गोरखपुर:देश और दुनिया में कोई ऐसी फील्ड नहीं जहां बेटियां अपना हाथ न आजमा रही हों. यही नहीं वह विभिन्न क्षेत्रों में बड़े मुकाम हासिल कर पुरुषों से भी आगे निकल चुकी हैं. लेकिन, कुछ ऐसी भी बेटियां हैं जो अच्छे मुकाम के लिए आज भी संघर्ष कर रही हैं. बेटियां खुद को सशक्त बनाने के लिए, उन सभी क्षेत्र में हाथ आजमा रही हैं, जिसपर पुरुषो का वर्चस्व रहा है. काम छोटा हो या बड़ा, व्हाइट कॉलर जॉब हो या कचरे और ग्रीस में लिपटा हुआ हाथ. बात हो रही है, ऐसे ही काम में जुटी बेटियों की जो गोरखपुर परिवहन निगम में बसों को सुरक्षा और रफ्तार देने के काम में जुटी रहती हैं.
हाथ कचरे में लिपा- पुता होता है. न कपड़े की परवाह और न ही अपने सौंदर्य को लेकर कोई चिंता. आईटीआई होल्डर यह बेटियां अपने इस हुनर को पिछले दो साल से अंजाम दे रहीं हैं. यह तकनीकी रूप से कुशल श्रमिक हैं, लेकिन उन्हें मानदेय मात्र 78 सौ रुपये मासिक मिलता है, जो श्रम कानून का उलंघन है. लेकिन इनका हौसल भविष्य को बेहतर बनाने में लगा है. वह नफा नुकसान की ज्यादा चिंता नहीं करतीं, लेकिन सवाल तो खड़ा होता ही है.
कुशल श्रमिक होने पर भी मिल रही कम सैलरी:आईटीआई का फॉर्म भरने के साथ इन बेटियों को मोटर मैकेनिक और डीजल ट्रेनिंग में पढ़ाई करने का अवसर मिला. परीक्षा पास करने के बाद इन्हें गोरखपुर के राप्ती नगर डिपो के वर्कशॉप में बतौर एक बार प्रशिक्षु के रूप में शामिल किया गया. तब इन्हें प्रशिक्षण के साथ ₹5000 का मानदेय भी मिलता था. लेकिन, प्रशिक्षण अवधि पूरी होने के बाद फिर इन्हें अनुबंध के आधार पर बस के कल पुर्जों के मरम्मत के लिए नियुक्त कर लिया गया. लेकिन, अनुबंध की राशि इन्हें मात्र 7800 देना ही निश्चित की गई, जो श्रम कानून का वेज बोर्ड का उल्लंघन है. क्योंकि यह बेटियां तकनीकी रूप से दक्ष हैं. यह अकुशल श्रमिक नहीं हैं. इनका मानदेय कम से कम ₹12 हजार या इससे अधिक होना चाहिए. लेकिन, बेरोजगारी के दौर में बेहतर भविष्य की संभावना को देखते हुए यह बेटियां, अपने काम में पूरे मनोयोग से जुटी हैं. यह किसी तरह का कोई विरोध भी नहीं करती. लेकिन, मन ही मन कम वेतन पाने से दुखी हैं.