रांची:झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में पहले फेज के चुनाव प्रचार का शोर थम गया है. 13 नवंबर को 43 सीटों के लिए वोट डाले जाने हैं. सपा, बसपा, एआईएमआईएम समेत कई पार्टियां मैदान में हैं लेकिन मुकाबले की बात होने पर चर्चा सिर्फ एनडीए और इंडिया ब्लॉक की हो रही है. फिर भी जयराम महतो की पार्टी जेएलकेएम सुर्खियों में है. खासकर, डुमरी और बेरमो सीट को लेकर. क्योंकि दोनों सीटों पर खुद जयराम महतो चुनाव लड़ रहे हैं. पार्टी प्रवक्ता विजय सिंह तो यहां तक दावा कर रहे हैं कि उनकी पार्टी किंग मेकर की भूमिका में तो जरुर रहेगी.
क्या वाकई जयराम महतो बन सकते हैं किंग मेकर
वरिष्ठ पत्रकार चंदन मिश्रा का मानना है कि जयराम महतो तो राजनीतिक वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं. किंग मेकर बनने की बात तो बहुत दूर है. एक सीट से ज्यादा आता है तो समझ में आएगा कि उनका प्रभाव है या फिर कहा जाएगा कि मीडिया के बनाए हुए नेता हैं. चंदन मिश्रा के मुताबिक लोकसभा चुनाव में गिरिडीह सीट को लेकर जयराम महतो की पार्टी ने लंबी चौड़ी भूमिका बांधी थी. खुद जयराम मैदान में उतरे थे. लेकिन तीसरे नंबर पर चले गये. विधानसभा चुनाव में पार्टी नहीं संभाल पा रहे हैं. गांडेय और गढ़वा के उनके दो प्रत्याशी झामुमो में जा चुके हैं. ऊपर से वे एक समुदाय विशेष को लेकर राजनीति करना चाह रहे हैं. अब यह चलने वाला नहीं है.
वहीं जेएलकेएम के प्रवक्ता विजय सिंह की कुछ और ही दलील है. उनके मुताबिक डुमरी और बेरमो में जयराम महतो को जनता का भरपूर आशीर्वाद मिलना तय है. क्योंकि गिरिडीह लोकसभा चुनाव के वक्त उन्हें इन क्षेत्रों में बढ़त मिली थी. उनका दावा है कि सिल्ली, ईचागढ़ और जुगसलाई सीट पर भी पार्टी मजबूत स्थिति में है. ऐसे में जेएलकेएम को किंग मेकर की भूमिका निभाने से कोई नहीं रोक सकता.
क्या जेवीएम वाले बाबूलाल मरांडी जैसा होगा हाल
यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि 2006 में भाजपा से अलग होकर बाबूलाल मरांडी ने जेवीएम का गठन किया था. उनकी बदौलत कई नए चेहरों की राजनीति में एंट्री भी हुई. लेकिन 2014 में उनके सारे अरमान चकनाचूर हो गये. आठ सीटों पर जीत के बावजूद उनकी पार्टी के छह विधायक (नवीन जायसवाल, अमर बाउरी, गणेश गंझू, आलोक चौरसिया, रंजीत सिंह और जानकी यादव) भाजपा में शामिल हो गये. खुद बाबूलाल मरांडी गिरिडीह और धनवार सीट से चुनाव हार गये. सिर्फ प्रदीप यादव और प्रकाश राम जेवीएम में रह गये. 2019 में बाबूलाल मरांडी का सारा भ्रम टूट गया. पार्टी तीन सीटों पर आ गई. मौका देखकर बाबूलाल मरांडी फिर भाजपा में आ गये. उनके साथ साए की तरह रहे प्रदीप यादव कांग्रेस में चले गये.