हरिद्वारः आज गंगा दशहरा है. गंगा दशहरे के दिन दान और गंगा में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि गंगा दशहरा के दिन ही मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं. कहा जाता है कि राजा भागीरथ की कठिन तपस्या और ब्रह्मा के वरदान के बाद मां गंगा हिमालय की वादियों और पर्वतीय दुर्गम पहाड़ों से गुजरती हुई गंगा दशहरा के दिन ही हरिद्वार के ब्रह्म कुंड में समाहित हुईं थीं. इसलिए गंगा दशहरा पर्व पर हरिद्वार में गंगा स्नान का काफी महत्व है.
पूजा और स्नान का समय: हमारे हिंदू धर्म में गंगा दशहरा का बड़ा महत्व माना जाता है. ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का पर्व हर साल मनाया जाता है. मान्यता के अनुसार, गंगा दशहरा के दिन ही मां गंगा का धरती पर पदार्पण हुआ था. इसी दिन राजा भागीरथ मां गंगा को पृथ्वी पर लेकर आए थे. गंगा दशहरा के दिन दान और गंगा स्नान का बड़ा महत्व है. कहा जाता है कि आज के दिन गंगा स्नान करने से जन्मों जन्मों के पापों से मुक्ति और भविष्य खुशियों से भर जाता है.
ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, 16 जून की सुबह 2:32 मिनट से गंगा दशहरा शुरू हो जाएगा. जबकि 17 जून सुबह 4:34 तक इसका योग रहेगा. 16 जून सुबह 8 बजे से सुबह 10:37 तक विशेष पूजा अर्चना का समय है. ऐसे में आप गंगा स्नान और दान करके पुण्य भी कमा सकते हैं. जानकारों की मानें तो इस बार गंगा दशहरा के दिन तीन शुभ संयोग बन रहे हैं. जिसमें सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग और अमृत सिद्धि योग इन तीनों युगों में पूजा पाठ और मांगलिक कार्यक्रम का महत्व अधिक बढ़ जाता है.
इसलिए मनाया जाता है गंगा दशहरा: गंगा दशहरा मनाने की कहानी भगवान राम के वंशजों से जुड़ी है. राजा सगर की दो रानियां केशिनी और सुमति की कोई संतान नहीं थी. संतान प्राप्ति के लिए दोनों रानियां हिमालय में भगवान की पूजा अर्चना और तपस्या में लग गईं. तब ब्रह्मा के पुत्र महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी से राजा को 60 हजार अभिमानी पुत्र की प्राप्ति होगी. जबकि दूसरी रानी से एक पुत्र की प्राप्ति होगी. केशिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया. जबकि सुमति के गर्भ से एक पिंड का जन्म हुआ, उसमें से 60 हजार पुत्रों का जन्म हुआ.
मान्यता के अनुसार, राजा सगर के 60 हजार पुत्र बेहद अभिमानी और परिवार से बिल्कुल अलग थे. जबकि केशिनी का पुत्र अंशुमान, सुशील और विवेकी गुणों का था. एक दिन राजा सगर ने अपने यहां पर एक अश्वमेघ यज्ञ करवाया. राजा ने अपने 60 हजार पुत्रों को यज्ञ के घोड़े को संभालने की जिम्मेदारी सौंपी. लेकिन देवराज इंद्र ने छलपूर्वक 60 हजार पुत्रों से घोड़ा चुरा लिया और कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया.