जबलपुर: कारगिल युद्ध को पूरे 25 साल हो चुके हैं. यह साल कारगिल युद्ध का रजत जयंती वर्ष है. भारतीय सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल निश्चय राऊत ने अपनी कारगिल यात्रा का अनुभव ईटीवी भारत के साथ साझा किया. मेजर जनरल निश्चय राऊत का कहना है, '"कारगिल की पहाड़ियां हम सेनानियों के लिए किसी तीर्थ से कम नहीं है."
26 जुलाई के दिन जीते थे हम कारगिल युद्ध
रिटायर्ड मेजर जनरल निश्चय राऊत ने बताया, "कारगिल युद्ध को 25 साल पूरे हो गए हैं. 84 दिनों तक चले कारगिल युद्ध में भारत ने 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तान के घुसपैठियों पर शानदार जीत हासिल की थी. मई के महीने में पाकिस्तान के सैनिकों ने घुसपैठ शुरू कर दी थी. कारगिल युद्ध पारंपरिक युद्धों में सबसे घातक था. जहां भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तानी आक्रमणकारियों को खदेड़ने के लिए सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र में भीषण लड़ाई लड़ी थी. दुश्मन पहले से ही कारगिल-द्रास की पर्वत श्रृंखला पर अपनी पसंद के ठिकानों पर कब्जा किए हुए था और भारतीय सैनिकों पर सामरिक दबाव बना रहा था. भारतीय सेना ने कठिन इलाकों को पार करके कारगिल और बटालिक दोनों क्षेत्रों में दुश्मन से मुकाबला करने के लिए खड़ी ऊंचाइयों पर चढ़ कर युद्ध किया."
545 वीरों ने दी थी शहादत
कारगिल युद्ध में 545 वीरों सैनिक शहीद हुए थे. जिनमें से 538 सेना से, 05 वायु सेना से और 02 नागरिक पोर्टर भी थे. इनके अलावा हजार से अधिक वीर घायल भी हो गए. मेजर जनरल निश्चय राऊत का कहना कि "26 जुलाई हमारे लिए गौरव दिवस है."
कारगिल विजय दिवस
कारगिल विजय दिवस की रजत जयंती मनाने के लिए जबलपुर से पूर्व सैनिक सेवा परिषद (रक्षा मंत्रालय द्वारा मान्यता प्राप्त पूर्व सैनिक संगठन) के तहत 02 से 08 जुलाई 2024 तक कारगिल युद्ध क्षेत्र का दौरा करने के लिए गया था. रिटार्यड मेजर जनरल निश्चय राऊत के नेतृत्व में भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना के पचास पूर्व सैनिक और मातृशक्ति की एक टीम ने 03 जुलाई को जोर्जिला दर्रे को पार किया और अगले ही दिन यानी 04 जुलाई को कारगिल युद्ध के नायकों के सम्मान में बनाए गए कारगिल युद्ध स्मारक पर उन शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित की. जिन्होंने बहादुरी से लड़ते हुए राष्ट्र की सेवा में अपने प्राणों की आहुति दी.
शहीदों की वीरता बयां करता द्रास
द्रास में बना कारगिल युद्ध स्मारक शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि है, क्योंकि यह इन बहादुर सैनिकों की वीर गाथा को बयां करता है. द्रास शहर की खूबसूरती को निहारते हुए युद्ध स्मारक की पृष्ठभूमि में तोलोलिंग पर्वत है. कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीर सैनिकों के नाम यहां अंकित हैं. जिसके सम्मुख अमर जवान ज्योति श्रद्धा स्वरूप प्रज्वलित होती है. युद्ध स्मारक के दाहिनी ओर स्मृति कक्ष हमारे बहादुर सैनिकों की बहादुरी की गाथा को छाया चित्रों में समेटे हुए है. स्मारक के बाईं ओर वीर भूमि स्थल, पूरे क्षेत्र में किए गए विभिन्न सैन्य अभियानों में शहीद बहादुर भारतीय सैनिकों द्वारा दिए गए सर्वोच्च बलिदानों को समर्पित है.
सैनिकों के जज्बे को सलाम
जनरल राऊत ने बताया कि "हम उसी दिन उत्तर में स्थित मुख्य कारगिल रिज क्षेत्र में आगे बढ़ गए. कोई भी लेख उस पूर्ण प्रतिबद्धता और पेशेवर क्षमता को बयां नहीं कर सकता है. जिसके साथ हमारे सैनिक इन दुर्गम क्षेत्रों में देश सेवा कर रहे हैं. कारगिल क्षेत्र में भारतीय सैनिक अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए कहीं-कहीं 18,000 फीट की ऊंचाई से भी ऊंची चोटियों पर तैनात हैं. वे भारी बर्फबारी का सामना करते हैं, खासकर सर्दियों में जब तापमान शून्य से साठ डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है. ये बहादुर दिल सर्वोच्च स्तर की सतर्कता रखते हुए चौबीसों घंटे हमारी सीमाओं की रक्षा करते हैं और हमारी सुरक्षा व स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हैं.