पटनाःबिहार के राजनीतिक दल और नेता आरक्षण की जमीन पर सियासत की फसल काटते रहे हैं. आरक्षण पर सरकार का फैसला हो या फिर सुप्रीम कोर्ट की राय, नेताओं का आंदोलन शुरू हो जाता है. आंदोलन के दौरान बिहार बैटलफील्ड बन जाता है. आंदोलन राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक का जरिया बन जाता है. विशेषज्ञ तो मानते हैं कि बिहार के राजनीतिक दलों को आरक्षण का मसाला सूट करता है.
आरक्षण को लेकर भारत बंदः ताजा मामला यूपीएससी लेटरल एंट्री का है. यूपीएससी के द्वारा लैटरल एंट्री के लिए 45 सीट पर वैकेंसी निकाली गयी, लेकिन आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया. विपक्ष ने सरकार को घेरा तो सरकार ने फैसले को वापस ले लिया. बावजूद आरक्षण के मसले पर राष्ट्रव्यापी बंद का आह्वान किया गया है. बिहार में भी बंद को समर्थन मिल रहा है. राजद और कांग्रेस सहित विपक्षी दल इसका समर्थन कर रहे हैं.
विकासशील इंसान का समर्थनःविकासशील इंसान पार्टी भारत बंद को समर्थन दिया है. वीआईपी के प्रमुख और बिहार के पूर्व मंत्री मुकेश सहनी ने कहा कि भारत बंद का वीआईपी नैतिक और सैद्धांतिक समर्थन करेगा. मुकेश सहनी ने कहा कि आरक्षण में किसी प्रकार का वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इस विसंगति को दूर करने के लिए केंद्र सरकार को प्रयास करना चाहिए.
क्रीमी लेयर पर भी विवादः इस बंद में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी विरोध जताएंगे. एससी-एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाया था. कोर्ट ने कहा कि आरक्षण जरूरतमंदों को मिलना चाहिए. कोर्ट ने आरक्षण पाने वाले की अलग अलग श्रेणी बनाने को कहा है. इसको लेकर राजनीतिक संगठन का कहना है कि इससे सिधांत को ठेस पहुंचेगा.
बता दें कि बिहार में आरक्षण पर सियासत का इतिहास भी पुराना है. ओबीसी आरक्षण को धार देने के लिए सन 1967 में त्रिवेणी संघ बना, जिसमें कोयरी, कुर्मी और यादव जाति के लोग शामिल थे. ओबीसी राजनीति की शुरुआत हुई इसी जातिगत राजनीति के गर्भ से मंडल कमीशन निकला. कहा गया कि ओबीसी को 27% आरक्षण दिया गया. साल 1992 में बीपी सिंह सरकार ने इसे लागू की थी.
बिहार में हुआ था जमकर हंगामाः बिहार में जब मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू की गयी थी तब जमकर हिंसा हुई थी. छात्र और कुछ राजनीतिक दल के लोगों ने विरोध किया. आरक्षण समर्थक और आरक्षण विरोधी सड़कों पर उतरे और जमकर हंगामा हुआ. कइ लोगों की जान भी चली गई थी.