गया:तवे के समान तपती जमीन हो या फिर पैर को सुन्न कर देनेवाली कड़कड़ाती ठंड, वे खाली पैर ही चलते हैं. वो भी पूरे 45 साल से या यूं कहिए कि होश संभाला और उतार दिए जूते-चप्पल. जीवन भर जूते-चप्पल नहीं पहनने का संकल्प ही ले लिया. यहां तक कि विधानसभा टिकट के लिए भी फकीरचंद दास ने समझौता नहीं किया और अपने प्रण पर कायम रहे.
याद नहीं कि कब पहने थे जूते-चप्पल: गया जिले के बांके बाजार के जलालपुर गांव के रहनेवाले फकीरचंद दास हमेशा नंगे पैर ही रहते हैं. सर्दी हो या गर्मी हो, जंगली रास्ता हो या फिर पथरीला उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है. वो पिछले 45 सालों से नंगे पैर ही चलते आ रहे हैं. फकीरचंद दास का कहना है कि "जब से होश संभाला है, जूते या चप्पल नहीं पहने हैं. बचपन में मां-बाप ने पहना दिया होगा तो याद नहीं है".
"8 से 10 साल की उम्र में होश संभालने के बाद जूते या चप्पल नहीं पहने हैं. मेरी उम्र 55 साल के करीब की हो गई है, लेकिन अपने संकल्प पर अड़ा हुआ हूं. वाहन में भी बैठता हैं तो बगैर जूते-चप्पल के, इसके अलावा कहीं भी जाता हूं, चाहे वह राजनीतिक पार्टी की गतिविधियों या अन्य कोई गतिविधि हो, हर जगह नंगे पांव ही जाता हूं."- फकीरचंद दास, बिना जूता-चप्पल वाले नेता
विधानसभा टिकट के लिए भी नहीं तोड़ा प्रणः कई दशकों से राजनीति से जुड़े फकीरचंद दास कई बार विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं. एक बार उनके सामने बड़ी असमंजस की स्थिति पैदा हो गयी थी जब कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर ने उन्हें टिकट देने के लिए जूते-चप्पल पहनने की शर्त रख दी थी. दरअसल 2000 के विधानसभा उपचुनाव में बोधगया से फकीरचंद कांग्रेस के टिकट के दावेदार थे, लेकिन टाइटलर की शर्त थी कि जूते-चप्पल पहनने होंगे, तब भी फकीरचंद दास ने अपना प्रण नहीं तोड़ा. फकीरचंद की ऐसी दृढ़ता से टाइटलर खुश हो गये और टिकट दे दिया.