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सिद्धपीठ कालीमठ मंदिर में उमड़ा भक्तों का सैलाब, दर्शनों के लिए लगी भीड़, जानें मंदिर के चमत्कारी रहस्य - Shardiya Navratri 2024

Shardiya Navratri 2024 आज से पूरे देश में शारदीय नवरात्रि की शुरूआत हो चुकी है. शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां भगवती के मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिली. इसी क्रम में सिद्धपीठ कालीमठ और कालीशिला में भक्तों का तांता नजर आया. यहां पर मां काली ने रक्तबीज नामक दैत्य का वध किया था.

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 5 hours ago

Published : 5 hours ago

Updated : 4 hours ago

Shardiya Navratri 2024
सिद्धपीठ कालीमठ में भक्तों का उमड़ा हुजूम (photo- ETV Bharat)

रुद्रप्रयाग:मां के नौ रूपों की उपासना के दिन आज से शुरू हो गए हैं. इसी क्रम में सिद्धपीठ कालीमठ और कालीशिला में बड़ी संख्या में भक्त मां काली के दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं. माना जाता है कि जो भी भक्त मां काली के मंदिर में सच्चे मन से पूजा-अर्चना करता है, उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. कालीशिला को 64 शक्तिपुंजों की शिला माना गया है. कालीशिला के शीर्ष भाग पर अनेक मंत्र लिखे गए हैं. अनेक तंत्र-मंत्रों से युक्त यह शिला सिद्धि प्राप्ति के लिए सिद्धस्थल मानी गई है. लोगों का मानना है कि आज भी उपासकों को यहां वनदेवियों, यक्ष, गंधर्व, नाग समेत अन्य देवी-देवताओं के दर्शन होते हैं. धैर्यवान भक्त ही इस शिला की परिक्रमा कर सकता है.

असुर शक्तियों से देवतागण थे प्रताड़ित:शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि प्राचीन काल में जब असुर शक्तियों से देवतागण प्रताड़ित होने लगे तो देवताओं ने भगवान शिव की तपस्या की. कई वर्ष बाद शिव प्रसन्न हुए, तब देवताओं ने राक्षसों के उत्पात से बचने का उपाय पूछा. भगवान शिव ने असमर्थता जाहिर करते हुए कहा कि मां काली की तपस्या करो, वो ही तुम्हें मुक्ति का उपाय बता सकती हैं. देवताओं ने मां काली की उपासना की. देवताओं की तपस्या से प्रसन्न होकर मां काली ने कालीमठ मंदिर से छह किमी ऊपर कालीशिला स्थान पर प्रकट हुई और उनकी समस्या पूछी.

सिद्धपीठ कालीमठ मंदिर में उमड़ा भक्तों का सैलाब (video-ETV Bharat)

मां काली ने रक्तबीज दैत्य का किया था वध:देवताओं ने बताया कि रक्तबीज नामक दैत्य ने देवलोक पर आक्रमण कर दिया है और देवतागण भागते फिर रहे हैं. मां काली क्रोधित हो गई और कालीशिला स्थान पर एक विशाल पत्थर पर जोर से पैर मारा और देवताओं से कहा कि वे चिंता ना करें, वो जल्द ही राक्षसों का वध करेंगी. इस स्थान पर मां काली ने रक्तबीज के साथ कई माह तक युद्ध करने के बाद उसका वध किया और फिर कालीमठ स्थान से अन्तर्ध्यान हो गई. तब से लेकर आज तक मां काली के सभी रूपों की पूजा कालीमठ और कालीशिला में होती है.

धुनी को धारण करने से भूत-पिशाच की बाधाएं होती हैं दूर:नवरात्रि की अष्टमी के दिन कालीमठ मंदिर में मेले का आयोजन किया जाता है. कालीमठ में मां काली, महालक्ष्मी और सरस्वती के रूप में मां दुर्गा का पूजन होता है. इस दिव्य स्थान में प्राचीनकाल से अखंड धुनी प्रज्वलित है. इस धुनी को धारण करने से भूत-पिशाच की बाधाएं दूर होती हैं. यहां पर प्रेत शिला, शक्ति शिला, मातंगी सहित अन्य शिलाएं भी विराजमान हैं. इसके अलावा क्षेत्रपाल, सिद्धेश्वर महादेव सहित गौरीशंकर के मंदिर भी विद्यमान हैं.

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