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बुंदेलखंड में होली के दिन मनाया जाता है शोक, जानिए क्या है इसका कारण और मान्यता? - holi 2024

बुंदेलखंड में होलिका दहन के दूसरे दिन होली नहीं मनाते हैं. यहां होलिका दहन के तीन दिन बाद होली मनाने की परंपरा है. ये परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 25, 2024, 7:09 PM IST

बुंदेलखंड में होली की परंपरा.

हमीरपुर:पूरे देश में 25 मार्च यानि सोमवार को धूमधाम से होली मनाई गई. लेकिन बुंदेलखंड में होलिका दहन के दिन बाद होली मनाने की परंपरा है. ये परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है. बुंदेलखंड के गांवों में होलिका दहन के अगले दिन शोक रहता है. इसी दिन अंग्रेजों के हमले में वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई के पति राजा गंगाधर राव की मौत हुई थी. यहां तबसे परेवा के दिन शोक मनाया जाता है. गांवों के बुजुर्गों का कहना है कि मथुरा में पंद्रह दिनों तक होली खेले जाने की परंपरा है. वहीं, कानपुर में आठ और बुंदेलखंड क्षेत्र में रंग पंचमी तक (पांच दिन) होली खेलने की परम्परा है. इस दौरान बुंदेलखंड के गांवों की चौपालों में फाग गायन, होली मिलन समारोह से लेकर अन्य कार्यक्रम होते हैं. इस दौरान भाई-दोज का पर्व और पंचमी महोत्सव भी मनाया जाता है.

'होली के दूसरे दिन गांवों में सन्नाटा रहता है'
अध्यापक और फाग गायक सुरेश द्विवेदी ने बताया कि बुंदेलखंड की वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के पति राव गंगाधर की मौत होली के दिन ही हुई थी. इसलिए बुंदेलों ने होली न खेलकर अपने राजा की मौत पर शोक जताया था. इसीलिए होली के दूसरे दिन होली नहीं मनाई जाती है. दूसरे दिन पूरे बुंदेलखंड के गांवों में सन्नाटा भी पसरा रहता है. होलिका के अगले दिन परेवा को होली नहीं खेले जाने की सैकड़ो वर्ष पुरानी परम्परा को आज भी लोग निभा रहे है.


फाग गायक बृजलाल प्रजापति ने बताया कि फाग की शुरुआत कृष्ण और राधा रानी के साथ फूलों द्वारा होली खेलकर की गई. फाग गांव देहात के कुछ पारंपरिक लोकगीतों में से एक है जो फागुन में गांव गांव गली चौपाल पर गाई जाती थी और आज भी गाई जाती होगी. फाग में राधाकृष्ण के प्रेम का बहुत ही खूबसूरती से वर्णन किया जाता है. ग्रामीम राजेश ने बताया कि रविवार रात्रि होलिका दहन किया गया. जिसमें लोंगो ने गोबर के कंडे, ओपल और बरूला पर इन्हीं कंडों को जलाकर लोग परंपरागत रूप से होली का पर्व मनाया है.

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