धनबाद:विधानसभा चुनाव को लेकर 2019 की तरह 2024 में भी हर कोई मनपसंद प्रत्याशी की जीत चाह रहा है. वहीं, सियासत के लिए भी यह साल काफी महत्वपूर्ण है और अलग-अलग राजनीतिक दल बेहतर परिणामों की उम्मीद कर रहे हैं. चार-पांच महीने पहले अप्रैल और मई महीने में झारखंड समेत देशभर के विभिन्न हिस्सों में लोकसभा चुनाव हुआ था. जून महीने में केंद्र में एनडीए गठबंधन की सरकार बनने के 5 माह बाद फिर नवंबर में विधानसभा चुनाव होने जा रहा हैं. झारखंड में 81 सीटों पर वोटिंग होगी, जिसे दो चरणों में पूरा करना है.
सभी राजनीतिक दल के नेता जिला स्तर से लेकर आलाकमान तक चुनाव की तैयारी में जोर-शोर से लगे हुए हैं. दूसरी ओर भाजपा हो या कांग्रेस या फिर अन्य पार्टी, सभी नेता अपनी-अपनी पार्टी के प्रत्याशी की जीत के लिए दिन रात मंथन कर रहे हैं.
एनडीए-इंडिया गठबंधन में टक्कर
धनबाद, झरिया, बाघमारा, टुंडी, निरसा और सिंदरी विधानसभा क्षेत्र में जीत के लिए प्रत्याशियों ने पूरी ताकत झोंक दी है. धनबाद में 20 नवंबर को मतदान होगा. एनडीए प्रत्याशी जोर-शोर से तैयारी में जुट गए हैं. धनबाद से राज सिन्हा, झरिया से रागिनी सिंह, निरसा से अपर्णा सेन गुप्ता और सिंदरी विधानसभा क्षेत्र से तारा देवी चुनाव लड़ रही है. टुंडी से भाजपा की सहयोगी आजसू पार्टी के प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे. इस बार एनडीए से भाजपा, आजसू और लोजपा मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं.
वहीं, इंडिया गठबंधन से झामुमो, कांग्रेस, राजद और माले मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं. लोगों की माने तो एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों झारखंड में अपनी-अपनी सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं. धनबाद जिला की छह विधानसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच चुनावी मुकाबले में भीतरघात का डर बढ़ गया है. जिसका फायदा जयराम महतो की पार्टी को मिल सकता है.
कई दिग्गजों को धनबाद विधानसभा से नहीं मिला टिकट
एलबी सिंह, चंद्रशेखर अग्रवाल, अमरेश सिंह और धीरेंद्र सिंह समेत कई दिग्गजों को धनबाद विधानसभा क्षेत्र से टिकट नहीं मिला है. ये सभी धनबाद विधानसभा क्षेत्र से भाजपा की सीट पर चुनाव लड़ना चाहते थे. विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले एलबी सिंह समेत कई लोग खुद को समाजसेवी और जनता के असली सेवक बताकर अक्सर शहरी क्षेत्रों में दौरा करते नजर आते थे.
विधानसभा चुनाव प्रत्याशी की घोषणा होते ही एलबी सिंह समेत कई दिग्गज अब क्षेत्रों में नजर भी नहीं आ रहे हैं. एलबी सिंह लगभग 2 महीने तक धनबाद विधानसभा क्षेत्र में काफी सक्रिय रहे. अपने समर्थकों के साथ क्षेत्र का दौरा करने के दौरान कह रहे थे कि इस बार वही विधायक बनेंगे और धनबाद विधानसभा में बेहतर विकास का कार्य करेंगे.
क्या इस बार बीजेपी के राज सिन्हा लगा पाएंगे हैट्रिक?
2019 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी राज सिन्हा ने अपने निकटतम प्रत्याशी कांग्रेस के मन्नान मल्लिक को शिकस्त दी थी. 2019 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राज सिन्हा को 120773 मत मिले थे तो वहीं कांग्रेस प्रत्याशी मन्नान मल्लिक को 90144 मत मिले थे. इससे पहले 2014 के चुनाव में भी राज सिन्हा यहां से विधायक चुने गए थे.
2009 के विधानसभा चुनाव में राज सिन्हा को मन्नान मल्लिक ने काफी कम अंतर लगभग 900 वोट से हरा दिया था. इससे पहले 2005 के चुनाव में इस सीट से पशुपति नाथ सिंह विधायक बने थे. कुल मिलाकर यह कहा जाए कि पिछले दो दशक से धनबाद विधानसभा सीट पर भाजपा का राज रहा है. यही वजह है कि भाजपा इस सीट को सुरक्षित सीट मानती रही है, लेकिन इस बार कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टी के प्रत्याशियों को भीतरघात का डर सता रहा है.
कांग्रेस जिलाध्यक्ष संतोष सिंह भी चुनाव लड़ने की तैयारी में
विधानसभा चुनाव को लेकर इस बार कांग्रेस आलाकमान की ओर से चुनाव लड़ने के इच्छुक अपने सभी नेता और कार्यकर्ताओं से बायोडाटा की मांग की गई थी. जिसके बाद धनबाद जिले से लगभग 200 बायोडाटा भेजे गए, लेकिन सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को हैरानी उस समय हुई जब टिकट पाने की लाइन में अपने ही जिला अध्यक्ष को देखा.
दरअसल कांग्रेस के जिला अध्यक्ष संतोष सिंह ने भी अन्य नेताओं की तरह धनबाद से चुनाव लड़ने के लिए अपना बायोडाटा प्रदेश कांग्रेस को भेजा था. यह खबर बाहर आने के बाद कई कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सड़क पर उतरकर अपने ही जिला अध्यक्ष संतोष सिंह के खिलाफ आवाज बुलंद की और संतोष सिंह का विरोध किया था.
टिकट मिलने के बाद विवाद बढ़ने की आशंका
कांग्रेसियों ने कहा कि जिसके जिम्मे जिले का प्रभार हो, जिस पर संगठन को मजबूत करने और अपने प्रत्याशियों को जिताने का जिम्मा हो, वो खुद ही अगर चुनाव लड़ने की लाइन में खड़े हो जाए तो फिर पार्टी का बेड़ा गर्क ही होगा. हालांकि कांग्रेस आलाकमान ने अभी तक धनबाद सीट से अपने प्रत्याशी की नाम की घोषणा नहीं की है, लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि संतोष सिंह ही धनबाद सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी होंगे. अब अगर कांग्रेस संतोष सिंह को टिकट देती है, तो भीतरघात तो लगभग तय है.