लखनऊ:4 फरवरी 1922 को अंग्रेजों के शासन से नाराज लोगों ने गोरखपुर के चौरी चौरा थाने में आग लगा दी थी. इस अग्निकांड में 23 पुलिसवालों की जलकर मौत हो गई थी. इससे नाराज होकर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था. जिसने हजारों क्रांतिकारियों को झटका दिया. बस इसी झटके की वजह से आजादी के मतवालों ने ऐसा कांड किया, जिसने इतिहास के पन्नों में अपनी जगह दर्ज करा ली. वो था काकोरी कांड, जिसकी पूरा देश आज 100वीं वर्षगांठ बना रहा है. लखनऊ में स्थित काकोरी स्टेशन आज भी आजादी के मतवालों की याद दिला रहा है. स्टेशन पर बने संग्राहलय में इस घटना से जुड़े साक्ष्य और पत्र मौजूद हैं.
आजादी की लड़ाई के लिए बना था हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशनःइतिहासकार हफीज किदवई बताते हैं कि चौरी चौरा कांड के बाद महात्मा गांधी ने अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था. ऐसे में अब क्रांतिकारियों में निराशा छा गई थी. कुछ युवा क्रांतिकारियों का ग्रुप आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए पार्टी का गठन करने का फैसला कर चुके थे. ऐसे में सचीन्द्रनाश सान्याल के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की गई. योगेशचन्द्र चटर्जी, रामप्रसाद बिस्मिल, सचिन्द्रनाथ बक्शी पार्टी के सदस्यों में रूप में जुड़े थे. इसके बाद चंद्रशेखर आजाद व भगत सिंह भी इस पार्टी से जुड़ गए. हिंदुस्तान रिपब्लिकन पार्टी का यह मानना था कि भारत की आजादी के लिए उन्हें हथियार उठाना ही पड़ेगा. ऐसे में अब हथियार खरीदने के लिए क्रांतिकारियों को पैसों की जरूरत थी. इसलिए क्रांतिकारियों ने फैसला लिया कि उस सरकारी खजाने को लूटा जाएगा, जो हम भारतीयों से ही लूट कर अंग्रेजों ने भरा था.
ट्रेन के गार्ड ने आंखो से देखी थी पूरी घटना, दस्तावेजों में है दर्ज
इतिहास के दस्तावेजों के पन्नों पर सहारनपुर से लखनऊ ट्रेन नंबर 8 डाउन के गार्ड जगन नाथ प्रसाद का बयान दर्ज है. इसमें उन्होंने क्रांतिकारियों के उस कांड को विस्तृत रूप से बताया, जो उन्होंने अपनी आंखों से देखा था. जगन नाथ ने बताया था कि 9 अगस्त 1925 को उनकी ट्रेन 8 डाउन सहारनपुर से लखनऊ आ रही थी. ट्रेन काकोरी स्टेशन से गाड़ी आगे आलमनगर स्टेशन की ओर ट्रेन जा रही थी तभी काकोरी आउटर पर अचानक रुक गई. चेक करने पर ट्रेन के कम्पार्टमेन्ट में असफाकउल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल और राजेंद्र नाथ मौजूद थे. इसके अलावा करीब 20 से 25 लोग बाहर खड़े हुए थे. काकोरी स्टेशन से लेकर आउटर तक क्रांतिकारियों ने जो भी किया वो सब कुछ कोर्ट के सामने अपने बयान में बताया था. यह बयान वाला पत्र भी काकोरी संग्राहलय में आज भी मौजूद है.