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जबलपुर में गोबर से बदल गई महिलाओं की किस्मत, परियट नदी को नहीं होने दे रहीं प्रदूषित - JABALPUR WOMAN MAKE COW DUNG CAKES

जबलपुर में महिलाओं ने गोबर को अपनी रोजी-रोटी का साधन बना लिया है. डेयरियों से निकलने वाला गोबर भी अब नदी में नहीं मिलता.

JABALPUR WOMAN MAKE COW DUNG CAKES
जबलपुर में महिलाएं गोबर से बना रहीं कंडे (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 17, 2024, 9:17 PM IST

जबलपुर: सरकार की लाख कोशिश के बाद भी जबलपुर में डेयरी उद्योग से निकलने वाला गोबर नदियों में मिलने से बंद नहीं हो पा रहा था. जबलपुर की कुछ महिलाओं ने इसी गोबर का उपयोग करके न केवल अपनी रोजी-रोटी का साधन बनाया बल्कि नदी में मिलने वाले लाखों टन गोबर को भी पानी को प्रदूषित होने से रोक दिया. जबलपुर की महिलाओं का यह प्रयास रंग ला रहा है.

जबलपुर में हैं बड़ी-बड़ी डेयरी

जबलपुर में बड़े-बड़े डेयरी उद्योग हैं. हरियाणा पंजाब से आए किसानों ने यहां डेयरी बनाई हैं. बड़े पैमाने पर यहां दूध का उत्पादन होता है. जबलपुर में दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने में वेटरनरी कॉलेज और यूनिवर्सिटी का भी बड़ा योगदान है. इस वजह से भी जबलपुर में डेयरी उद्योग से जुड़े हुए लोग आए. इन लोगों ने जबलपुर के करौंदी नाला इमलिया ग्राम में बड़ी-बड़ी डेयरियां बनाई हैं.

जबलपुर में गोबर से बदल गई महिलाओं की किस्मत (ETV Bharat)

परियट में मिलता है डेयरियों से निकलने वाला गोबर

दूध उत्पादन में गोबर एक बाय प्रोडक्ट होता है और बड़े पैमाने पर डेयरियों का कारोबार करने वाले लोगों के लिए यह एक समस्या होती है. इस गोबर में से कुछ हिस्सा किसान उठाकर ले जाते हैं और बाकी गोबर की बड़ी मात्रा जबलपुर के डेयरी कारोबारी परियट नाम की नदी में बहा देते हैं. यह पूरा गोबर नदी के पानी को प्रदूषित कर देता था. यही नदी आगे जाकर हिरन नदी में मिलती है जो बाद में जाकर नर्मदा में मिलती है.

जबलपुर की परियट नदी (ETV Bharat)

गोबर गैस प्लांट का उपयोग नहीं

दूध के उत्पादन से जुड़े लोगों के पास गोबर की समस्या का सही निदान नहीं था. राज्य सरकार ने एक गोबर गैस प्लांट भी बनाया है लेकिन यह भी जबलपुर के पूरी डेयरी कारोबार का गोबर इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है, क्योंकि डेयरी से उसे उठा कर लाना और प्लांट तक भेजना भी महंगा काम है और इस काम में मजदूर नहीं मिलते.

महिलाएं बना रहीं कंडे (उपले) (ETV Bharat)

महिलाओं ने शुरू किया कंडे बनाना

इसी क्षेत्र में रहने वाली कुछ बेरोजगार महिलाओं ने डेयरी के गोबर से कंडे (उपले) बनाना शुरू किया और कुछ महिलाओं ने इन्हें बेचना शुरू किया. यह लोग दूध उत्पादन करने वाले कारोबारी से हर जानवर का ठेका कर लेते हैं और 20 रुपये प्रति जानवर के हिसाब से डेयरी मालिक को पैसा देते हैं. इसके बाद डेयरी के भीतर से गोबर उठाना इनकी जिम्मेदारी हो जाती है. इसी गोबर से यह उपले बनाते हैं.

कंडों से हो रही कमाई

उपले के जरिए अपने रोजी-रोटी चलाने वाली अनीता यादव बताती हैं कि "इन उपलों की वजह से सैकड़ो परिवारों को रोजगार मिल गया है और घरों में खाली बैठी महिलाएं ठीक-ठाक पैसा कमा रही हैं. एक ट्रॉली कंडों का 4 हजार रुपये मिलता है. इन उपलों को कई कारोबार में इस्तेमाल किया जाता है. जबलपुर के लोहे गलाने के प्लांट से लेकर ईट बनाने में और मिट्टी से बने बर्तन पकाने में इन का इस्तेमाल किया जाता है."

'नर्मदा में पहले से कम पहुंच रही गंदगी'

जबलपुर के पर्यावरणविद अखिलेश चंद्र त्रिपाठीका कहना है कि "परियट नदी, हिरन नदी की सहायक नदी है और हिरण नर्मदा की सहायक नदी है. कुल मिलाकर यह गंदगी नर्मदा नदी तक पहुंचती है. पहले ही नर्मदा नदी कई गंदे नालों की वजह से प्रदूषित हो रही है इसलिए इन महिलाओं ने गोबर का उपयोग करके जो रोजगार स्थापित किया है. उसके दो तरफा फायदे हैं इन्हें तो रोजगार मिला ही साथ ही सैकड़ों ट्रॉली गोबर नदी में मिलने से भी बच गया."

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