कानपुर :शारदीय नवरात्रि की शुरुआत आज से हो चुकी है. सभी देवी मंदिर पूरी तरह से सज चुके हैं. सुबह से ही मंदिरों में दर्शन-पूजन के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. हर तरफ माता रानी के जयकारों की गूंज है. कानपुर के हजारों वर्ष पुराने देवी मंदिर में भी भक्तों की भीड़ है. यहां आने वाले श्रद्धालुओं को 4 देवियों के दर्शन करने का सौभाग्य मिलता है. इस मंदिर को तपेश्वरी मंदिर के नाम से जाना जाता है. माता रानी यहां आने वाले निसंतान महिलाओं की गोद भरती हैं. यह वह स्थान है जहां माता सीता ने लव कुश का मुंडन कराया था.
रामायण काल से जुड़ा है मंदिर का इतिहास :ईटीवी भारत से खास बातचीत में मंदिर के पुजारी शिवमंगल ने बताया कि इस मंदिर का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है. मां सीता ने आकर यहां पर तप किया था. इसके अलावा इसी तपेश्वरी मंदिर में ही लवकुश का मुंडन और कानछेदन का शुभ कार्य भी किया गया था. मां सीता बिठूर से आकर इसी मंदिर में तप करती थीं. नवरात्रि में ही नहीं बल्कि हर रोज यहां पर हजारों की संख्या में भक्ति दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. इस मंदिर को लेकर एक विशेष मान्यता यह है कि जिन भी दंपत्तियों को संतान की प्राप्ति नहीं होती है, वह अगर तपेश्वरी मंदिर में आकर विराजमान चारों देवियों के दर पर अपना शीश झुका दें, सच्चे मन से उनकी पूजा-अर्चना कर लें तो उन्हें माता रानी की कृपा से संतान की प्राप्ति हो जाती है.
इस मंदिर में विराजमान है एक साथ चार देवियां :मंदिर के पुजारी ने बताया कि मां सीता कानपुर के बिठूर में ठहरी थीं. तपेश्वरी मंदिर में जाकर भगवान राम को पाने के लिए तप किया करती थी. कहां जाता है, कि मां सीता के साथ तीन अन्य महिलाएं कमला, विमला और सरस्वती भी उनके साथ यहां पर तप करती थीं. इस वजह से इस मंदिर को नाम तपेश्वरी मंदिर पड़ा. मंदिर में जो चार देवियां विराजमान हैं, वह कमला, विमला, सरस्वती और मां सीता हैं. मगर आज तक इस बात की जानकारी किसी को नहीं हो सकी और सिर्फ एक रहस्य मात्र बनकर ही रह गया कि आखिर इन चारों देवियों की मूर्तियों में से मां सीता की मूर्ति कौन सी है?