कुल्लू:हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला मुख्यालय ढालपुर मैदान में चल रहा अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव लंका दहन के साथ ही संपन्न हो गया. इसी के साथ कुल्लू दशहरा उत्सव में आए सैकड़ों देवी देवता भी वापस अपने देवालय की और लौट गए. अब अगले साल फिर से दशहरा में देवी देवताओं का भव्य मिलन होगा. फिलहाल अगले साल तक के लिए देवी देवता आपस से बिछड़ गए.
शनिवार को अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव के समापन पर लंका दहन की परंपरा को निभाया गया. भगवान रघुनाथ एक बार फिर से अपने रथ पर विराजमान हुए और ढोल नगाड़ों की थाप पर लंका पर चढ़ाई की. ऐसे में पुरानी परंपरा का निर्वाह करने के बाद भगवान रघुनाथ भी पालकी में सवार होकर अपने देवालय रघुनाथपुर के लिए भी रवाना हुए. इस लंका दहन में दो दर्जन से अधिक देवी देवताओं ने भी भाग लिया.
लंका दहन के लिए देवी देवताओं का भगवान रघुनाथ के अस्थाई शिविर में आना 3:00 बजे ही शुरू हो गया था. उसके बाद देव परंपरा को पूरा किया गया और भगवान रघुनाथ अपने रथ पर सवार हुए. जैसे ही भगवान रघुनाथ लंका दहन के लिए निकले तो पूरा ढालपुर जय श्री राम के नारों से गूंज उठा. शाम करीब 4:00 बजे लंका दहन के सभी रस्मों को पूरा किया गया और सबसे पहले माता हिडिंबा का रथ ढालपुर मैदान की ओर रवाना हुआ. माता हिडिंबा की लंका दहन में अहम भूमिका रहती है और भगवान रघुनाथ के रथ को खींचने के लिए भी सैकड़ों लोगों की भीड़ उमड़ती है.
लंका दहन के साथ-साथ जिला कुल्लू के विभिन्न ग्रामीण इलाकों से आए देवी देवताओं ने भी अपने-अपने देवालय का रुख किया. ऐसे में ग्रामीण इलाकों में 7 दिनों के बाद फिर से रौनक आएगी. क्योंकि देवी देवताओं के न होने से जिला कुल्लू के मंदिर भी सूने पड़ गए थे. वहीं, अंतिम दिन भी देवी देवताओं ने एक दूसरे के शिविर में जाकर मिलन की प्रक्रिया को पूरा किया और अगले साल फिर मिलने का वादा कर अपने-अपने मंदिरों की ओर लौट आए.
भगवान रघुनाथ के कारदार दानवेंद्र सिंह ने कहा, "लंका दहन के साथ अब अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव का समापन हो गया. अब अगले साल फिर से ढालपुर मैदान में अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाएगा".