पाकुड़: राजनीति में कड़ी मेहनत और कार्यकर्ताओं के साथ बेहतर तालमेल ही नेता को संगठन के साथ-साथ क्षेत्र में पहचान और पद दिलाने में मदद करता है. चाहे वह नेता कितना भी होशियार क्यों न हो. झारखंड मुक्ति मोर्चा के बागी विधायक लोबिन हेम्ब्रम के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है. राजमहल लोकसभा क्षेत्र से बागी विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं सके.
नामांकन से पहले और बाद में ही नहीं बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान भी उन्होंने अपने तीखे तेवर तो जरूर दिखाए, लेकिन क्षेत्र में उनकी चतुराई काम नहीं आई. उन्होंने न सिर्फ संगठन छोड़ा, बल्कि जनता ने भी उन्हें सिरे से नकार दिया. राजमहल संसदीय क्षेत्र में हुए चुनाव में मतगणना ने उनके तेवर और कैलिबर दोनों को चकनाचूर कर दिया है.
मतगणना के बाद पूरे संसदीय क्षेत्र के मात्र 42 हजार 140 मतदाताओं ने उनके पक्ष में मतदान किया. बागी विधायक लोबिन हेम्ब्रम अपनी जमानत भी नहीं बचा सके. नामांकन के बाद उन्होंने दावा किया था कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के विजय कुमार हांसदा तीसरे स्थान पर रहेंगे, लेकिन वे खुद तीसरे स्थान पर चले गए.