अलवर.जिले के प्रमुख पर्यटन केंद्र सरिस्का टाइगर रिजर्व मे स्थित पांडुपोल हनुमान मंदिर देश-दुनिया भर में मशहूर है. इस मंदिर का मुख्य आकर्षण हनुमान जी की लेटी हुई प्रतिमा है. इस प्रतिमा के बारे में यह कहा जाता है, कि जिस जगह हनुमान जी ने भीम का घमंड तोड़ा था, उसी जगह हनुमान जी की प्रतिमा विराजित है. पांडुपोल मंदिर सरिस्का के कोर एरिया में बसा हुआ है, इस कारण मंगलवार व शनिवार को यहां आने वाले श्रद्धालुओं को निजी वाहनों से मंदिर तक जाने की अनुमति रहती है. पांडुपोल हनुमान मंदिर में हर साल भादो शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन लख्खी मेला भरता है. जिसमें कई राज्यों के श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.
पांडुपोल मंदिर के महंत बाबूलाल शर्मा ने बताया कि इस साल पांडूपोल मंदिर में भर मेला 10 सितंबर को है. इससे पहले ही भक्त बड़ी संख्या में मंदिर प्रांगण में पहुंचकर हनुमान जी के दर्शन कर अपनी मनोकामना पूर्ण होने की कामना कर रहे हैं. महंत बाबूलाल ने बताया कि इस मंदिर में दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. उन्होंने बताया कि इस मंदिर में हनुमान जी की शयन प्रतिमा स्थापित है, यह भी कहा जाता है कि इस मूर्ति की स्थापना पांडवों ने की थी.
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अज्ञातवास के समय भीम ने पहाड़ तोड़कर बनाया रास्ता : महंत बाबूलाल शर्मा ने बताया कि इस जगह पर अज्ञातवास के समय पांडवों ने समय बिताया था. लेकिन कौरवों की सेना को इस बात का पता चलते ही उन्होंने खोजबीन शुरू की. इस दौरान पांडु पुत्र भीम ने बड़े से पहाड़ पर गदा से प्रहार कर रास्ता बनाया. जहां भीम ने गदा मारी, उस जगह को पोल कहा जाता है. इसी के चलते इस स्थान का नाम पांडुपोल के नाम से विख्यात हुआ है.
जहां शयन मुद्रा में हनुमान प्रतीमा, वही तोड़ा भीम का घमंड :महंत ने बताया कि इस मंदिर का मुख्य आकर्षण मंदिर प्रांगण में शयन मुद्रा में स्थापित हनुमान जी की प्रतिमा है. इस प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि जब भीम द्रौपदी की बात मानकर पुष्प की खोज में निकल रहे थे, इसी दौरान बूढ़े वानर के भेष में हनुमान जी ने लेटकर मार्ग को अवरुद्ध किया हुआ था. उन्होने बताया कि जब भीम वहां पहुंचे और उन्होंने वानर से अपनी पूंछ हटाने को कहा, तो उन्होंने खुद ही पूछ हटाकर अपना रास्ता बनाने की बात कही. इस पर भीम ने गुस्से में पूंछ उठाने की कोशिश की. लेकिन वह अपनी पूरी ताकत इस्तेमाल करने के बाद भी पूंछ को हिला नहीं पाए. इस पर उन्होंने वृद्ध वानर से अपने असली रूप में आने की बात कही. तब हनुमान जी ने भीम को अपने असली रूप में दर्शन दिए. इसीलिए यह कहा जाता है कि इस जगह पर हनुमान जी ने भीम का घमंड तोड़ा था. इसके बाद पांडवो ने वहां हनुमान जी की शयन मुद्रा में प्रतिमा स्थापित की.
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लाखों श्रद्धालु करते है दर्शन :पांडुपोल मंदिर में लगने वाले मेले के दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं. मंदिर समिति की ओर से मिली जानकारी के अनुसार लाखों की संख्या में मेले के अवसर पर श्रद्धालु पहुंचते हैं.
अलवर शहर से 55 किलोमीटर दूर स्तिथ है मंदिर :सरिस्का टाइगर रिजर्व क्षेत्र में बने पांडुपोल मंदिर की दूरी अलवर शहर से करीब 55 किलोमीटर है. धार्मिक पर्यटन स्थल की बात आती है, तो अलवर के पांडुपोल मंदिर का नाम भी लिया जाता है/ यह मंदिर भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है. जिला प्रशासन की ओर से हर साल पांडुपोल मेले पर राजकीय अवकाश घोषित किया जाता है.