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हिमाचल के उच्च शिक्षा निदेशक पर चलेगा अवमानना का केस, हाईकोर्ट ने इस मामले में दिखाई सख्ती - Himachal High Court - HIMACHAL HIGH COURT

Himachal High Court: शिक्षकों के तबादले रोकने को लेकर उठाए गए उपायों को लेकर हाईकोर्ट ने उच्च शिक्षा निदेशक से सवाल पूछा था, जिसका उच्च शिक्षा निदेशक कोई स्पष्टीकरण नहीं दे पाए. ऐसे में कोर्ट ने शिक्षा निदेशक को कारण बताओ नोटिस जारी किया और पूछा है कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही क्यों नहीं शुरू की जाए. पढ़िए पूरी खबर...

Himachal High Court
हिमाचल हाईकोर्ट (FILE)

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : May 15, 2024, 9:21 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में उच्च शिक्षा निदेशक पर अवमानना का मुकदमा चलाया जाएगा. हाईकोर्ट ने उच्च शिक्षा निदेशक से पूछा था कि बाहरी ताकतों के दबाव में आकर शिक्षकों के तबादले रोकने को लेकर क्या उपाय किए गए हैं. उच्च शिक्षा निदेशक इस बाबत कोई स्पष्टीकरण नहीं दे पाए. कोर्ट ने इनके इस आचरण को प्रथम दृष्टया जानबूझकर कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए न्याय व्यवस्था में हस्तक्षेप पाया. कोर्ट ने शिक्षा निदेशक को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए.

न्यायाधीश सत्येन वैद्य ने मामले की सुनवाई के बाद कहा कि जब हाईकोर्ट ने 20 जुलाई 2021 को पारित आदेशों के तहत यह स्पष्ट किया था कि बाहरी ताकतों के दबाव में आकर कर्मचारियों के तबादले न किए जाए अन्यथा कानून का राज समाप्त होने में देर नहीं लगेगी तो ऐसे तबादले रोकने के लिए क्या किया गया. उच्च शिक्षा निदेशक इस पर अपना स्पष्टीकरण देने में विफल रहे.

उल्लेखनीय है कि न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान एवं न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने 20 जुलाई 2021 को पारित फैसले में कहा था कि यह बड़े खेद का विषय है कि कर्मचारियों के तबादला आदेश उन लोगो की सिफारिश से हो रहे है, जिनका सरकार के प्रशासनिक कार्यों से कोई लेना देना नहीं है. इस तरह के कृत्य प्रशासन के सिद्धांतों के लिए पूरी तरह से घातक है.

न्यायालय ने कहा कि तबादला होना किसी कर्मचारी के लिए जरूरी घटना है मगर यह तबादला आदेश तय सिद्धांतों या दिशा निर्देशों के अनुरूप ही होने चाहिए. कर्मचारियों के बार बार तबादला आदेश से उनमें भय उत्पन्न करते हैं, जिससे स्वच्छ प्रशासनिक कार्य में बाधा उत्पन्न होती है. कोर्ट ने सरकार को बाहरी ताकतों के दबाव में कर्मचारियों के तबादले न करने की सलाह भी दी थी.

कोर्ट ने कहा था कि इस तरह के तबादलों को मंजूरी देने का मतलब कानून के राज के साथ समझौता करना है. यह सरकार का परम कर्तव्य है कि वह अपने कर्मियों के हितों की रक्षा करे. कोर्ट ने सरकार को याद दिलाया था कि तबादला नीति को हल्के में न लें और इसका मजाक न उड़ाए. कोर्ट ने सुझाव देते हुए कहा था कि कर्नाटक राज्य की तर्ज पर तबादला नीति में अतिरिक्त प्रावधान जोड़े जाने की आवश्यकता है, जहां पर कर्मचारी अधिकार के तौर पर तबादला करने की न तो मांग कर सकता है और न ही राजनीतिक दबाब के चलते किसी के तबादला आदेश जारी किए जा सकते है.

कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय व कई अन्य हाईकोर्ट के निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा था कि किसी विधायक, सांसद या मंत्री के पास किसी कर्मचारी की शिकायत पाए जाने पर तबादला करने की सिफारिश करने का अधिकार तो है लेकिन अंतिम निर्णय लेने का अधिकार केवल प्रशासनिक विभाग के पास ही है.

कोर्ट ने एक अन्य मामले में दिए सुझाव का उल्लेख करते हुए कहा था कि हरियाणा की तर्ज पर राज्य सरकार भी अपने विभागों, बोर्डों और निगमों के लिए ऑनलाइन स्थानांतरण नीति बनाए जिनमें कर्मचारियों की संख्या 500 से अधिक है. कोर्ट ने निर्णय की प्रतिलिपि प्रदेश के मुख्य सचिव को भेजने के आदेश भी दिए थे. ताकि तबादला नीति में जरूरी संशोधन किया जा सके.

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