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झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर दुविधा में लालू यादव! संगठन पर अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का दबाव तो महागठबंधन को बनाए रखने की भी जिम्मेदारी - Jharkhand Assembly Election - JHARKHAND ASSEMBLY ELECTION

Jharkhand Assembly Election Seat. झारखंड विधानसभा चुनाव में सीट को लेकर लालू यादव असमंजस में हैं. जानकारों का मानना ​​है कि राजद चाहे चिन्हित सीट पर उम्मीदवार उतारे या फिर महागठबंधन द्वारा दी गयी सीट पर चुनाव लड़े, दोनों ही स्थिति में उन्हें नुकसान पड़ेगा.

Lalu Yadav in confusion regarding Jharkhand assembly election seat
लालू प्रसाद यादव (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jul 24, 2024, 5:09 PM IST

रांची: राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी रहे राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव संभवतः अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार झारखंड की राजनीति को लेकर दुविधा की स्थिति में हैं. दुविधा इस बात की है कि वह अपने प्रदेश संगठन के नेताओं की मांग को मानते हुए झारखंड में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में 22 विधानसभा सीट पर राजद का प्रत्याशी खड़ा करें या फिर महागठबंधन के अन्य साथियों द्वारा दी गई सीट पर ही संतोष कर महागठबंधन के साथ बने रहें.

गढ़वा जिलाध्यक्ष और युवा राजद के प्रदेश प्रभारी का बयान (ETV BHARAT)

राजद को नफा-नुकसान के लिए तैयार रहना होगा

झारखंड में राजद की राजनीति को बहुत करीब से जानने समझने वाले पत्रकार अशोक कुमार ईटीवी भारत से कहते हैं कि दोनों ही परिस्थितियों में लालू प्रसाद के लिए फैसले का नफा नुकसान दोनों है. उनका कहना है कि मान लीजिए कि लालू प्रसाद अपने झारखंड संगठन और प्रदेश अध्यक्ष द्वारा किए गए 22 चिन्हित विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ने पर अपनी सहमति जता देते हैं तो इसका नतीजा क्या होगा? जवाब यह है कि राजद फिर महागठबंधन का हिस्सा नहीं रहेगा और इसका कई सीटों पर NDA को फायदा मिलेगा, जो होता देखना लालू प्रसाद नहीं चाहेंगे.

दूसरी परिस्थिति में अगर लालू यादव महागठबंधन के अन्य दलों द्वारा दी गयी सीट पर चुनाव लड़ने को तैयार होते हैं तब क्या होगा? जवाब यह है कि राज्य में लगातार कमजोर होता राजद का संगठन और कमजोर होगा. उसके कार्यकर्ताओं में उत्साह कम होगा और नेता भी महागठबंधन या INDIA ब्लॉक के अन्य दलों के लिए पूरी लगन से काम नहीं करेंगे, इसकी भी उम्मीद है. इस स्थिति में साल 2000 में राज्य गठन के बाद से लगातार कमजोर होता राजद का संगठन और कमजोर होने लगेगा. ऐसे में यह वक्त लालू प्रसाद के राजनीतिक कुशलता की परीक्षा का भी है, ताकि उनपर महागठबंधन या INDIA ब्लॉक को कमजोर कर अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा को फायदा पहुंचाने का आरोप भी न लगे और पार्टी संगठन भी मजबूत हो, उसमें उत्साह रहे.

हर बार राजद ही क्यों त्याग करे: सूरज सिंह

पूर्व मंत्री और राजद के कद्दावर नेता रहे गिरिनाथ सिंह के भतीजे और गढ़वा राजद के जिलाध्यक्ष सूरज सिंह ने गढ़वा जिले के तीन विधानसभा सीट गढ़वा, विश्रामपुर, भवनाथपुर से राजद के चुनाव लड़ने की बात कहकर कहते हैं कि गठबंधन करना या नहीं करना राष्ट्रीय अध्यक्ष जी का अधिकार है लेकिन लोगों ने पलामू और गढ़वा की कई सीटों को लेकर संगठन और कार्यकर्ताओं की भावना से लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव को अवगत करा दिया है. सूरज सिंह का कहना है कि साल 2019 में राजद ने अपनी सीट झामुमो को और मणिका सीट कांग्रेस को दे दी थी तो क्या हर बार त्याग सिर्फ राजद को ही करना होगा. उन्होंने कहा कि छतरपुर, हुसैनाबाद, मणिका, विश्रामपुर, गढ़वा, भवनाथपुर, लातेहार सहित कई सीट पर हमारा मजबूत जनाधार है.

राजद के स्वाभिमान से समझौता नहीं किया जाएगा: राजीव झा

राष्ट्रीय जनता दल के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष पूर्व विधायक संजय कुमार सिंह यादव ने ईटीवी भारत से पलामू में खास बातचीत की. जहां उन्होंने 22 विधानसभा सीटों पर पार्टी उम्मीदवार उतारने की बात कह चुके हैं. वहीं, रांची में एक दिन पहले ही झारखंड युवा राजद के प्रदेश प्रभारी राजीव झा भी यह बयान दे चुके हैं कि इस बार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के स्वाभिमान से समझौता नहीं किया जाएगा. ऐसे में साफ है कि इस बार लालू प्रसाद यादव झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर उनके लिए दुविधा की स्थिति होगी. यह देखना दिलचस्प होगा कि आनेवाले दिनों में झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर लालू प्रसाद क्या फैसला लेते हैं, क्योंकि उनके फैसले पर ही झारखंड में महागठबंधन या इंडिया ब्लॉक का राजनीतिक भविष्य निर्भर करेगा.

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