पैमाने पर चुनावी माहौल को प्रभावित करता है. लखनऊ विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस के विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर संजय गुप्ता ने बताया कि पूर्वांचल के सभी जिलों में राजभर, चौहान, कुर्मी, कुशवाहा, मौर्य, प्रजापति, निषाद, बिंद जैसी जातियां सबसे अधिक प्रभावी है.
उन्होंने बताया कि कुछ सीटों पर ब्राह्मण, मुस्लिम और दलित वोटर भी निर्णायक भूमिका में हैं. पूर्वांचल की राजनीति में धार्मिक और जातीय ध्रुवीकरण का बड़ा प्रभाव रहा है. धार्मिक ध्रुवीकरण की वजह से 2014 के बाद से ओबीसी वर्ग का झुकाव भाजपा की तरफ बढ़ा. इससे पहले जातीय ध्रुवीकरण की राजनीति यहां हावी थी. इसका लाभ सपा और बसपा दोनों पार्टियों को होता था. पूर्वांचल की इसी नब्ज को सपा और भाजपा दोनों पकड़े हुए. भाजपा जहां धार्मिक ध्रुवीकरण को हवा दे रही है. वहीं सपा कांग्रेस के साथ मिलकर पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) के सहारे जातीय दूरी कारण पर फोकस कर रही है.
पूर्वांचल में मुख्य रूप से लोकसभा की 21 सीटें हैं. जबकि विधानसभा की 105 सीटे हैं. लोकसभा सीटों में डुमरियागंज, बस्ती, संतकबीर नगर, लालगंज, आजमगढ़, जौनपुर, मछली शहर, भदोही, महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज शामिल हैं. इन 21 सीटों पर अंतिम दो चरणों में मतदान होना है. पूर्वांचल के राजनीतिक स्वभाव की बात करें तो देश में 2014 से पहले कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां सट्टा विरोध की ऐसी लहर बनी कि भाजपा ने इलाके की 21 में से 19 सीटों पर कब्जा कर लिया.
मिर्जापुर सीट को भाजपा के सहयोगी अपना दल ने जीत लिया. सिर्फ आजमगढ़ सीट समाजवादी पार्टी के हाथ लगी थी. 2019 का आम चुनाव आया तो केंद्र में भाजपा की सरकार थी. इसलिए पूर्वांचल का मिजाज कुछ बिगड़ गया और 2019 के लोकसभा चुनाव में 19 से 16 सीटों पर भाजपा आ गई. 2019 में सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था. बसपा ने गाजीपुर, घोसी और लालगंज सीट बीजेपी से छीन ली. जबकि सपा ने आजमगढ़ सीट पर अपनी जीत बरकरार रखी. यह बात और है कि केंद्र में भाजपा की दोबारा सरकार बनी लेकिन पूर्वांचल में सीटें कम हुईं थीं.