कवर्धा :शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर कवर्धा में बरसों पुरानी परंपरा का भव्य आयोजन किया गया. अष्टमी की मध्य रात्रि मां दंतेश्वरी, मां चंडी और मां परमेश्वरी देवी के मंदिरों से खप्पर निकाली गई. इस अनुष्ठान को देखने कवर्धा और आसपास के जिलों से कई श्रद्धालु शहर पहुंचे थे.
तीन देवी मंदिरों से निकला खप्पर : नगर के तीन सिद्धपीठ चण्डी देवी मंदिर, परमेश्वरी देवी मंदिर और दंतेश्वरी देवी मंदिर से शुक्रवार और शनिवार की दरमियानी रात एक-एक कर खप्पर निकाला गया. एक हाथ में मिट्टी के पतिले में धधकता आग और दूसरे हाथ में चमचमाती तलवार लेकर देवी स्वरूप खप्पर नगर भ्रमण करने निकली. इस दौरान रास्ते में पड़ने वाले प्रमुख 18 देवी मंदिरों में विधिवत आहृवन किया गया.
कवर्धा में तीन देवी मंदिरों से आधी रात निकला खप्पर (ETV Bharat)
भीड़ ने 20 साल का रिकॉर्ड तोड़ा : खप्पर के दर्शन करने जिले और आसपास जिलों से सैकड़ों श्रद्धालु कवर्धा नगर पहुंचे. इसे देखते हुए भीड़ को नियंत्रित करने सैकड़ों पुलिस जवान, अधिकारी और जिला प्रशासन की टीम जगह-जगह तैनात रहे. इस बार खप्पर देखने श्रद्धालु न सिर्फ कवर्धा जिला से, बल्कि पूरे प्रदेश से श्रद्धा पहुंचे हुए थे. जिसकी वजह से शहर में चारों तरफ लोगों की भीड़ खचाखच भरी हुई थी. वाहन तो दूर पैदल चलना भी मुश्किल हो गया ता. भीड़ को नियंत्रित करना पुलिस के लिए भी बड़ी चुनौती बना रहा.
खप्पर भ्रमण से जुड़ी मान्यता :ऐसी मान्यता है कि नगर में खप्पर निकालने से नगर में आने वाले आपदा जैसे हैजा, महामारी जैसी बिमारी से नगरवासी सुरक्षित रहते हैं. माना जाता है कि पहले के दिनों में महामारी से अनेकों लोगों की मौत हो जाती थी. इसलिए देवी माता अष्टमी की मध्य रात्रि नगर भ्रमण कर गांव को बांध देती थी, जिससे गांव में किसी भी प्रकार की आपदा गांव के अंदर प्रवेश नहीं कर सकता था.
150 सालों से परंपरा जारी :कवर्धा नगर में नवरात्रि के अष्टमी की मध्य रात्रि 12 बजे खप्पर निकालने की परंपरा लगभग 150 वर्षों से निरंतर जारी है. बुजुर्ग बताते हैं कि सालों से हर वर्ष चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र के अष्टमी की मध्य रात्रि नगर के सिद्धपीठ चंडी देवी मंदिर, परमेश्वरी देवी मंदिर और दंतेश्वरी देवी मंदिर से खप्पर निकाला जाता है. इस परंपरा से नगर के लोग बिमारी से सुरक्षित रहते हैं.
रौद्र रूप में रहती है खप्पर :जब मंदिर से खप्पर निकलने का समय होता है, तो भ्रमण वाले मार्ग को पुरी तरहां खाली कर दिया जाता है. खप्पर के पीछे मंदिर के पंडा रहते हैं, ताकि कहीं गलती होने पर हुमधूप कर माता को शांत कराया जा सके. समिति के सदस्य के लावा पुलिस बल भी मौजूद रहती हैं. जानकारी के मुताबिक, पहले जब खप्पर नगर भ्रमण में निकलती थी, तब नगर का लाइट बंद कर दिया जाता था. जो लोग घर के अंदर दरवाजा के छेद से भी देख लेते थे, उन्हें सहासी माना जाता था. क्यूंकि खप्पर के सामने आने वाले किसी को भी खप्पर तलवार से काट दिया करती थी.