कोरबा :छत्तीसगढ़ में एक दशक से भी अधिक समय बीत चुका है,लेकिन मध्यान्ह भोजन के लिए तय राशि में किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया है. दाल की कीमत दोहरा शतक लगाने वाली हैं.लेकिन सरकारी चश्में में मध्यान्ह भोजन का कुकिंग कॉस्ट कम है. इसे पकाने वाली समूहों की माने तो एमडीएम के इस दर पर अब सरकारी स्कूल में आने वाले जरूरतमंद बच्चों को पोषण अव्यवहारिक हो चुका है.
मिड डे मील का ये है सरकारी मीनू :सरकारी प्राइमरी और मिडिल स्कूल में मध्याह्न भोजन का मीनू तय होता है. सोमवार से शनिवार तक प्रत्येक दिन के अनुसार इसका पालन करने का नियम है. जिसमें प्राइमरी स्कूल के बच्चों के लिए चावल और दाल के साथ ही उपलब्धता के आधार पर मौसमी फल, गुड़ और चना देने का प्रावधान है. इसमें 450 ग्राम कैलोरी, 12 ग्राम प्रोटीन होना चाहिए. इसी तरह मिडिल स्कूल के लिए भोजन में 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन होना चाहिए.
बच्चों के लिए खाने का मीनू :प्राथमिक और मिडिल दोनों ही स्तर के बच्चों के लिए चावल, सांभर, मुनगा, पंचरत्न दाल, हरी सब्जी, सोयाबीन बड़ी, वेज पुलाव, टमाटर की फ्राइड चटनी, दूध के साथ खीर और अंकुरित चना के अलावा उपलब्धता के आधार पर मौसमी फल भी दिए जाने का प्रावधान है. लेकिन कम पैसों और व्यावहारिक दिक्कतों के कारण ज्यादातर स्कूल इस मीनू का पालन चाहकर भी नहीं कर पाते.
मध्यान्ह भोजन के लिए कितने पैसों की जरुरत :जिस तरह का मीनू सरकार ने तैयार किया है. उसके लिए प्रति थाली का हिसाब कुछ ज्यादा ही निकलेगा. मध्याह्न भोजन का संचालन करने के लिए स्कूल में दर्ज संख्या के आधार पर समूह को पैसे दिए जाते हैं. प्राइमरी केलिए 5 रुपए 69 पैसा तो मिडिल स्कूल में 8 रुपए 17 पैसे प्रति छात्र के दर से पैसे मिलते हैं. प्रत्येक दिन प्रति छात्र इतनी राशि तय की गई है. इसके अनुसार स्वयं सहायता समूह को राशि दी जाती है. जिसमें उन्हें मध्याह्न भोजन का संचालन करना होता है. समूह को दो रसोईये भी दिए जाते हैं. इसका मानदेय स्कूल शिक्षा विभाग वहन करता है.
क्यों शुरु हुई थी योजना :देश के आजाद होने के बाद शिक्षा को अंतिम छोर तक पहुंचाना बड़ी चुनौती थी. स्कूलों में बच्चों के उपस्थिति कम थी. बच्चों को शिक्षा से जोड़ने और उनकी उपस्थिति को बढ़ाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की सरकार ने यह महत्वपूर्ण योजना देश भर में लॉन्च की थी. जिसका मकसद था स्कूलों में एक समय का भोजन देकर बच्चों की उपस्थिति बढ़ाना. ताकि अभिभावक कम से कम इसलिए भी बच्चों को स्कूल भेजें कि उन्हें पोषणयुक्त भोजन मिल सके.