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8 साल से जयवर्धन का पीछा कर रहा था एक केस, आखिरकार हाईकोर्ट ने दी राहत - MP HIGH COURT

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने कांग्रेस विधायक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग को खारिज कर दिया. जानिए क्या है पूरा मामला.

MP High Court
कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह को हाईकोर्ट से राहत (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 13, 2024, 12:45 PM IST

जबलपुर :कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह को हाईकोर्ट से राहत मिल गई है. जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने आपराधिक प्रकरण में आरोपी बनाने जाने संबंधित याचिका को खारिज कर दिया. एकलपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के आदेशों का हवाला देते हुए कहा है कि सीआरपीसी की धारा 319 का उपयोग सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए.

जयवर्धन सिंह पर मारपीट करने का आरोप

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के पुत्र तथा कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह को आपराधिक प्रकरण में आरोपी बनाये जाने की मांग करते हुए विशंभर लाल अरोड़ा ने याचिका दायर की थी. इसमें कहा गया था कि उसके साथ 20 सितम्बर 2016 को मारपीट की गयी थी. उसने थाना विजयपुर जिला गुना में सुबह 11.30 बजे घटना की सूचना दी थी. संज्ञेय अपराध होने के बावजूद पुलिस ने तत्काल एफआईआर दर्ज नहीं की. पुलिस ने शाम लगभग 5.30 बजे एफआईआर दर्ज की. उसने लिखित शिकायत में जयवर्धन सिंह के नाम का उल्लेख किया था. आरोपियों की सूची से जयवर्धन सिंह का नाम शामिल नहीं किया गया.

थाना प्रभारी पर मनमानी का आरोप भी लगाया

याचिका में कहा गया कि एसएचओ ने अपने अनुसार लोगों को आरोपी बनाते हुए धारा 342, 323, 506 तथा 34 के तहत प्रकरण दर्ज कर लिया. जिसके खिलाफ उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. सीआरपीसी की धारा 190 के तहत आवेदन पेश करने की स्वतंत्रता मिलने पर उसने हाईकोर्ट से याचिका वापस ली थी. जिला न्यायालय ने जनवरी 2022 में उसके आवेदन को खारिज कर दिया था. जिसके बाद उसने सीआरपीसी की धारा 319 के तहत आवेदन पेश किया.

कोर्ट ने याचिकाकर्ता को नियमों का हवाला दिया

एकलपीठ ने सुनवाई करते हुए आदेश में कहा था कि पूर्व में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को धारा 190 के तहत दायर आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता प्रदान की थी. आवेदन खारिज किये जाने को उसने चुनौती नहीं दी. इसके बाद धारा 319 के तहत आवेदन दायर किया. याचिकाकर्ता ने अपने बयान में यह नहीं बताया कि उसके साथ राधौगढ किले में घटना घटित हुई थी. इसके अलावा उसने यह भी स्वीकार किया है कि प्रथम चरण में जयवर्धन सिंह मौके पर नहीं थे.

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