प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि सिविल प्रकृति व्यवसायिक, जमीन संबंधी या समझौते जैसे विवादों में आपराधिक मुकदमा दर्ज करने से पहले सरकारी वकील की विधिक राय और रिपोर्ट अनिवार्य रूप से ली जाए. कोर्ट ने कहा कि जहां आईपीसी की धारा 406, 408, 420/467 व 471 में मुकदमा दर्ज करने की मांग की गई है, प्रकरण व्यवसायिक या समझौते से सिविल प्रकृति का विवाद है तो केस दर्ज करने से पहले संबंधित जिलों के सरकारी वकील से सलाह लेने व एक रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद ही मुकदमा दर्ज किया जाए. कानपुर के सोने लाल व अन्य की याचिका पर सुनवाई के रही न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान व न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की कोर्ट ने यह आदेश दिया.
कोर्ट ने डीजीपी को इस संबंध में प्रदेश के सभी ज़िला पुलिस कमिश्नर, एसएसपी को सर्कुलर जारी करने का निर्देश दिया है, ताकि संबंधित पुलिस स्टेशनों के अधिकारियों को आदेश का पालन करना सुनिश्चित किया जा सके. कोर्ट ने निदेशक अभियोजन यूपी को भी निर्देश दिया है कि वह संबंधित सभी सरकारी वकीलों डीजीसी क्रिमिनल और सिविल को इस संबंध में आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करें.
कोर्ट ने कहा कि इस आदेश का पालन किए बिना यदि पुलिस अधिकारी एफआईआर दर्ज करते हैं तो यह अदालत की अवमानना माना जाएगा. कोर्ट ने प्रदेश के सभी न्यायिक मजिस्ट्रेटों को भी धारा 156 (3) के तहत एफआईआर दर्ज करने का आदेश देते समय शिकायत का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने का निर्देश दिया है. निदेशक न्यायिक प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान, लखनऊ को निर्देश दिया कि वे यूपी के सभी मजिस्ट्रेटों को पालन की जाने वाली सही प्रक्रिया के बारे में जागरूक करें. इसके लिए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की सेवाएं . रजिस्ट्रार जनरल को इस आदेश का तत्काल अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक और निदेशक अभियोजन को निर्देश दिया कि वह अगली सुनवाई की तारीख से पहले इस आदेश के पालन में की गई कार्रवाई के संंबंध में हलफनामा दायर करें.