आखिर क्यों भगवान जगन्नाथ को चढ़ाया जाता है भात का प्रसाद, ये है इसके पीछे की रहस्यमय कहानी - Jagannath Rath Yatra 2024
पूरे देश में भगवान जगन्नाथ के रथ यात्रा की तैयारी शुरू हो चुकी है. भगवान जगन्नाथ को भात का भोग लगाया जाता है. आइए जानते हैं कि आखिर क्यों भगवान जगन्नाथ को भात का ही भोग लगाया जाता है.
भगवान जगन्नाथ को चढ़ाया जाता है भात का प्रसाद (ETV Bharat)
सरगुजा: ओडिशा के पुरी में विराजमान भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पूरे देश में धूम धाम से निकाली जाती है. अम्बिकापुर में भी भगवान जगन्नाथ का मंदिर है. यहां से भी रथ यात्रा निकलती है. रथ में सवार होकर भगवान अपनी मौसी के घर दुर्गाबाड़ी अम्बिकापुर जाते हैं. रथ यात्रा की तैयारी में समिति के लोग जुट चुके हैं. काठ यानी की लकड़ी से बना रथ, जिसके पहिये भी लकड़ी के ही हैं, उसे सजाने का काम अंबिकापुर में शुरू जो चुका है. भगवान जगन्नाथ को भात का भोग चढ़ाया जाता है. इस भोग को पाने के लिए लोग लंबी कतार में लगे रहते हैं.
भगवान जगन्नाथ का मुख्य प्रसाद है भात: दरअसल, भगवान जगन्नाथ का मुख्य प्रसाद भात है. ओडिशा के पुरी में भी चावल की खिचड़ी का विशेष भोग भगवान को लगाया जाता है. रथ यात्रा के दिन इनके भक्त जयघोष के साथ यह भी कहते हैं कि, 'जगन्नाथ के भात को जगत पसारे हाथ'. यानी कि भगवान जगन्नाथ को चढ़ाया हुआ भात भक्तों के लिए खास है. यही कारण है कि भगवान जगन्नाथ का खास प्रसाद भात के लिए लोग लंबी कतार में लगे रहकर प्रसाद लेते हैं.
भात का भोग लगाने के पीछे की कहानी: इस बारे में पंडित दीपक शर्मा कहते हैं, "एक कथा मिलती है, जिसके अनुसार करमा बाई नाम के भक्त के कारण आज भी भगवान जगन्नाथ को भात का भोग लगता है. करमा बाई भगवान को अपने पुत्र जैसा स्नेह रखकर भक्ति करती थी. वो रोज उनके लिए चावल की खिचड़ी बनाती थी. भगवान भी भक्ति के भूखे ऐसे रहते हैं कि रोज मंदिर छोड़कर इस महिला के घर खिचड़ी खाने जाते थे. एक दिन एक साधू ने देखा की महिला बिना नहाए बिना किसी अनुष्ठान के ही भगवान का भोग बनाती है. साधू ने उसे तमाम नियम कानून बता दिए, महिला ने अगले दिन उन नियमों का पालन शुरू कर दिया, लेकिन अगले दिन नियम में रहते-रहते खिचड़ी बनाने में देर हो गई. भगवान इंतजार कर रहे थे, जैसे ही खिचड़ी बनी भगवान ने जल्दी ही उसे खाया क्योंकि उन्हें पट खुलने से पहले मंदिर में भी पहुंचना था. हड़बड़ी में भगवान के मुह पर खिचड़ी लगी रह गई. मंदिर में पुजारी ने देख लिया, तब भगवान ने पुजारी को सारी बातें बताई. वहां के राजा भी करमा की भक्ति से सहमत हुए. तब से जगन्नाथ स्वामी को चावल से बनी खिचड़ी का भोग लगाया जाता है."
अंबिकापुर में चल रही यात्रा की तैयारी: अंबिकापुर में रथ यात्रा की तैयारी कर रहे समिति के सदस्य चंदन कहते हैं, "इस बार विशेष तैयारी है. रथ यात्रा में सरगुजा की लोक परम्परा दिखेगी. उसमें शैला पार्टी को बुलाया जा रहा है, जो कर्मा नृत्य करेंगी." वहीं समिति के एक अन्य सदस्य अनिल कंसारी का कहना है, "22 जून को भगवान का कपाट बन्द हुआ, क्योंकि 14 दिन तक भगवान बीमार रहते हैं. पुजारी इस दौरान उन्हें जड़ी-बूटी देकर ठीक करता है. 6 जुलाई को इनके कपाट खुलेंगे. मान्यता के अनुसार भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा जी व बलदाऊ अपनी मौसी के घर जाते हैं. कृष्ण जी ने मौसी को वचन दिया था कि वो 10 दिन मौसी के घर में विश्राम करेंगे, इसलिए ये परंपरा चली आ रही है. अम्बिकापुर के लोग दुर्गा बाड़ी को मौसी घर बनाये हैं. ये परम्परा अम्बिकापुर में बीते 30 वर्षों से निभाई जा रही हैं."
बीमार होने पर भगवान को चढ़ता है काढ़ा: फिलहाल भगवान जगन्नाथ का मंदिर बंद है. भगवान जगन्नाथ क्वारंटाइन में हैं. भगवान जगन्नाथ की पूजा पद्धति में मान्यताएं थोड़ी अलग है. सामान्य रूप से अन्य देवी-देवताओं की तुलना में इनके पूजन पद्धति में मानवीय संवेदनाओं का समावेश अधिक मिलता है. बड़ी बात यह है कि वर्षों पुरानी उन मान्यताओं का पालन आज भी भगवान जगन्नाथ के भक्त पूरे देश में करते हैं. फिलहाल भगवान का मंदिर 14 दिनों के लिए बंद है. इस दौरान मान्यता है कि भगवान की तबीयत खराब हो जाती है और पुजारी उन्हें आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से बना काढ़ा भोग लगाकर उनका उपचार करते हैं.