फरीदाबाद: फरीदाबाद का एक युवा, जिसने अपनी लाखों रूपये की पैकेज वाली नौकरी छोड़कर समाज सेवा करने की ठानी और अब सब कुछ छोड़कर आम लोगों की सेवा में लग गया. इनका नाम है पारस भारद्वाज. पारस आज फरीदाबाद में अपनी संस्था के जरिए जरूरतमंद लोगों के लिए सदैव खड़े नजर आते हैं.
समाज सेवा की प्रेरणा: फरीदाबाद के पारस भारद्वाज समाज सेवा की मिसाल पेश कर रहे हैं. बचपन से ही पढ़ने का शौक रखने वाले पारस ने यूपीएससी की कोचिंग का एक बड़ा केंद्र खोला जहां पर हजारों की संख्या में स्टूडेंट आते थे. लेकिन इसी बीच उनकी एक बड़ी बीपीओ कंपनी में नौकरी लग गई जिसके बाद वह अपने काम के साथ-साथ नौकरी भी करने लगे. इस दौरान उन्हें कई राज्यों में जाने का मौका मिला. जब वह कहीं जाते थे तो उन्होंने देखा कि निचले तबके के लोगों की बात कोई नहीं सुनता है. उन्हें कहीं इन्साफ जल्दी नहीं मिलता है. इन लोगों को अपने अधिकारों के बारे में भी नहीं पता होता है. यही सब देखकर पारस भारद्वाज ने फैसला लिया कि क्यों ना इन लोगों के लिए कुछ किया जाए और धीरे-धीरे वह समाज सेवा में जुट गए और ऐसे जुटे की उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और दिन-रात समाज सेवा करने लगे.
समाज के लिए काम: ईटीवी भारत से बातचीत में पारस भारद्वाज ने बताया कि समाज सेवा को लेकर कई एनजीओ के साथ जुड़ गया और अब इसी कड़ी में हमने राजस्थान के सबसे पिछड़े इलाके की पांच गांवों को गोद लिया है जहां पर शिक्षा, पीने का साफ पानी समेत सभी विकास कार्यों पर हम लोग कार्य कर रहे हैं. इसके अलावा हमने 'सेव फरीदाबाद' नाम से संस्था बनाया हैं जो लोगों को उनके अधिकार को अवेयर करती है. जहाँ भी उनको किसी मदद की जरुरत पड़ती है हम उनके साथ खड़े रहते हैं. पारस भारद्वाज बताते हैं फरीदाबाद में नगर निगम चुनाव होनी थी ऐसे में सरकार द्वारा वार्ड बंदी करवाई गई जिसमें हमें लगा कि सरकार अपने फायदे के लिए गलत वार्ड बंदी कर रही है. फिर हमने इसके खिलाफ एतराज जताया और कोर्ट की शरण में चले गए. इसके बाद दो बार वार्ड बंदी को रद्द किया गया. इसके अलावा डंपिंग यार्ड को लेकर रिवाजपुर गांव के लोग धरने पर बैठ गए क्योंकि उनके गांव में डंपिंग यार्ड बनाया जा रहा था. इसके खिलाफ हमने गांव वाले के साथ मिलकर आवाज उठाई. बाद में सरकार को भी बैक फुट पर आना पड़ा और वहां पर डंपिंग यार्ड नहीं बना. इसके अलावा फरीदाबाद में बहुत सी ऐसी सड़कें थी, जिस पर लोगों को चलने में मुश्किल होती थी. हमने उसको लेकर भी लोगों के साथ आवाज उठाई, जिसके बाद सड़क का निर्माण किया गया.