अजमेर : विश्व प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के उर्स से पहले ख्वाजा गरीब नवाज की मजार से सालभर चढ़ने वाले संदल को उतारने की परंपरा रही है. इस साल मजार से संदल 31 जनवरी को उतारा जाएगा. दरगाह के खादिम शाम के वक्त अपनी खिदमत के दौरान मजार से संदल उतारेंगे. मजार पर रोजाना संदल चढ़ाने की यह परंपरा सदियों पुरानी है. मजार से उतारा गया संदल बहुत पवित्र माना जाता है. संदल उतरने के बाद बड़ी संख्या में जायरीन खादिमों से इसे लेने के लिए दौड़ पड़ते हैं.
ख्वाजा गरीब नवाज के 813वें उर्स की अनौपचारिक शुरुआत हो चुकी है और अजमेर आने वाले जायरीन का सिलसिला जारी है. उर्स की विधिवत शुरुआत 1 या 2 जनवरी को रजब की चांद के दिखाई देने पर होगी. उर्स से पहले मजार की खिदमत का समय भी बदल गया है. अब खिदमत देर शाम को की जा रही है. मजार से संदल उतारने की यह परंपरा बहुत पुरानी है और इसी तरह मजार पर संदल चढ़ाने की परंपरा भी सदियों से चली आ रही है.
अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज का 813वां उर्स (ETV Bharat Ajmer) इसे भी पढ़ें-813वां उर्स: दरगाह के बुलन्द दरवाजे पर आज झंडा चढ़ने के साथ ही होगी उर्स की अनौपचारिक शुरुआत
मजार पर जमा हो जाती है 5 इंच मोटी परत : खादिम सैयद फकर काज़मी बताते हैं कि मजार पर संदल चढ़ाने की परंपरा मजार बनने के बाद से ही शुरू हुई थी. रोजाना 3 से 4 बजे के बीच मजार पर संदल का लेप लगाया जाता है और यह परत 5 इंच तक मोटी हो जाती है. काज़मी के अनुसार संदल का मतलब चंदन से है. दरगाह में संदल की तैयारियां लंगर में की जाती हैं, जहां चंदन की लकड़ी को पीसकर पाउडर बनाया जाता है. इसके बाद गुलाब जल, केवड़ा और इत्र मिलाकर संदल की पेस्ट तैयार की जाती है. एक मिट्टी के प्याले में 250 ग्राम से अधिक संदल होता है.
इसलिए उतारा जाता है संदल :उन्होंने बताया कि मजार से संदल उतारने के लिए गुलाब जल, इत्र और केवड़ा छिड़कते हैं, जिससे संदल गीला हो जाता है और उसे उतारना आसान हो जाता है. काजमी बताते हैं कि उर्स से पहले संदल उतारने का मुख्य उद्देश्य यह है कि उर्स के दौरान मजार को 'ग़ुस्ल' (धोने) की परंपरा को निभाया जा सके. उर्स के दौरान ख्वाजा गरीब नवाज की मजार को दो बार ग़ुस्ल दिया जाता है. मुगल काल में भी यह परंपरा रही और मुग़ल सम्राट शाहजहां के समय में भी मजार पर ढाई पाव संदल चढ़ाया जाता था. आज भी मजार में ढाई पाव संदल चढ़ाया जाता है.
1 जनवरी को जन्नती दरवाजा खोला जाएगा (फोटो ईटीवी भारत अजमेर) इसे भी पढ़ें-भीलवाड़ा का गौरी परिवार अदा करेगा झंडे की रस्म, 1944 से चली आ रही परंपरा, 28 को होगी उर्स की अनौपचारिक शुरूआत
खादिम करते हैं जायरीन में तकसीम :खादिम कुतुबुद्दीन सकी बताते हैं कि उर्स से पहले हर साल मजार से संदल उतारा जाता है और इस संदल को खादिम आपस में बांट लेते हैं. बाकी संदल को जायरीन में वितरित किया जाता है. संदल को बहुत पवित्र माना जाता है और यह मान्यता है कि इसे पानी के साथ पीने से शारीरिक, मानसिक रोग और मानसिक कष्टों से राहत मिलती है. यही कारण है कि बड़ी संख्या में जायरीन दरगाह में संदल लेने के लिए आते हैं. खादिम सालभर संदल अपने पास रखते हैं और जब किसी जायरीन को जरूरत होती है तो वे उन्हें संदल की पुड़िया देते हैं.
संदल उतारने की सदियों पुरानी परंपरा (ETV Bharat Ajmer) 1 जनवरी को जन्नती दरवाजा खोला जाएगा, जो परंपरानुसार हर साल होता है, यदि 1 जनवरी की रात को रजब का चांद दिखाई देता है तो उर्स की विधिवत शुरुआत हो जाएगी, अन्यथा जन्नती दरवाजा बंद कर दिया जाएगा और 2 जनवरी को इसे आम जायरीन के लिए खोला जाएगा. जन्नती दरवाजा साल में सिर्फ चार बार खुलता है, जबकि उर्स के दौरान यह 6 दिन के लिए खुलता है. आम जायरीन जन्नती दरवाजे से प्रवेश कर ख्वाजा गरीब नवाज की मजार की जियारत करते हैं.