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विक्रम बत्रा ने 545 शहीदों संग युद्ध भूमि में मौत चूम दिलाई कारगिल तीर्थ पहाड़ियां, जरुर देखें- जनरल निश्चय राऊत - Vikram Batra Kargil War Hero

कारगिल विजय दिवस पर भारतीय सेना से रिटार्यड मेजर जरनल निश्चय राऊत ने अपनी कारगिल यात्रा का अनुभव किया साझा. उन्होंने कहा कि 'कारगिल किसी तीर्थ से कम नहीं है.'

Vikram Batra Kargil War Hero
कारगिल युद्ध की मनाई जा रही रजत जयंती वर्ष (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jul 26, 2024, 8:20 AM IST

Updated : Jul 26, 2024, 12:15 PM IST

जबलपुर: कारगिल युद्ध को पूरे 25 साल हो चुके हैं. यह साल कारगिल युद्ध का रजत जयंती वर्ष है. भारतीय सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल निश्चय राऊत ने अपनी कारगिल यात्रा का अनुभव ईटीवी भारत के साथ साझा किया. मेजर जनरल निश्चय राऊत का कहना है, '"कारगिल की पहाड़ियां हम सेनानियों के लिए किसी तीर्थ से कम नहीं है."

रिटायर्ड मेजर जनरल निश्चय राऊत ने शहीदों को किया याद (ETV Bharat)

26 जुलाई के दिन जीते थे हम कारगिल युद्ध

रिटायर्ड मेजर जनरल निश्चय राऊत ने बताया, "कारगिल युद्ध को 25 साल पूरे हो गए हैं. 84 दिनों तक चले कारगिल युद्ध में भारत ने 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तान के घुसपैठियों पर शानदार जीत हासिल की थी. मई के महीने में पाकिस्तान के सैनिकों ने घुसपैठ शुरू कर दी थी. कारगिल युद्ध पारंपरिक युद्धों में सबसे घातक था. जहां भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तानी आक्रमणकारियों को खदेड़ने के लिए सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र में भीषण लड़ाई लड़ी थी. दुश्मन पहले से ही कारगिल-द्रास की पर्वत श्रृंखला पर अपनी पसंद के ठिकानों पर कब्जा किए हुए था और भारतीय सैनिकों पर सामरिक दबाव बना रहा था. भारतीय सेना ने कठिन इलाकों को पार करके कारगिल और बटालिक दोनों क्षेत्रों में दुश्मन से मुकाबला करने के लिए खड़ी ऊंचाइयों पर चढ़ कर युद्ध किया."

545 वीरों ने दी थी शहादत

कारगिल युद्ध में 545 वीरों सैनिक शहीद हुए थे. जिनमें से 538 सेना से, 05 वायु सेना से और 02 नागरिक पोर्टर भी थे. इनके अलावा हजार से अधिक वीर घायल भी हो गए. मेजर जनरल निश्चय राऊत का कहना कि "26 जुलाई हमारे लिए गौरव दिवस है."

कारगिल विजय दिवस

कारगिल विजय दिवस की रजत जयंती मनाने के लिए जबलपुर से पूर्व सैनिक सेवा परिषद (रक्षा मंत्रालय द्वारा मान्यता प्राप्त पूर्व सैनिक संगठन) के तहत 02 से 08 जुलाई 2024 तक कारगिल युद्ध क्षेत्र का दौरा करने के लिए गया था. रिटार्यड मेजर जनरल निश्चय राऊत के नेतृत्व में भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना के पचास पूर्व सैनिक और मातृशक्ति की एक टीम ने 03 जुलाई को जोर्जिला दर्रे को पार किया और अगले ही दिन यानी 04 जुलाई को कारगिल युद्ध के नायकों के सम्मान में बनाए गए कारगिल युद्ध स्मारक पर उन शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित की. जिन्होंने बहादुरी से लड़ते हुए राष्ट्र की सेवा में अपने प्राणों की आहुति दी.

निश्चय राऊत बोले कारगिल यात्रा किसी तीर्थ यात्रा से कम नहीं (ETV Bharat)

शहीदों की वीरता बयां करता द्रास

द्रास में बना कारगिल युद्ध स्मारक शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि है, क्योंकि यह इन बहादुर सैनिकों की वीर गाथा को बयां करता है. द्रास शहर की खूबसूरती को निहारते हुए युद्ध स्मारक की पृष्ठभूमि में तोलोलिंग पर्वत है. कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीर सैनिकों के नाम यहां अंकित हैं. जिसके सम्मुख अमर जवान ज्योति श्रद्धा स्वरूप प्रज्वलित होती है. युद्ध स्मारक के दाहिनी ओर स्मृति कक्ष हमारे बहादुर सैनिकों की बहादुरी की गाथा को छाया चित्रों में समेटे हुए है. स्मारक के बाईं ओर वीर भूमि स्थल, पूरे क्षेत्र में किए गए विभिन्न सैन्य अभियानों में शहीद बहादुर भारतीय सैनिकों द्वारा दिए गए सर्वोच्च बलिदानों को समर्पित है.

सैनिकों के जज्बे को सलाम

जनरल राऊत ने बताया कि "हम उसी दिन उत्तर में स्थित मुख्य कारगिल रिज क्षेत्र में आगे बढ़ गए. कोई भी लेख उस पूर्ण प्रतिबद्धता और पेशेवर क्षमता को बयां नहीं कर सकता है. जिसके साथ हमारे सैनिक इन दुर्गम क्षेत्रों में देश सेवा कर रहे हैं. कारगिल क्षेत्र में भारतीय सैनिक अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए कहीं-कहीं 18,000 फीट की ऊंचाई से भी ऊंची चोटियों पर तैनात हैं. वे भारी बर्फबारी का सामना करते हैं, खासकर सर्दियों में जब तापमान शून्य से साठ डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है. ये बहादुर दिल सर्वोच्च स्तर की सतर्कता रखते हुए चौबीसों घंटे हमारी सीमाओं की रक्षा करते हैं और हमारी सुरक्षा व स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हैं.

1971 में वापस लिया था रंधावा टॉप

यहीं सेना के अधिकारियों की मदद से हमें 14,620 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक अग्रिम चौकी पर चढ़ने का अवसर मिला. जिसे 'रंधावा टॉप'के नाम से जाना जाता है. जिसका महत्व यह है कि इस चौकी ने 1947-48 से लेकर पाकिस्तान के साथ लड़े गए सभी चार युद्धों को देखा है. सामरिक रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण इस चोटी को भारतीय सेना ने मेजर बलजीत सिंह रंधावा के साहसी नेतृत्व में जीता था. जिन्होंने बहादुरी से लड़ते हुए 17 मई 1965 को शहादत प्राप्त की थी और इस बहादुर के नाम पर इस पोस्ट का नाम रखा गया है. अगस्त 1965 में दोनों देशों के बीच कच्छ में हुए एक समझौते के अनुसार इस पोस्ट को मजबूरन पाकिस्तान को सौंप दिया गया था, लेकिन हमारी वीर सेना ने 1971 के युद्ध के दौरान इसे वापस हासिल कर लिया. हम सभी ने इस पोस्ट पर बने युद्ध स्मारक पर अपने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. यहां से नियंत्रण रेखा के पार फैले पाकिस्तानी अग्रिम क्षेत्र को देखा जा सकता है.

रिटार्यड मेजर जरनल निश्चय राऊत ने शहीदों को दी श्रद्धांजलि (ETV Bharat)

शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को दी श्रद्धांजलि

05 जुलाई को हमने द्रास में कारगिल युद्ध के नायक "कैप्टन विक्रम बत्रा" परम वीर चक्र (मरणोपरांत) की स्मृति में बनाए गए युद्ध स्मारक पर जाकर श्रद्धांजलि दी. हमने उसी दिन श्रीनगर के लिए अपनी वापसी यात्रा शुरू की, जो काली सिंध की धवल धारा के साथ बनी पहाड़ी सड़क से गुजरी. हम ज़ोजी-ला युद्ध स्मारक पर रुके, जो उन भारतीय सैनिकों के सम्मान में बनाया गया है. जिन्होंने 1947-48 के ऑपरेशन बाइसन में वीरतापूर्ण कार्रवाई करते हुए पाकिस्तानी हमलावरों से ज़ोजी-ला दर्रे को फिर से हासिल किया. जोजी-ला दर्रे पर नियंत्रण पाने के लिए ऑपरेशन बाइसन के तहत भारतीय टैंकों के अप्रत्याशित हमले से दुश्मन हैरान था और डर कर भाग खड़ा हुआ. यह हमला उस समय दुनिया भर में सबसे अधिक ऊंचाई पर लड़ा गया टैंक अटैक है. इस युद्ध से लद्दाख को पाकिस्तानी दुस्साहस से बचा लिया गया.

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युद्ध स्मारक में शहीदों को अर्पित की श्रद्धांजलि

06 जुलाई को श्रीनगर में निर्मित युद्ध स्मारक पर उन शहीदों के सम्मान में पुष्पांजलि अर्पित की गई. जिन्होंने आतंकवाद से लड़ते हुए शहादत प्राप्त की है. यहीं पर स्थित 'इबादत-ए-शहादत' संग्रहालय में प्राचीन कश्मीरी इतिहास, कला, संस्कृति और महान भारतीय योद्धाओं की वीर गाथाएं, पाकिस्तान से विभिन्न युद्धों में जब्त किए हथियार आदि प्रदर्शित हैं.

Last Updated : Jul 26, 2024, 12:15 PM IST

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