प्रयागराज :महाकुंभ मेले की शुरुआत में अब कुछ ही दिन रह गए हैं. इसकी प्राचीनता और भव्यता को लेकर लोगों की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है. गंगा नदी के विस्तृत तट पर लगने वाला यह मेला पूरी दुनिया के श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है. करीब डेढ़ महीने तक चलने वाला यह आयोजन हर 6 साल में अर्धकुंभ और 12 साल में महाकुंभ के रूप में आयोजित किया जाता है. मेले में कई अखाड़ों के संत पहुंच चुके हैं. इन अखाड़ों की अपनी अलग खासियत और परंपराएं हैं. इन्हीं में से एक अग्नि अखाड़े भी है. शंकराचार्य ने 7 प्रमुख अखाड़ों की स्थापना की थी. इनमें महानिर्वाणी, निरंजनी, जूना, अटल, आवाहन, अग्नि, और आनंद अखाड़ा शामिल है.
संत घरों में तैयार भोजन नहीं खाते :ब्रह्मचारी को गायत्री मंत्र की दीक्षा की जाती है. खास यह कि इस अखाड़े के ज्यादातर ब्रह्मचारी संत भंडारा या घरों में तैयार भोजन ग्रहण नहीं करते. अग्नि अखाड़े के सभापति मुक्तानंद कहना है कि ब्रह्मचारी संत स्वयं भोजन तैयार कर ग्रहण करते हैं. ब्रह्मचारी संत की पहचान सिर पर सिखा और बदन पर जनेऊ से होती है. ब्रह्मचारी संत 16 माला गायत्री जप करते हैं.
स्वामी जी ने बताया कि अग्नि अखाड़े में तकरीबन चार सौ ब्रह्मचारी संत हैं और सभापति स्वामी गोपालानंद ‘बापूजी’ के सानिध्य में कार्य करते हैं. अग्नि अखाड़े में एक लाख विद्यार्थी भी हैं, जो उनकी देखरेख में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और ज्यादातर को वेद कंठस्थ है.
मां गायत्री हैं इष्ट देवी : सभापति का कहना है श्रद्धा और विश्वास से सभी संत आते हैं. सभी अखाड़ों के इष्ट देव भी भिन्न-भिन्न होते हैं. लाखों संत यहां उपासना करते हैं. सभी की भावना एक है ब्रम्ह के प्रति निष्ठा है, संप्रदाय अलग-अलग हैं, उपासना भिन्न-भिन्न हैं, लेकिन फिर भी एकता है. यह अखाड़ा आदि गुरु शंकराचार्य स्थापना की दशनाम शाखा है. यज्ञ करना सुमिरन करना और धर्म प्रचार करना है संत का काम है. मां गायत्री इष्ट देवी हैं. 26 दिसंबर को हमारी पेशवाई है. दिनचर्या यह होती है कि यहां पर यज्ञ चलता है. ब्राह्मणों द्वारा या दिन भर मां गायत्री की पूजा अर्चना की जाती है.