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काकोरी ट्रेन एक्शन के 100 साल; ट्रेन के गार्ड की गवाही ने क्रांतिकारियों को दिलाई थी फांसी, पढ़िए आजादी के मतवालों की वीरगाथा - Kakori Train Action - KAKORI TRAIN ACTION

1925 में काकोरी कांड के 100 साल पूरे हो गए हैं. काकोरी कांड से जुड़ी वस्तुएं और क्रांतिकारियों की वीरगाथा को काकोरी स्टेशन पर बने संग्राहलय में सहेज कर रखी गई हैं. आइए जानतें है क्या था काकोरी कांड, जो इतिहास के पन्नो में दर्ज है.

काकोरी कांड से जुड़ी चीजें संग्राहलय में आज भी मौजूद हैं.
काकोरी कांड से जुड़ी चीजें संग्राहलय में आज भी मौजूद हैं. (Etv Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 9, 2024, 6:10 AM IST

Updated : Aug 9, 2024, 7:47 AM IST

काकोरी ट्रेन एक्शन के 100 साल पूरे. (Video Credit; ETV Bharat)

लखनऊ:4 फरवरी 1922 को अंग्रेजों के शासन से नाराज लोगों ने गोरखपुर के चौरी चौरा थाने में आग लगा दी थी. इस अग्निकांड में 23 पुलिसवालों की जलकर मौत हो गई थी. इससे नाराज होकर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था. जिसने हजारों क्रांतिकारियों को झटका दिया. बस इसी झटके की वजह से आजादी के मतवालों ने ऐसा कांड किया, जिसने इतिहास के पन्नों में अपनी जगह दर्ज करा ली. वो था काकोरी कांड, जिसकी पूरा देश आज 100वीं वर्षगांठ बना रहा है. लखनऊ में स्थित काकोरी स्टेशन आज भी आजादी के मतवालों की याद दिला रहा है. स्टेशन पर बने संग्राहलय में इस घटना से जुड़े साक्ष्य और पत्र मौजूद हैं.



आजादी की लड़ाई के लिए बना था हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशनःइतिहासकार हफीज किदवई बताते हैं कि चौरी चौरा कांड के बाद महात्मा गांधी ने अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था. ऐसे में अब क्रांतिकारियों में निराशा छा गई थी. कुछ युवा क्रांतिकारियों का ग्रुप आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए पार्टी का गठन करने का फैसला कर चुके थे. ऐसे में सचीन्द्रनाश सान्याल के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की गई. योगेशचन्द्र चटर्जी, रामप्रसाद बिस्मिल, सचिन्द्रनाथ बक्शी पार्टी के सदस्यों में रूप में जुड़े थे. इसके बाद चंद्रशेखर आजाद व भगत सिंह भी इस पार्टी से जुड़ गए. हिंदुस्तान रिपब्लिकन पार्टी का यह मानना था कि भारत की आजादी के लिए उन्हें हथियार उठाना ही पड़ेगा. ऐसे में अब हथियार खरीदने के लिए क्रांतिकारियों को पैसों की जरूरत थी. इसलिए क्रांतिकारियों ने फैसला लिया कि उस सरकारी खजाने को लूटा जाएगा, जो हम भारतीयों से ही लूट कर अंग्रेजों ने भरा था.

ट्रेन के गार्ड ने आंखो से देखी थी पूरी घटना, दस्तावेजों में है दर्ज
इतिहास के दस्तावेजों के पन्नों पर सहारनपुर से लखनऊ ट्रेन नंबर 8 डाउन के गार्ड जगन नाथ प्रसाद का बयान दर्ज है. इसमें उन्होंने क्रांतिकारियों के उस कांड को विस्तृत रूप से बताया, जो उन्होंने अपनी आंखों से देखा था. जगन नाथ ने बताया था कि 9 अगस्त 1925 को उनकी ट्रेन 8 डाउन सहारनपुर से लखनऊ आ रही थी. ट्रेन काकोरी स्टेशन से गाड़ी आगे आलमनगर स्टेशन की ओर ट्रेन जा रही थी तभी काकोरी आउटर पर अचानक रुक गई. चेक करने पर ट्रेन के कम्पार्टमेन्ट में असफाकउल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल और राजेंद्र नाथ मौजूद थे. इसके अलावा करीब 20 से 25 लोग बाहर खड़े हुए थे. काकोरी स्टेशन से लेकर आउटर तक क्रांतिकारियों ने जो भी किया वो सब कुछ कोर्ट के सामने अपने बयान में बताया था. यह बयान वाला पत्र भी काकोरी संग्राहलय में आज भी मौजूद है.



क्रांतिकारियों को अंग्रेजों के खजाने में मिले थे 4,601 रुपये
इतिहासकार हफीज किदवई बताते है कि जैसा कि ट्रेन के गार्ड जगन नाथ ने काकोरी कांड की एक एक बात डिटेल में बताई थी, हुआ भी वैसा ही था. ट्रेन में काकोरी स्टेशन पर अशफाक उल्लाह खान, रोशन सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल पहले से ही सवार हो गए थे. इनके बाकी साथी चंद्रशेखर आजाद सहित अन्य लोग काकोरी आउटर पर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे. जैसे ही ट्रेन वहां पहुंची चेन खींच कर रोक दी गई थी. इसके बाद बंदूक की नोक पर गार्ड को बंधक बनाकर लूटपाट की गई थी. क्रांतिकारियों के हाथ कुल 4,601 रुपये की रकम आई थी.


लखनऊ में चल मुकदमा और फिर सुनाई गई फांसी की सजा
इस घटना ने ब्रिटिश हुकूमत के चूलें हिला दी थी. पुलिस ने स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम के आईजी को जांच का जिम्मा दिया. घटना में 10 लोग शामिल थे लेकिन आनन फानन में करीब 40 लोगों की गिरफ्तारियों की गई. 8 सितंबर 1926 को दिल्ली से अशफाक उल्लाह खान को गिरफ्तार किया गया. इस पूरे केस की 9 मार्च 1927 तक सुनवाई लखनऊ के स्पेशल मजिस्ट्रेट के सामने हुई थी. इसके बाद 6 अप्रैल को 1927 को ब्रिटिश कोर्ट के जज लुईस स्टुअर्ट और मोहम्मद रजा खान बहादुर ने राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई थी. इसके अलावा कई लोगों को 14 साल तक की सजा दी थी.


संग्राहलय में काकोरी कांड के साक्ष्य मौजूद
काकोरी स्टेशन मास्टर विजय कुमार सिन्हा ने बताया कि अंग्रेजों के चूलें हिलाने वाले इस कांड की याद में काकोरी स्टेशन में अब भी वो तमाम दस्तावेज, स्टेशन की वो सभी समान मौजूद है, जो 99 वर्ष पहले की पूरी यादें ताजा कर सकती है. काकोरी स्टेशन में बने म्यूजियम में वैसा ही लोहे का भारीभरकम बक्शा रखा है, जिसमें ब्रिटिश सरकार पैसे और खजाना ले जाती थी. स्टेशन में उस दौरान लगी घंटी, लॉकर को संजो कर रखा गया है. इस म्यूजियम में वो जजमेंट भी है, जिसमें आजादी के मतवालों को फांसी की सजा सुनाई गई थी.

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Last Updated : Aug 9, 2024, 7:47 AM IST

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