शिमला: छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के वर्ष 2024 बड़े सियासी घटनाक्रमों का साल रहा. पर्वतीय प्रदेश में विधानसभा की कुल 68 सीटें हैं. ऐसे में कैबिनेट में मंत्रियों की संख्या 12 ही हो सकती है. चुनाव जीतकर आए सभी नेताओं की किस्मत झंडी वाली कार और कैबिनेट मंत्री वाला रुतबा नहीं होता. ऐसे में किसी भी पार्टी के सीएम के लिए अपने करीबियों को एडजस्ट करना किसी चुनौती से कम नहीं. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू पर भी करीबियों को कोई न कोई पद देने का दबाव था. उन्होंने इसका रास्ता सीपीएस नियुक्ति के रूप में निकाला.
सीएम सुक्खू ने छह विधायकों को सीपीएस बनाया, लेकिन उनके लिए झंडी वाली कार, कोठी, स्टाफ आदि का सुख अधिक नहीं रहा. भाजपा की सरकार के समय खुद सीपीएस रहे तेजतर्रार नेता सतपाल सिंह सत्ती व अन्यों ने हाईकोर्ट में सीपीएस की नियुक्ति के खिलाफ याचिका दाखिल की थी. हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई हुई और अंतत: अदालत ने हिमाचल के सीपीएस एक्ट को ही अमान्य करार देते हुए असंवैधानिक बताया. इस तरह सीपीएस की हॉट कुर्सी छिन गई और छह नेताओं को फिर से विधायक बनना पड़ा. अदालती फैसले के बाद कांग्रेस से भाजपा में गए पूर्व कैबिनेट मंत्री सुधीर शर्मा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर तंज कसते हुए लिखा- पुन: मूषक भव:।
सीएम सुक्खू ने दिलाई थी शपथ
हिमाचल में कांग्रेस ने वर्ष 2022 का चुनाव जीता और सुखविंदर सिंह सुक्खू को सीएम पद की कमान सौंपी गई. जयराम सरकार के समय नेता प्रतिपक्ष रहे मुकेश अग्निहोत्री को डिप्टी सीएम की कुर्सी से संतोष करना पड़ा. सुखविंदर सरकार का शपथ ग्रहण समारोह शिमला के रिज मैदान पर 11 दिसंबर 2022 को आयोजित हुआ. फिर नए साल में 2023 में 8 जनवरी रविवार को आनन-फानन में ये सूचना आई कि सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू कुछ विधायकों को सीपीएस की शपथ दिलाने वाले हैं.
उल्लेखनीय है कि सीपीएस की शपथ सीएम ही दिलाते हैं। फिर सुबह-सवेरे कुल्लू के विधायक सुंदर सिंह ठाकुर, अर्की के एमएलए संजय अवस्थी, पालमपुर के आशीष बुटेल, रोहड़ू को मोहन लाल ब्राक्टा, बैजनाथ के किशोरी लाल व दून के रामकुमार चौधरी को सीपीएस की शपथ दिलाई गई. उन्हें विभागों के साथ अटैच किया गया. ये सभी सीएम सुखविंदर सिंह के करीबी माने जाते हैं. दिलचस्प बात ये थी कि अभी सुखविंदर सरकार की कैबिनेट का विस्तार नहीं हुआ था, लेकिन सीपीएस पहले बना दिए गए. खैर, 17 जनवरी 2023 को रूल्स ऑफ बिजनेस में बदलाव कर ये सुनिश्चित बनाया गया कि मंत्री के पास फाइल सीपीएस के माध्यम से जाएंगी. सीपीएस को मंत्रियों के साथ अटैच किया गया था.
भाजपा से देखा नहीं गया सीपीएस बने नेताओं का सुख
इधर, छह सीपीएस ने शपथ ली, उधर भाजपा का विरोध अंगड़ाई लेने लगा. एक तो वर्ष 2016 में पीपुल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस नामक संस्था ने सीपीएस एक्ट को चुनौती दी थी. फिर कल्पना देवी व भाजपा विधायकों सतपाल सिंह सत्ती व अन्य ने सीपीएस की नियुक्ति को चुनौती दी. यही नहीं, डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री की नियुक्ति को भी चुनौती दी गई थी, लेकिन बाद में इसे वापस ले लिया गया. हाईकोर्ट में इस मामले में लंबी सुनवाई चली. हाईकोर्ट की सख्ती का आलम ये था कि 3 अक्टूबर 2023 को हुई सुनवाई में राज्य सरकार को जवाब देने के लिए अंतिम मौका दिया गया. राज्य सरकार ने पहले तो सतपाल सिंह सत्ती व अन्यों की याचिकाओं की मेंटेनेबिलिटी पर सवाल उठाए, लेकिन सरकार की अदालत में दाल नहीं गली. यही नहीं, सतपाल सिंह सत्ती व अन्यों ने याचिकाओं के अंतिम निपटारे तक सीपीएस के कामकाज करने पर रोक लगाने की मांग भी की थी. खैर, इससे पहले 31 अगस्त 2023 को हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने 18 सितंबर को सुनवाई का आदेश दिया था.