जयपुर:भारत में कलाकारों को वो सम्मान नहीं मिलता जो विदेशों में मिलता है. जितने भी म्यूजिक चैनल चल रहे हैं, वो सभी फिल्मी म्यूजिक चैनल हैं. जितने भी सिंगिंग रियलिटी शो हो रहे हैं, वो सभी फिल्मी सिंगिंग रियलिटी शो हैं, जबकि असली म्यूजिक फोक म्यूजिक है. ये कहना है मशहूर सिंगर कैलाश खेर का. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में अपनी किताब 'तेरी दीवानी - शब्दों के पार' पर चर्चा करते हुए कैलाश खेर ने ये बात कही. इस दौरान उन्होंने अपनी जर्नी साझा करते हुए बताया कि बचपन में ही उन्होंने घर छोड़ दिया था और जीवन में कई संघर्षों का सामना किया. पत्रकारिता की, ट्रक चलाया और संगीत में अपनी पहचान बनाई. हाल ही उन्होंने महाकुंभ का टाइटल ट्रैक गाया जो फिलहाल ट्रेंडिंग चल रहा है.
जेएलएफ में सत्र के दौरान अपनी आवाज से श्रोताओं को मंत्र मुक्त कर देने वाले कैलाश खेर ने यहां अपने जीवन और संगीत के सफर के बारे में खुलकर बात की. उन्होंने बताया कि उनके पिता एक पंडित थे और यज्ञ के दौरान गाया करते थे, जिसे सुनकर वो बचपन से ही प्रभावित हुए. इसी से उनके संगीत की शुरुआत हुई. उन्होंने अपने संघर्षों के बारे में बात करते हुए कहा कि वो शिव भक्त हैं और उनकी तरह ही जिद्दी भी. उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा कि एमबीए पढ़े और सीईओ टाइप के लोगों ने उन्हें अक्सर रिजेक्ट किया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने जिंगल्स से शुरुआत की और धीरे-धीरे संगीत की दुनिया में अपनी पहचान बनाई.
कैलाश खेर ने कहा कि जो व्यक्ति चुप रह सकता है, वो दुनिया से बहुत कुछ सीख सकता है. कैलाश खेर ने कहा कि पहली बार इतनी बड़ी संख्या में पढ़े-लिखे लोग एक साथ दिख रहे हैं. उन्होंने कहा कि जैसे गाने वाले में फर्क होता है, ऐसे ही सुनने वालों में भी ज्ञान और विज्ञान का फर्क होता है. अपनी किताब 'तेरी दीवानी' का जिक्र करते हुए कैलाश खेर ने कहा कि काफी बार मन में किताब लिखने का विचार आया, लेकिन लिख नहीं पाया, फिर उन्हें संजॉय मिले और फिर बात बढ़ी. उन्होंने कहा कि उन्हें परमात्मा ने कहा कि वो सब कुछ देंगे, लेकिन वक्त नहीं देंगे. इसलिए जो बीज 10 साल पहले अंकुरित हुआ, उसे आप तक आने में 10 साल लगे. आज उनके इमोशन, जज्बात, 'तेरी दीवानी' के रूप में सबके बीच आए हैं.
उन्होंने बताया कि उनके पिता आध्यात्मिक सूक्तियां सुनाते थे, जो उन्हें आकर्षित करती थीं. चित्रहार में गाने आते थे, गजल गाते थे, 'थोड़ी थोड़ी पिया करो.' ये उन्हें आकर्षित नहीं करती थी. उनके पिताजी सत्संग करते थे. शौक था, लेकिन पैशन से गाते थे. आज तो पैशन भी शौकिया लगता है. कभी-कभी लगता है कि कैसे लोग भारत को रिप्रेजेंट करते हैं. उन्होंने कहा कि जिस वक्त लोग गणित पढ़ रहे थे, उन्होंने आर्ट्स सीखा. वो भी छिपकर. जैसे लोग प्यार करते हैं और कहते हैं कि इश्क इबादत है, लेकिन वो छिपकर करना होता है. जबकि पश्चिम में ऐसा नहीं होता है.
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