नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नैनीताल के पूर्व जिलाधिकारी द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान विभिन्न स्टोन क्रशरों के अवैध खनन एवं भंडारण पर लगाये गए करीब 50 करोड़ से अधिक का जुर्माना माफ करने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की खंडपीठ ने सुनवाई के बाद मामले की अंतिम सुनवाई के लिए 5 नंवबर की तारीख निर्धारित की है.
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि जो शपथ पत्र पूर्व के आदेश पर सचिव खनन ने आज पेश किया है, उस पर अपना जवाब दे सकते हैं. पिछली तारीख को कोर्ट ने सचिव खनन से पूछा था कि क्या जिला अधिकारी को यह पावर है कि वह पहले शिकायत पर जुर्माना आरोपित करे, फिर रिकवरी का नोटिस जारी करे और बाद में उसका जुर्माना सुनवाई के बाद माफ कर दें.
उस नियमावली को कोर्ट में पेश करें, जो आज राज्य सरकार ने शपथपत्र के माध्यम से पेश की, जिस पर पर याचिकाकर्ता ने असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि जिलाधिकारी को अपने ही आदेश की रिव्यू की पावर नहीं है. यहां तो पहले जिलाधिकारी ने खुद जुर्माना आरोपित किया फिर रिकवरी का नोटिस दिया. बाद में नोटिस की सुनवाई के बाद जुर्माना माफ कर दिया. लोक प्राधिकार की ऐसी कौन नियमावली है, जिसको सभी के दंड माफ करने व दंड देने का अधिकार प्राप्त है.
मामले के अनुसार सामाजिक कार्यकर्ता चोरलगिया नैनीताल निवासी भुवन पोखरिया ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि वर्ष 2016 -17 में नैनीताल के तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा कई स्टोन क्रशरों का अवैध खनन व भंडारण का जुर्माना करीब 50 करोड़ से अधिक रुपए माफ कर दिया गया. जिला अधिकारी ने उन्हीं स्टोन क्रशरों का जुर्माना माफ किया जिन पर जुर्माना करोड़ों रुपए में था और जिनका जुर्माना कम था उनका माफ नहीं किया.