उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

प्रयागराज महाकुंभ; खुद से तैयार करते हैं भोजन, हर कोई नहीं बन पाता संत, जानिए अग्नि अखाड़े की खास परंपराएं - PRAYAGRAJ MAHAKUMBH 2025

संत बनने के लिए ब्राह्मण होना आवश्यक. मां गायत्री की करते हैं उपासना.

प्रयागराज महाकुंभ 2025
प्रयागराज महाकुंभ 2025 (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 7 hours ago

प्रयागराज :महाकुंभ मेले की शुरुआत में अब कुछ ही दिन रह गए हैं. इसकी प्राचीनता और भव्यता को लेकर लोगों की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है. गंगा नदी के विस्तृत तट पर लगने वाला यह मेला पूरी दुनिया के श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है. करीब डेढ़ महीने तक चलने वाला यह आयोजन हर 6 साल में अर्धकुंभ और 12 साल में महाकुंभ के रूप में आयोजित किया जाता है. मेले में कई अखाड़ों के संत पहुंच चुके हैं. इन अखाड़ों की अपनी अलग खासियत और परंपराएं हैं. इन्हीं में से एक अग्नि अखाड़े भी है. शंकराचार्य ने 7 प्रमुख अखाड़ों की स्थापना की थी. इनमें महानिर्वाणी, निरंजनी, जूना, अटल, आवाहन, अग्नि, और आनंद अखाड़ा शामिल है.

अग्नि अखाड़े की यह खास परंपरा (Video Credit; ETV Bharat)
ब्रह्मचारी बनने के लिए लंबी प्रक्रिया पूरी करनी पड़ती है :अग्नि अखाड़े में ब्रह्मचारी संतों की संख्या सीमित है. यहां हर कोई संत नहीं हो सकता. उसका ब्राह्मण होना आवश्यक है. साथ ही जनेऊ धारण करते हैं. ब्रह्मचारी बनाने की लंबी प्रक्रिया के तहत संतों के सिर पर सिखा होती है. साथ ही जनेऊ धारण करते हैं.

संत घरों में तैयार भोजन नहीं खाते :ब्रह्मचारी को गायत्री मंत्र की दीक्षा की जाती है. खास यह कि इस अखाड़े के ज्यादातर ब्रह्मचारी संत भंडारा या घरों में तैयार भोजन ग्रहण नहीं करते. अग्नि अखाड़े के सभापति मुक्तानंद कहना है कि ब्रह्मचारी संत स्वयं भोजन तैयार कर ग्रहण करते हैं. ब्रह्मचारी संत की पहचान सिर पर सिखा और बदन पर जनेऊ से होती है. ब्रह्मचारी संत 16 माला गायत्री जप करते हैं.

स्वामी जी ने बताया कि अग्नि अखाड़े में तकरीबन चार सौ ब्रह्मचारी संत हैं और सभापति स्वामी गोपालानंद ‘बापूजी’ के सानिध्य में कार्य करते हैं. अग्नि अखाड़े में एक लाख विद्यार्थी भी हैं, जो उनकी देखरेख में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और ज्यादातर को वेद कंठस्थ है.

मां गायत्री हैं इष्ट देवी : सभापति का कहना है श्रद्धा और विश्वास से सभी संत आते हैं. सभी अखाड़ों के इष्ट देव भी भिन्न-भिन्न होते हैं. लाखों संत यहां उपासना करते हैं. सभी की भावना एक है ब्रम्ह के प्रति निष्ठा है, संप्रदाय अलग-अलग हैं, उपासना भिन्न-भिन्न हैं, लेकिन फिर भी एकता है. यह अखाड़ा आदि गुरु शंकराचार्य स्थापना की दशनाम शाखा है. यज्ञ करना सुमिरन करना और धर्म प्रचार करना है संत का काम है. मां गायत्री इष्ट देवी हैं. 26 दिसंबर को हमारी पेशवाई है. दिनचर्या यह होती है कि यहां पर यज्ञ चलता है. ब्राह्मणों द्वारा या दिन भर मां गायत्री की पूजा अर्चना की जाती है.

पूरी प्रक्रिया से होता है संत-महंतों का चुनाव : सभापति, मंडलेश्वर, आचार्य, महामंडलेश्वर बनाए जाते हैं, जो सभी अखाड़ों में व्यवस्था बनी हुई है, जो ब्रह्मचारी होते हैं, जो कुंभ में आकर सेवा करते हैं, उन्हें महंत बनाया जाता है. उसके बाद सभी श्री महंत मिलकर सभापति की नियुक्ति करते हैं. सभी श्री महंत मिलकर आचार्य की नियुक्ति करते हैं. आचार्य आचार संहिता का ज्ञान देते हैं. उन्होंने कहा कि यहां पर तीन नदियों का संगम है इसलिए यहां का महाकुंभ का महत्व और भी बढ़ जाता है.

यह भी पढ़ें:प्रयागराज महाकुंभ; नागा साधुओं का ऐलान, मेले में गैर सनातनियों को नहीं आने देंगे, माथे पर तिलक-हाथ में कलावा जरूरी

यह भी पढ़ें:महाकुंभ 2025; जूना अखाड़ा ने निकाली छावनी प्रवेश शोभा यात्रा, रथ पर सवार होकर निकले संन्यासी - MAHAKUMBH 2025

ABOUT THE AUTHOR

...view details